Bhartiya Parmapara

अक्षय नवमी: प्रकृति पूजन और आंवला वृक्ष की पूजा का पर्व | Akshaya Navami

'प्रकृति पूजन का ध्येय समेटे अक्षय नवमी' 
कार्तिक का माह आते ही अनायास मन में नया उत्साह संचारित होने लगता है, उत्सवों का जो क्रम प्रारम्भ होता है वो सतत चलता रहता है और जन जीवन में नवीन ऊर्जा का प्रसारण करता है।

इसी क्रम में दीपावली के नौ दिनों के पश्चात अक्षय नवमी के पर्व मनाया जाता है। अक्षय नवमी जिसे "आंवला नवमी" भी कहा जाता है, कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को यह त्योहार मनाने की परंपरा है। इस दिन से ही "सतयुग" का प्रारंभ माना गया है। 

यह त्योहार अधिकतर उत्तर-भारत में ही मनाते हैं। प्रकृति और वृक्षों को समर्पित इस पर्व के दिन महिलाएँ आँवले के वृक्ष का पूजन-अर्चन करती हैं। सुबह सबेरे तैयार होकर महिलाएँ आँवले के वृक्ष के नीचे जाकर उसे यथायोग्य श्रृंगार की वस्तुएँ, भोग, प्रसाद आदि चढ़ाती हैं एवं वृक्ष की 108 परिक्रमा करते हुए उसके समान ही जीवन के फलने-फूलने व समृद्धि की कामना करती हैं। वृक्ष की छाया में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, तत्पश्चात स्वयं प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण करती हैं। अपने संतानों का रोली टीका करते हुए उनके दीर्घायु होने की कामना करती हैं।

कहते हैं आंवले का फल पौष्टिकता की खान है। आंवले का वृक्ष कार्तिक मास में फलता है। वृक्षों की शाखाओं में जब गुच्छों में हरे-हरे फल लगते हैं तो हृदय अनायास ही प्रफुल्लित हो जाता है।

आँवला सर्वोत्कृष्ट औषधि मानी गयी हैं। चरक के अनुसार शारीरिक अवनति को रोकने वाले अवस्था स्थापक द्रव्यों में आंवला सबसे प्रधान है। 

कहते हैं समुद्र मंथन से उत्पन्न अमृत की छलकी बूंदों से इस वृक्ष का आविर्भाव हुआ अतः इसे "अमृतफल" भी कहा जाता हैं। प्राचीन ग्रंथों में इसे माता के समान कल्याण करने वाला और अवस्था को बनाए रखने वाला कहा गया है। यह वृक्ष देवताओं को भी प्रिय है तथा ये वृक्ष हमारे भारत में ही जन्मा है, ऐसा माना जाता है। इस वृक्ष का प्रत्येक भाग औषधीय गुणों से भरपूर है। अतः ये वृक्ष पूजनीय है। 
लेखिका - गीता गुप्ता जी, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

                      

                        

Login to Leave Comment
Login
No Comments Found
;
MX Creativity
©2020, सभी अधिकार भारतीय परम्परा द्वारा आरक्षित हैं। MX Creativity के द्वारा संचालित है |