Bhartiya Parmapara

जूतों की खोज और जीवन का संदेश

आज हम जूते पहनते हैं पैरों की सुरक्षा के साथ साथ अच्छे दिखने और फैशन के चलन में हो वैसे रंग बिरंगी। सब के लिए अलग अलग डिजाइन और फैशन के जूते और अब तो आयती भी मिलने लगे हैं, जो एक जीवन शैली का प्रतीक भी बन गए हैं। किंतु उसकी उत्पति की कहानी बहुत कुछ सीखा जाती हैं।

एक राजा था, बहुत अच्छा अपनी प्रजा के लिए बहुत काम करता था, बहुत ही प्रजा वत्सल और नेक दिल राजा। वह एक ही बात से व्यथित रहता था कि जब वह बाहर जाता था तो उसके पांव में मिट्टी लग जाती थी, वह मिट्टी रथ के अंदर भी लग जाती थी और रथ के साथ साथ वह उसके भवन और भवन से शयन कक्ष तक पहुंच जाती थी और तब उसे मिट्टी से बहुत ही घृणा हो जाती थी। तभी राजा ने अपने सभी प्रभारियों को विमर्श के लिए बुला भेजा और दरबार में बैठ उसी बात पर चर्चा शुरू की, किसी ने सुझाव दिया कि कुछ लोगों के हाथ में पंखे दे कर उन्हें चलाने के लिए बोल देते हैं तो मिट्टी उड़ जायेगी। सब ने सुना तो विरोध हुआ की ऐसे तो मिट्टी बवंडर बन उड़ेगी यह तो और भी गलत होगा। असमंजस में सभा खत्म हुई और सब चले गए।

एक दिन अकेले बैठा इसी प्रश्न पर सोच रहा था की क्या किया जाए, फिर उठ के चलने लगा तो राजा का पैर कालीन में फंस गया और वह गिरते गिरते बचे, लेकिन कालीन देखकर उनको एक ख्याल आया कि क्यों न पूरे राज्य में कालीन ही बिछा दिया जाए ताकि मिट्टी उड़े ही नहीं। सोने पर सुहागा क्या था फिर राजा, बाजा और बंदर अपनी मर्जी से बजा लो, बाजे में जैसे फुक मरोगे वैसे ही बजेगा, राजा को जैसे ही ख्याल आयेगा या कोई ख्याल देगा वैसे ही करेगा, और बंदर तो है नकलची। बस अब ख्याल आया राजा जी को कि मिट्टी को उनके संपर्क से कैसे हटाएं, दरबार में सभी मंत्रियों को आने की सख्त हिदायत भेजी गई। सब आए भी और चर्चा शुरू हुई।

आपात काल सी परिस्थिति पैदा हो गई, सभी मंत्री गण आ पहुंचे सभा में और चर्चा शुरू हो गई, सब के पास बहुत से विचार थे किंतु कुछ अवास्तविक से थे। राजा जो बहुत कम नाराज या गुस्से होता था, एक दम ही गुस्सा हो गए और हुक्म दिया कि पूरे राज्य में कालीन बिछा दिया जाएं। अब परिवहन मंत्री को लिखित आदेश भी मिल गया और कार्यान्वित होना शुरू हो गया। कोई राज्य के रास्ते को मापने गए तो कोई उसके लिए कालीन बनाने वाले को ढूंढने लगे। रोज के कितने कालीन बनेंगे तो पूरे राज्य में उन्हें मंडित करने में कितना समय लगेगा। ये सोच सोच परिवहन मंत्री और उनके तहत आने वाले सभी ओहदेदारों और कर्मचारियों को बहुत ही परेशानी हो गई थी। काम शुरू करें भी तो किस जगह से करें ये भी एक प्रश्न था। अब तो पूरे राज्य में चर्चा हो रही थी कि क्या क्या हो सकता हैं। ऐसे में एक सयाना नागरिक आया और राजा से मिलने की इजाजत मांगी, तो संतरियों ने उन्हें राजा से मिलने की रजा नहीं दी, ऐसे दो तीन दिन वापस घर जाता रहा और फिर दूसरे दिन संतरी के सामने आकर फिर खड़ा हो जाता था। हार कर संतरी ने डांट कर पूछा कि क्यों उसे राजा से मिलना है, वो जब इतने गहन प्रश्नों का हल ढूंढ़ने में व्यस्त है, तब उसने बताया कि उसके पास राजा की इसी समस्या का हल हैं। संतरी दौड़ा-दौड़ा गया और राजा को बताया कि बाहर एक व्यक्ति उनसे मिलने के लिए दसों बार आ चूका हैं और उनसे मिले बिना जाने के लिए राजी नहीं हैं। संतरी ने बताया कि अभी तक तो मिलने की अनुमति नहीं दी और उसे टाल दिया पर वह था कि मानने को तैयार ही नहीं है। पूछने पर इसका कारण बताया कि उसके पास राजा जी के पैरो को मिट्टी से बचाने का उपाय हैं, तो बस उसे मिल गयी इजाजत, दरबार में हाजिर होने की।

 
वह गया तो उसके हाथ में छोटी सी थैली थी, राजा को प्रणाम करने के बाद उसने अपनी थैली में से दो छोटी छोटी चीजें जो कपड़े से बनी थी वह निकाली और राजा के सामने पेश कर दी, सब अचंभित से देख रहे थे, कि वो क्या करने वाला था, अगर कुछ उल्टा सीधा हुआ तो राजा के कोप का सामना करना पड़ेगा। उसने बड़े विवेक से राजा के पैरों के पास बैठकर वो जो उसने जूते बनाए थे वो राजा के पैरो में पहना दिया और राजा को चलने के लिए बोला, जब राजा चला तो उसके पांव मिट्टी से बचे रहे और राजा एकदम प्रसन्न हो गया और उसे बहुत बड़ा इनाम दिया। वह इनाम ले चला गया तो अपने दरबारियों को राजा ने खूब लताड़ा कि इतने बड़े ओहदों पर बैठे वे कुछ न कर पाए और एक अनपढ़ और सामान्य आदमी ने करिश्मा कर ही डाला।

ये तो हुई कहानी, किंतु असल जिंदगी में भी बहुत काम की बात बता गई हैं कि दुनिया को बदलने की बजाय खुद को बदलें क्योंकि किसी पर भी अपना बस नहीं होता हैं, किसी को भी हम बदल नहीं सकते हैं। अगर बदल सकते हैं तो खुद को, अपने आपको ही बदल सकते हैं। 
 

 

 

                                    

                                      

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