Bhartiya Parmapara

बड़ा लेखक

एक बार एक गांव में एक लड़का रहता था जो की हमेशा सपने देखता था लेकिन जब वो अपने सपनों के बारें में दूसरों को बताता तो सब उसका मज़ाक उड़ाते और उसको समझने वाला कोई नहीं था। सब उससे यही कहते की ये तुम्हारे सपने पूरे नही हो सकते क्योंकि तुम एक छोटे से गांव में रहते हो। उस...

होली की सतरंगी छटा | प्रेरणादायक कहानी

श्वेता को पिछले साल की होली याद थी। कभी नहीं भूल सकती थी उस होली के हुड़दंग को। होली के ठीक दूसरे दिन वह बीमार पड़ गई थी। मम्मी-पापा बहुत परेशान हो गए थे। उसे एक हफ्ते के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ा था; स्कूल से अनुपस्थित रहना तो अलग ही। 

क्षितिज तक

डॉक्टर तमन्ना अस्पताल से निकलते हुए सोच में इतनी डूबी हुई थी कि उसने किसी के अभिवादन का जवाब दिए बिना ही कार तक पहुंच गई। उनके मन में अपनी बीमार बच्ची निम्मी का रुआँसा चेहरा घूम रहा था। जब वह रोज की तरह अस्पताल जाने के लिए तैयार हो रही थी, तभी निम्मी उसके पास आई और "प...

भ्रष्टाचार

निशा अखबार में आज कुछ नई खबर आई है क्या जो इतनी आंखें गड़ाए पढ़ रही हो। कुछ नया नहीं है निखिल, पता नहीं हमारे देश का क्या होगा हर तरफ बस भ्रष्टाचार की खबरें पढ़ने मिलती। 

हॉं, निशा तुम सही कह रही हो।

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जूतों की खोज और जीवन का संदेश

आज हम जूते पहनते हैं पैरों की सुरक्षा के साथ साथ अच्छे दिखने और फैशन के चलन में हो वैसे रंग बिरंगी। सब के लिए अलग अलग डिजाइन और फैशन के जूते और अब तो आयती भी मिलने लगे हैं, जो एक जीवन शैली का प्रतीक भी बन गए हैं। किंतु उसकी उत्पति की कहानी बहुत कुछ सीखा जाती हैं।

गरीबी (Poverty) | मानवता की एक मार्मिक कहानी

विनी और बिट्टू दोनों भाई-बहन मैले-कुचैले कपड़े पहने थे। हाथों में छोटी-छोटी बोरियाँ थीं। वे कचरे बीनने जा रहे थे। कचरे के ढेर में झिल्ली, प्लास्टिक, लोहा आदि बीनते थे; और उन्हें बेचकर कर अपने खाने की व्यवस्था कर लेते थे। कभी कचरे के ढेर से रोटी के टुकड़े वगैरह या खाने क...

विकल्प | बिना पटाखों वाली मस्ती भरी दीपावली

दीपावली कुछ दिनों बाद आने वाली थी पर अब की बार मौसम भी कुछ विचित्र सा गर्मी लिए हुए था साथ ही वायु का प्रदूषित होना भी दुविधा का कारण बना हुआ था। वायु प्रदूषण की भयाभयता का अंदाजा लगाते हुए सरकार की मंशा के अनुरूप स्थानीय प्रशासन ने भी पटाखों की दुकान व पटाखे चलाने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी थी।

दुआ | पूर्णिमा की दीपावली की कहानी

माटी के दीयों को बड़ी तन्मयता से पूर्णिमा सजा रही थी। इन्हीं दीयों की बदौलत उसके घर में दीपावली मनती है। अब की बार उसने अपने पति दामू से कहा कि दीयों के साथ हम रंगोली के रंग भी बेचेंगे, दामू ने मौन स्वीकृति दे दी। पूर्णिमा का चेहरा पूनम के चांद सा खिल उठा। रंगोली के र...

सोना समझ गयी | एक मेहनती चींटी की प्रेरणादायक...

"मैं बहुत थक गयी हूँ। अब एक कदम भी नहीं चला जाता है मुझसे। सुबह से शाम तक बस; सिर्फ काम ही काम। सुनिए जी, आज मैं घर पर ही रहूँगी। आप जाइये काम पर।" नन्हीं चींटी सोना ने अपने पति डंबू से कहा।  
डंबू ने सोना को चिढ़ाते हुए कहा - "ओह ! तो आज मेरी सोना थक गई है। आर...

असली रावण का अंत: जंगल की दशहरा कथा

क्वाँर का महीना था और दोपहर का समय, सुनहरी धूप खिली हुई थी। सर्द-गर्म मिश्रित हवा फूलों की खुशबू को पूरे अण्डावन में बिखेर रही थी। पत्तियों की सरसराहट व पक्षियों के कलरव के बीच आज एक विशाल शीशम वृक्ष के नीचे जानवरों की मासिक सभा आयोजित थी। इस वर्ष दशहरा का पर्व मनाने...

नवरात्रि : सत्यमेव जयते | बेटियों को सुरक्षा...

"कन्याओं को पूजन की नहीं सुरक्षा की जरूरत है...! प्रकृति के खूबसूरत नजारों को अपनी आंखों में कैद करने का हक उनका भी है, वह भी खुली हवा की ताजगी रोम रोम में भरना चाहती है, पाखियों सी उड़कर गगन को छूना चाहती है, शिक्षा जगत में ऊंचाइयों का परचम लहराना चाहती हैं, बेटियों...

लघुकथा – पिता और सपनों की सच्चाई

अरे नमन! तुम यहां स्टेशन पर क्या कर रहे हो भाई?
शानु तुम..... यहाँ कैसे मेरे दोस्त और कहां जा रहे हो ....? तुम तो बिल्कुल भी नहीं बदले जहाँ तक मुझे याद है तुम्हारे पापा का तबादला हुआ तब हम सातवीं कक्षा में थे बराबर? हां दोस्त, मैं पी जी की तैयारी कर रहा था परीक्षा के लिए यह सेंटर मिला इसी सिलस...

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