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नाग पंचमी | Naag Panchami

नाग पंचमी को एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। जिसमें नाग देवता की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन नाग देव की पूजा करने से काल सर्प दोष दूर होता है और सुख समृद्धि आती है। नाग पंचमी के दिन भगवान शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करते है, महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी करना चाहिए।  
हमारी संस्कृति हमें पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, वनस्पति सब के साथ में आत्मीय सम्बन्ध जोड़ना सिखाती है। जैसे बछ बारस पर हम गाय-बछड़े की पूजा करते है, पोळा और वृषभोत्सव के दिन बैल का पूजन, वट-सावित्री व्रत में बरगद की पूजा, ऋषि पंचमी पर तृण की तो कही कोयल की पूजा करते है जिसे कोकिला-व्रत कहा जाता है जिसमे कोयल के दर्शन हो अथवा उसका स्वर सुनाई दे तब ही भोजन ग्रहण किया जाता है। उसी प्रकार से नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करते है। आख़िरकार भगवान शिव ने उन्हें अपने गले में जो धारण किया है। नाग खेतों का रक्षण भी करते है, इसलिए उन्हें "क्षेत्रपाल" कहते हैं।

जानें कैसे हुई नाग पंचमी की शुरुआत -

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित जो द्वापर युग के अंतिम राजा थे। वह अपनी प्रजा के हित के लिए अनेक यज्ञ अनुष्ठान किया करते थे। एक श्राप के कारण तक्षक नामक सर्प ने इन्हें मार डाला था। तक्षक नाग ने श्रृंगी ऋषि का श्राप पूरा करने के लिये राजा परीक्षित को काटा था। इससे क्रोधित होकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने पृथ्वी से इनके समूल नाश के लिए उन्होंने नाग यज्ञ आरम्भ किया और उसमें सांपों की आहुति देनी शुरू की थी। तब नाग भागते हुए ब्रह्मा जी के पास गए, ब्रह्मा जी ने श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को ही नागों को वरदान दिया कि तपस्वी जरत्कारु नाम के ऋषि का पुत्र आस्तिक नागों की रक्षा करेंगे। नागों के समूल नाश के लिए यज्ञ में उनकी आहुति के दौरान जब परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने इंद्र सहित तक्षक को अग्निकुंड में आहुति के लिए मंत्र पाठ किया, तब आस्तिक ने तक्षक के प्राण की रक्षा की। जिस दिन नागों के अस्तित्व की रक्षा हुई वह तिथि पंचमी थी और तभी से नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।

नागों में शेषनाग सबसे बड़े और तक्षक दूसरे स्थान पर है, वे दोनों भाई हैं। जब शेषनाग भगवान विष्णु की शरण में गए तब नागलोक से जाते जाते छोटे भाई तक्षक का राजतिलक किया तथा उन्हें नागराज के पद पर अभिषिक्त किया।

नागपंचमी के दिन क्या करें -


- इस दिन नागदेव का दर्शन अवश्य करना चाहिए।  
- बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए।  
- नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।  
- "ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा" मंत्र का जाप करें।

नाग देव की महिमा -

"गले में शिव शंभू के विराजे नाग,  
अपने फन पर रखे हैं पृथ्वी का पूरा भाग,   
ऐसे हैं शक्तिशाली देवता हमारे नाग,  
इनके आगे नतमस्तक हमारे हाथ।"

                 

                   

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