Bhartiya Parmapara

गरीबी (Poverty) | मानवता की एक मार्मिक कहानी

विनी और बिट्टू दोनों भाई-बहन मैले-कुचैले कपड़े पहने थे। हाथों में छोटी-छोटी बोरियाँ थीं। वे कचरे बीनने जा रहे थे। कचरे के ढेर में झिल्ली, प्लास्टिक, लोहा आदि बीनते थे; और उन्हें बेचकर कर अपने खाने की व्यवस्था कर लेते थे। कभी कचरे के ढेर से रोटी के टुकड़े वगैरह या खाने क...

विकल्प | बिना पटाखों वाली मस्ती भरी दीपावली

दीपावली कुछ दिनों बाद आने वाली थी पर अब की बार मौसम भी कुछ विचित्र सा गर्मी लिए हुए था साथ ही वायु का प्रदूषित होना भी दुविधा का कारण बना हुआ था। वायु प्रदूषण की भयाभयता का अंदाजा लगाते हुए सरकार की मंशा के अनुरूप स्थानीय प्रशासन ने भी पटाखों की दुकान व पटाखे चलाने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी थी।

दुआ | पूर्णिमा की दीपावली की कहानी

माटी के दीयों को बड़ी तन्मयता से पूर्णिमा सजा रही थी। इन्हीं दीयों की बदौलत उसके घर में दीपावली मनती है। अब की बार उसने अपने पति दामू से कहा कि दीयों के साथ हम रंगोली के रंग भी बेचेंगे, दामू ने मौन स्वीकृति दे दी। पूर्णिमा का चेहरा पूनम के चांद सा खिल उठा। रंगोली के र...

सोना समझ गयी | एक मेहनती चींटी की प्रेरणादायक...

"मैं बहुत थक गयी हूँ। अब एक कदम भी नहीं चला जाता है मुझसे। सुबह से शाम तक बस; सिर्फ काम ही काम। सुनिए जी, आज मैं घर पर ही रहूँगी। आप जाइये काम पर।" नन्हीं चींटी सोना ने अपने पति डंबू से कहा।  
डंबू ने सोना को चिढ़ाते हुए कहा - "ओह ! तो आज मेरी सोना थक गई है। आर...

असली रावण का अंत: जंगल की दशहरा कथा

क्वाँर का महीना था और दोपहर का समय, सुनहरी धूप खिली हुई थी। सर्द-गर्म मिश्रित हवा फूलों की खुशबू को पूरे अण्डावन में बिखेर रही थी। पत्तियों की सरसराहट व पक्षियों के कलरव के बीच आज एक विशाल शीशम वृक्ष के नीचे जानवरों की मासिक सभा आयोजित थी। इस वर्ष दशहरा का पर्व मनाने...

नवरात्रि : सत्यमेव जयते | बेटियों को सुरक्षा...

"कन्याओं को पूजन की नहीं सुरक्षा की जरूरत है...! प्रकृति के खूबसूरत नजारों को अपनी आंखों में कैद करने का हक उनका भी है, वह भी खुली हवा की ताजगी रोम रोम में भरना चाहती है, पाखियों सी उड़कर गगन को छूना चाहती है, शिक्षा जगत में ऊंचाइयों का परचम लहराना चाहती हैं, बेटियों...

लघुकथा – पिता और सपनों की सच्चाई

अरे नमन! तुम यहां स्टेशन पर क्या कर रहे हो भाई?
शानु तुम..... यहाँ कैसे मेरे दोस्त और कहां जा रहे हो ....? तुम तो बिल्कुल भी नहीं बदले जहाँ तक मुझे याद है तुम्हारे पापा का तबादला हुआ तब हम सातवीं कक्षा में थे बराबर? हां दोस्त, मैं पी जी की तैयारी कर रहा था परीक्षा के लिए यह सेंटर मिला इसी सिलस...

बच्चों के मन में अंकुरित विश्वास की सुंदर कहा...

घर-आंगन में रेहान ने नयी विज्ञान की रंग-बिरंगी पुस्तक अपने जन्मोत्सव पर अपनी नानी अम्मा से पाकर काफी खुश था। वह उस पुस्तक को पढ़कर और देखकर अपने कमरे में साज सज्जा करते हुए आशियाने को बनाते रहता था। उसे अपने इस काम में बहुत मज़ा आता था। अपने कमरे में रखें हु...

यात्रा

ट्रेन रफ्तार से दौड़ी जा रही थी और उसके साथ ही मेरे विचारों ने भी रफ्तार पकड़ ली अतीत में छुट्टियों के दौरान की गई यात्राओं के सुखद पल मानस पटल पर अंकित होते ही एक मीठी सी मुस्कान चेहरे पर बिखर गई। अगले ही स्टेशन पर एक सुशिक्षित दंपति और उनका दस वर्षीय बेटा ट्रेन में...

परीक्षा और परवरिश की कहानी: दादाजी की सीख और...

राघव अनमना सा हो पढ़ने की कोशिश कर रहा था किंतु वह विषय उसकी रूचि का न होने से उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था और कुछ देर पहले मम्मी की कही हुई बात मानो उसके कानो में शूल चुभो रही थी इस बार अच्छे अंक प्राप्त करने का वह भी प्रयास कर रहा था किंतु पढ़ाई और मम्मी का दबाव दोन...

विश्वास (Faith) - किसानों, सपनों और प्रकृति प...

"लगता है तुम फिर मुंगेरीलाल की तरह सपने देखने लगे हो हरिया कहते हुए श्याम मुस्कुराने लगा हर साल यहीं क्रम चलता है तुम्हारा, मृग लगे नहीं की तुम्हारे सपनों की डोर तो जैसे आसमान छूने लगती है। अरे जो बादल गरजते हैं वो बरसते नहीं समझ लेना इतने ख्वाब देखना और फिर...

होली पर लघुकथा – रंगों से भरी दिल छू लेने वाल...

हैलो हैलो! क्या बात है ठेकेदार आधी रात में फोन करने का कारण...? सर मैंने आपसे पहले ही कहा था इतनी रेत मिलाना सही नहीं है, पर आपने उस समय हँसकर बात टाल दी आपने ही कहा था रास्ते टूटेंगे, खराब होंगे तभी तो हमें और तुम्हें बार बार काम मिलेंगे। "अरे भई हुआ क्या क...

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