
दसे दशहरा, बीसे दिवाली, छऊवे छठ हमारे सनातन समाज में बहुत ही प्रचलित उक्ति है जिससे श्रावण माह पश्चात आने वाले प्रमुख त्योहारों और उत्सवों के बारे में एक जानकारी मिलती है। क्योंकि श्रावण माह के बाद बाद आश्विन माह में १५ दिनों तक पितृ पूजन वाला कार्यक्रम चलता है और पितृपक्ष के आखिरी दिन जिसे हम सर्व पितृ अमावस्या कहते हैं उस दिन पितरों को जल तिल देकर उन्हें नमन कर प्रार्थना की जाती है कि हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हुए आप अपने लोक में आनंद से रहें। इसी सर्व पितृ अमावस्या वाले दिन माता दुर्गा का आह्वान कर उनसे अपने घर आगमन के लिए प्रार्थना की जाती है। यही दुर्गा माता के आह्वान को महालया पर्व कहते हैं। जहाँ&जहाँ दुर्गा पूजा मनायी जाती है वहाँ-वहाँ दुर्गा पूजा का आगाज महालया पर्व पर सवेरे सवेरे दुर्गा माता के आह्वान से शुरू हो जाता है। इसके अगले दिन से अर्थात पितृ पूजन वाले कार्यक्रम के बाद शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाती है। ध्यान रहे इसी शारदीय नवरात्र के समय को बंगाल जैसी जगहों पर दुर्गा पूजा कह मनाया जाता है। लेकिन सभी जगहों पर ही यह नौ दिनों तक चलने वाला पर्व बेहद हर्षोल्लास व पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने भी रावण वध से पहले त्रेता युग में शारदीय नवरात्र के नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की थी और विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त कर विजयदशमी को रावण का वध किया था।
उपरोक्त कारण के चलते ही दशहरा हमारे सनातन धर्म में यानि हिन्दू धर्म के लोगों का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण त्योहार है। और जैसा आप सभी जानते ही हैं कि दशहरा वाला उत्सव पूरे उत्साह व उमंग के साथ केवल उत्तर भारत में ही नहीं बल्कि पूरे देश में हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा लगातार दस दिन तक बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। चूँकि यह त्योहार पूरे दस दिन तक चलता है इसलिये ही इसे दशहरा कहते हैं जिसमें पहले नौ दिन तक मां दुर्गा महिषसुर मर्दिनी की पूजा की जाती है, दसवें दिन लोग असुर राजा रावण का पुतला जला कर मनाते हैं जो बुराई पर अच्छाई की जीत को तो प्रदर्शित करता ही है साथ ही साथ पाप पर पुण्य की जीत को भी।
अब आप सभी के ध्यानार्थ प्रस्तुत है तीन रोचक जानकारी -
1] हमारे यहाँ एक कहावत बहुत मशहूर है और वो है - दसे दशहरा, बीसे दिवाली, छऊवे छठ !
जैसा आप सभी जानते ही हैं कि शारदीय नवरात्र के एकम से ठीक दसवें दिन विजयादशमी या दशहरा उत्सव मनाया जाता है और विजयादशमी जिस दिन मनाई जाती है उसके ठीक बाद बीसवें दिन हिंदुओं का सबसे प्रमुख पर्व दीपावली आती है। ठीक इसी क्रम में दीपावली से ठीक 6 दिन बाद बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में प्रसिद्ध पर्व छठ मनाया जाता है।
2] प्रति वर्ष दशहरे से ठीक 21वें दिन ही दीपावली क्यों आती है? क्या कभी आपने इस पर विचार किया है। विश्वास न हो तो कैलेंडर देख लीजिएगा।
रामायण में वाल्मिकी ऋषि ने लिखा है कि प्रभु श्री राम को अपनी पूरी सेना को श्रीलंका से अयोध्या तक पैदल चलकर आने में 504 घंटे लगे! अब हम 504 घंटे को 24 घंटे से भाग दें तो उत्तर 21 आता है यानी इक्कीस दिन !!!
मुझे भी आश्चर्य हुआ। कुछ भी बताया है यह सोचकर कौतूहल वश गूगल मैप पर सर्च किया। और उसमें यानी गूगल दर्शाता है कि श्रीलंका से अयोध्या की पैदल दूरी 3145 किलोमीटर और लगने वाला समय 504 घंटे ।।।
है न आश्चर्यजनक बात।
हम भारतीयों का दशहरा और दीपावली वाला त्योहार त्रेतायुग से चला आ रहा है, और हम इन त्योहारों को परम्परानुसार मनाते आ रहे हैं। समय के इस गणित पर आपको विश्वास न हो रहा हो तो गूगल सर्च कर देख सकते हैं क्योंकि वर्तमान समय में गूगल मैप को पूरी तरह विश्वसनीय माना जाता है।
3- तीसरी एक रोचक जानकारी और जान लें वो इस प्रकार है- ऐसा पढ़ने में आया है कि ऋषि वाल्मिकीजी ने तो रामायण की रचना श्रीराम के जन्म से पहले ही कर दी थी!!! उनकी भविष्यवाणी और आगे घटने वाली घटनाओं का वर्णन एकदम सटीक रहा था।
अन्त में यह ही बताना चाहता हूँ कि हम सब ये सारे पर्व कई सारे रीति-रिवाज और पूजा-पाठ के द्वारा मनाते हैं। नवरात्र में अनेक भक्त कहिये या धार्मिक लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं यानी देवी दुर्गा का आशीर्वाद और शक्ति पाने के लिये इसमें पूरे नौ दिन तक व्रत रखते हैं जबकि कुछ लोग इसमें पहले और आखिरी दिन व्रत रखते हैं। दसवें दिन लोग असुर राजा रावण पर प्रभु श्री राम की जीत के उपलक्ष्य में दशहरा मनाते हैं। दशहरे के बाद से ही व्यापक स्तर पर मनाये जाने वाले दीपावली की तैयारियां शुरू हो जाती है क्योंकि दीपावली वाले दिन ही प्रभु श्रीराम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे। और दीपावली के बाद पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाने वाला सूर्योपासना का अनुपम लोकपर्व छठ पूजा, जो वैसे तो मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला त्योहार है लेकिन आजकल सम्पूर्ण भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में रहने वाले सभी वर्ग के भारतीय भी बड़े ही विश्वास के साथ यह पर्व उतने ही उत्साह, उमंग व धूमधाम से मनाने लगे हैं जैसा भारत में मनाया जाता है।
उपरोक्त सभी तथ्यों के मद्देनजर यह स्पष्ट है कि ये ही त्योहार देश की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक बुनियाद को मजबूत तो बनाते ही हैं साथ ही समाज को भी जोड़ने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। इन्हीं सब कारणों के चलते हम बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारी अपनी सनातन हिन्दू संस्कृति बहुत महान है साथ ही साथ ऐसी महान हिन्दू संस्कृति में जन्म लेने पर हम अपने को भाग्यशाली मानते हैं।
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