Bhartiya Parmapara

पितृपक्ष की एक भावनात्मक कथा | Pitru Paksha

"राघव ! तुम तो माँ की तस्वीर को ऐसे निहार रहे जैसे सचमुच मां तुम्हें देख रही हो ..."

गीता, माँ भले ही मुझसे दूर है पर मैं उनका आशीर्वाद हर पल अपने साथ महसूस करता हू्ं, और न जाने क्यों पितृपक्ष के यह पंद्रह दिन अधिक ही प्रसन्नतापूर्वक जाते हैं लगता है जैसे माँ यहीं घर में साथ हैं, और आज तो...

दोस्त – एक प्रेरणादायक कहानी सच्ची दोस्ती और...

पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, देखते ही देखते भूमि के अगल बगल में ऑटोग्राफ लेने वालों का ताता लग गया आज तो उसका यह पहला ही शो था, और पहले ही प्रोग्राम में उसे इतनी सफलता मिल जायेगी इसकी तो उसे दूर दूर तक उम्मीद नहीं थी। उसकी आवाज में गजब का जादू...

बांसुरी के बोल - राधा, गोपियाँ और बांसुरी का...

एक दिन राधा और उसकी प्रिय सखियां ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, सुदेवी, तुंगविद्या, इंदुलेखा और सुंदरी की कृष्ण की बांसुरी के साथ मुलाकात हो गई। सभी एक साथ बांसुरी की कटु आलोचना करते हुए बोली- "तुम्हारे कारण हमने ब्रज छोड़ने का निर्णय लिया है।"

परवरिश - माँ के आत्मचिंतन की कहानी

मन आत्मग्लानि से लबरेज था धिक्कार है ऐसे मातृत्व पर, आज स्वयं पर ही क्रोध आ रहा था। आँखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित हुए जा रही थी। मैं अवि को और वे मुझे सजल नैनों से बस देख रहे थे। "संतानोत्पति करना तो बहुत सरल है, पर परवरिश करना बहुत मुश्किल।" आज बेचैन मन कुछ सोच प...

माँ अभी जिंदा है - कहानी

छोटा बेटा कर्तव्य, अपनी बयासी साल की वृद्ध माँ की सेवा को ही अपना धर्म समझता था। "मातृदेवो भव:।" यही उसका जीवन मंत्र था।

बड़ा बेटा भाविक अपने परिवार समेत पास की सोसाइटी में ही रहता था। माँ रोज़ अपने बेटे-बहू और बच्चों को याद किया क...

सावन की सौगात

"अरी ओ रत्ना, आसमान में बादल देखो कैसे बरसने को बेताब हो रहे है, अबकी तुम्हारे कानों के झुमके घड़वा दूंगा, तुम भी चलना सूनार के और अपनी पसंद से ही बनवा लेना। शामा के बापू मेघ लगते ही तुम्हारे सपनों को पंख लग जाते हैं कहते हुए रत्ना खिलखिलाने लगी।"

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युग परिवर्तन

एक घने जंगल में एक विशाल वटवृक्ष के पास पीपल के एक बिरवे ने जन्म लिया। विशाल वटवृक्ष की लंबी सैकड़ों बरोहें धरती को वटवृक्ष के चारों ओर से जकड़ी हुई थीं। नन्हें पीपल को बड़ा आश्चर्य होता था, वह प्रतिदिन सुबह से शाम तक वटवृक्ष और उसकी सैकड़ों बरोहों को देखता और अचरज से...

बदलता कैडर

कॉलेज के छात्रसंघ के चुनाव में मुख्य आकर्षण अध्यक्ष पद का होता है अध्यक्ष पद पर वैसे तो कई प्रत्याशी मैदान में थे परंतु मुख्य संघर्ष संजय और देव के बीच था। मैं देव के समर्थकों में से एक था। देव मेरा लंगोटिया यार था। हम बचपन से अब एक साथ खेले कूदे और पढ़े थे। इंटरमीडिए...

अपेक्षा - एक लघुकथा

गर्मी की छुट्टियां लगते ही अनु का मन बचपन के गलियारों में पहुंच जाता। मायके में कितनी निश्चिंतता रहती है यह सोचते हुए उसके मुख पर मुस्कान बिखेर गई और मॉं के हाथ का बना भोजन पाने उसका मन ललचा उठा। दूसरे ही क्षण पापा के न रहने का गम उसे भीतर तक कचोट रहा था उनक...

दुआ - लघुकथा

चिलचिलाती धूप में जैसे ही सिंग्नल की लाल बत्ती जली मन ही मन‌ मैं बड़बड़ाई कभी गोद में लेटी परी को देखती तो कभी सिंग्नल को। कल रात से परी का बुखार कम हो ही नहीं रहा था उस चंचल परी की चुप्पी देख मॉं का  हृदय व्यथित हो उठा। डॉक्टर ने कुछ दवाईयां बदल क...

एक चुटकी गुलाल - लघुकथा

मम्मा मम्मा क्या पापा होली पर हमारे साथ रंग खेलने भी नहीं आयेंगे भगवान जी को बोलिये ना मेरे पापा को चार दिन तो छुट्टी दे, ढाई साल की परी रंगोत्सव मनाने के लिए आतुर हो रही थी, दिव्या अपनी भावनाओं को काबू में रखने का भरसक प्रयास कर रही थी, आंसुओं का सैलाब उमड़...

प्रेम की जीत

सुबह का समय था। बाहर से मेरे कुछ दोस्त आये हुए थे। कुछ खाने पीने के बाद हम साथ बैठे चाय पी रहे थे। तभी हमने देखा दुखना घर आ गया है। वहीं से मैंने उसे आवाज दी- 'अरे दुखना !' 
तब वह पानी पी रहा था।
आप अरे कह कर बुलाते हैं उसे बुरा नहीं लगता है ? - एक दोस्त ने...

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