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सिंदूर खेला

सिंदूर खेला -

सिंदूर खेला एक खास बंगाली परंपरा है जो दुर्गा पूजा के अंतिम दिन, विजयादशमी को मनाई जाती है। इस रस्म में विवाहित महिलाएं दुर्गा माँ की विदाई से पहले एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर इस शुभ अवसर का जश्न मनाती हैं। यह परंपरा सौभाग्य, समृद्धि, और देवी दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रतीक मानी जाती है। सिंदूर खेला का आयोजन खासतौर पर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, और असम में किया जाता है।

     

       

दुर्गा पूजा


सिंदूर खेला की परंपरा    
विजयादशमी के दिन दुर्गा पूजा के दौरान जब माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करने का समय आता है, तब महिलाएं सबसे पहले माँ दुर्गा की पूजा करती हैं।     
महाआरती के साथ इस दिन की शुरुआत होती है। इस दौरान महिलाएं लाल रंग की साड़ियों में सजधज कर आती हैं, जो शक्ति और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती हैं। वे माँ को सिंदूर अर्पित करती हैं, और फिर देवी के चरणों में पान, मिठाई और चूड़ियाँ चढ़ाती हैं। आरती के बाद भक्तगण मां देवी को कोचुर, शाक, इलिश, पंता भात आदि पकवानों का प्रसाद चढ़ाते हैं। इसके बाद इस प्रसाद को सभी में बांटा जाता है। मां दुर्गा के सामने एक शीशा रखा जाता है, जिसमें माता के चरणों के दर्शन होते हैं। ऐसा मानते हैं कि इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। फिर सिंदूर खेला शुरू होता है। जिसमें महिलाएं एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाती हैं। वे गालों, माथे और माँग में सिंदूर भरकर एक-दूसरे के सुखी दांपत्य जीवन और उनके पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इसके बाद धुनुची नृत्य कर माता की विदाई का जश्न मनाती हैं। इसे शुभ माना जाता है और महिलाएं माँ से आशीर्वाद मांगती हैं ताकि उनके पति और परिवार में सुख-शांति बनी रहे। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दुर्गा विसर्जन किया जाता है।


सिंदूर खेला का महत्व    
सिंदूर खेला का मुख्य उद्देश्य विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य और समृद्धि की कामना करना होता है। सिंदूर का रंग लाल होता है, जो मंगल, शक्ति, और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। सिंदूर खेला न केवल एक धार्मिक परंपरा है बल्कि यह स्त्रियों के बीच प्रेम, एकता, और संस्कृति का भी प्रतीक है।

बदलती परंपराएं    
हालांकि, सिंदूर खेला पारंपरिक रूप से केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित थी, लेकिन आजकल इसे अधिक समावेशी बनाने की कोशिश की जा रही है। अब कई स्थानों पर इस परंपरा में अविवाहित महिलाएं, विधवाएं और ट्रांसजेंडर महिलाएं भी शामिल हो रही हैं, जो समाज में समानता और एकजुटता का संदेश देती हैं।

निष्कर्ष    
सिंदूर खेला एक उत्सव का रूप है, जिसमें प्रेम, आस्था, और सौहार्द का मेल होता है। यह पर्व दुर्गा माँ की विदाई के साथ सौभाग्य और समृद्धि की कामना का प्रतीक बन जाता है, जो बंगाली संस्कृति और उनकी धार्मिक भावनाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

   

     

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