वनदेवी मां अंगार मोती परम तेजस्वी 'ऋषि अंगिरा' की पुत्री हैं। जिनका आश्रम, सिहावा के पास गंढाला में स्थित है। कहते हैं कि, मां अंगार मोती एवं मां विंध्यवासिनी दोनों बहने हैं। कहा जाता है कि, देवी का मूल मंदिर 'चंवर गांव' में स्थित है। किवदंती के अनुसार सप्...
शक्ति पीठों की इस श्रृंखला में, अगला नाम "अंबिकापुर की माँ महामाया" का आता है। जिनका एक नाम अंबिका भी है। जिनके नाम पर यह शहर, अंबिकापुर कहलाया। महामाया मंदिर की स्थापना १५वी शताब्दी के आसपास हुई थी। यह एक जागृत एवम् स्वयंभू मूर्ति है। शक्तिपीठ होने के साथ ही, यह सरगु...
कहते है इस क्षेत्र के पत्थर - पत्थर में देवी देवता विराजमान हैं। टूटी-फूटी मूर्तियां, पत्थर और तांबे पर कुरेदे अजीब अक्षर, पकी मिट्टी के खिलौने-ठीकरे और सोने, चांदी, तांबे के सिक्के, ढेरों तरह के अवशेष और न जाने कितने पुराने देवालयों के खंडहर भी प्राप्त होते रहत...
शक्ति पीठों की श्रृंखला में अगला नाम आता है, महासमुंद जिले के बागबहरा के निकट स्थित, गांव घुंचापाली में स्थापित, चंडीमाता मंदिर का।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 105 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव बगबहरा, अपने चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य समेटे, कोला...
इस मन्दिर की स्थापना के बारे कहा है कि इस जगह पर पूर्व में घना जंगल था जहां वनवासी निवास करते थे, एवं शिकारी जानवरों का शिकार करने जाया करते थे, और घसियारे चारा लेने जाते थे। एक दिन घसियारों को एक काला चमकीला आकर्षक पत्थर दिखाई दिया जिसके इर्द-गिर्द जंगली काली बिल्लिय...
हैहय वंशीय राजाओं ने कुलदेवी महामाया के 36 मंदिरों का निर्माण किया जिनमें से 18 शिवनाथ नदी के इस पार और 18 मंदिर उस पार स्थापित है। अधिकांश मंदिर किलों की शुरुआत में स्थापित है और कुछ राजमहलों के निकट ही है। उनमें से एक विशेष तांत्रिक रूप से निर्मित पुरानी बस्ती रायपु...
माँ दुर्गा ने 9 दिन के युद्ध के पश्चात महिषासुर का अंत किया तब दुर्गा जी को महिषासुर मर्दिनी नाम प्राप्त हुआ। लौटते वक्त माँ महिषासुर मर्दिनी थकान उतारने के लिए इसी स्थल पर बैठ गई जहां मंदिर है तभी से माँ स्थापित है। कहते हैं कि माँ यहां साक्षात रूप में विराजमान है। म...
दंतेश्वरी माँ का मंदिर एकमात्र जगह है जहां फागुन माह में 10 दिवसीय आखेट नवरात्रि मनाई जाती है जिसमें हजारों आदिवासी शामिल होते हैं। पर्यटकों के आकर्षण का विशेष उत्सव है। माँ की काले रंग की स्वयं प्रकट हुई जीवंत मूर्ति है ष्टभुजी माता के दाएं हाथ में शंख खड़ग त्रिशूल ए...
महाभारत काल में शकुनि ने पांडवों के अंत के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया, ताकि पांडवों को उसमें भस्म में किया जा सके, यह जानकारी पाकर विदुर ने पांडवों को सुरंग बनाने के लिए कहा। विदुर के कथनानुसर पांडवों ने सुरंग का निर्माण किया। जब लाक्षागृह दाह हुआ पांडव उसी सुरंग स...
डोंगरगढ़ की माता बमलेश्वरी का मंदिर जो छत्तीसगढ़ के 5 शक्तिपीठों में आता है। माता की महिमा अपरंपार है कहा जाता है कि ममतामई माँ दर्शन मात्र से भक्तों के सारे कष्ट हर लेती है सोलह सौ फीट क ऊंचाई पर माता बमलेश्वरी स्थापित है। 22 सौ वर्ष प्राचीन इस मंदिर में जाने के लिए...
कहा जाता है कि दक्ष यज्ञ के पश्चात जब महादेव ब्रह्माँड में माता सती के शव को लेकर विचरण कर रहे थे तब यहां माँ का बायां कपोल गिरा था, उसी वक्त माँड एवं महानदी के बीच स्थित टापू पर माँ की नथ गिरी थी। टापू पर माँ नाथल देवी का मंदिर स्थित है एवं ऊपर माँ चंद्रहासिनी का मंद...
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का ननिहाल छत्तीसगढ़, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हरा भरा, खनिज सम्पदावान प्रदेश छत्तीसगढ़ अपने आप में कई रंग समेटा हुआ है। यहां की परंपरा और संस्कृति को कुछ पृष्ठों में समेटना एक दुरुह कार्य है। छतीसगढ़ का अपना एक प्राचीन धार्मिक इतिहास भी है, जो यहां के सीधे सरल मूल नि...