
देवोत्थान एकादशी के महत्व को समझने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि एकादशी व्रत क्या है और इसका हमारे जीवन में क्या स्थान है।
भारतीय संस्कृति में एकादशी, जिसे ग्यारस भी कहा जाता है, अत्यंत पावन तिथि मानी गई है। हिन्दू धर्म में यह व्रत गहन श्रद्धा, भक्ति और अनुशासन के साथ रखा जाता है।
एकादशी व्रत क्या है?
एकादशी व्रत का अर्थ है — एक ही भाव, एक ही उद्देश्य और एकनिष्ठ श्रद्धा के साथ अपने आराध्य भगवान की उपासना करना।
पद्म पुराण में इसका विशेष महत्व बताया गया है, जहाँ कहा गया है कि एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति के पूर्वज तक स्वर्ग प्राप्त करते हैं।
हर माह दो बार आने वाली यह तिथि, पूर्णिमा और अमावस्या के बाद की 11वीं तिथि होती है। वर्षभर में सामान्यतः 24 एकादशी आती हैं, और अधिकमास के अनुसार यह संख्या 26 तक पहुँचती है।
एकादशी का महत्व:
- इसे “हरी वासर” कहा जाता है — भगवान विष्णु का दिन।
- वैष्णव और अन्य सभी श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं।
- स्कंद पुराण में उल्लेख है कि इस दिन किया गया कोई भी पुण्य कार्य सामान्य दिनों की तुलना में कई गुना फल देता है।
एकादशी व्रत के नियम:
- व्रत दशमी तिथि की संध्या से लेकर द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक चलता है।
- इस दिन नीम, जामुन या आम के पत्तों से दातुन करना चाहिए, टूटी हुई पत्तियाँ ही प्रयोग करें, तोड़ना वर्जित है।
- गीता पाठ करें, “ॐ भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें और यथाशक्ति दान करें।
व्रत का पारण:
द्वादशी के दिन सुबह भगवान विष्णु की पूजा के बाद पारण करें। त्रयोदशी लगने से पहले पारण करना आवश्यक है।
व्रत में क्या खाएँ:
- फल, दूध, साबूदाना, सिंघाड़ा, कुट्टू आटा, आलू, शकरकंद, सेंधा नमक आदि फलाहारी चीज़ों का सेवन कर सकते हैं।
- चावल, गोभी, पालक, शलजम जैसे पदार्थों का सेवन वर्जित है।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें, झूठ न बोलें, मौन रहें या कम बोलें।
देवोत्थान एकादशी का विशेष महत्व:
देवोत्थान एकादशी, जिसे देव प्रबोधिनी या हरि प्रबोधिनी भी कहा जाता है, कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है। यह तिथि भगवान विष्णु के चार मास के योगनिद्रा (चतुर्मास) से जागने का प्रतीक है। इस दिन से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है — जैसे विवाह, यज्ञ, उपनयन संस्कार आदि।
इस दिन तुलसी विवाह का भी विशेष महत्व है। तुलसी जी का विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु के रूप) के साथ कराकर मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।
आदि पुराण के अनुसार, यह एकादशी बुद्धि, शांति और संतान की प्राप्ति का वरदान देती है। इस दिन गंगा स्नान करने और भगवान विष्णु की तुलसी के साथ पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष:
देवोत्थान एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि शुभता, नई शुरुआत, प्रकृति के जागरण और आध्यात्मिक ऊर्जा का पर्व है। इस दिन की गई पूजा, उपवास और सेवा से मन को शुद्धि, आत्मा को शांति और जीवन को नवीन दिशा मिलती है।
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