Bhartiya Parmapara

ज़िंदगी के साथ भी, ज़िंदगी के बाद भी – जीवन दर्शन कहानी

ज़िंदगी के साथ भी ज़िंदगी के बाद भी 

ये क्या पोथी पुराण ले कर बैठे रहते हो जी। जब देखो पोस्ट करना फिर थोड़ी देर बाद फेसबुक में लाइक कमेंट्स देखना। क्या मिलता है समझ नहीं आता? 
आज अनुराधा सुबह–सुबह अपने पति मनोरम से तीखी आवाज़ में बोली।  
मनोरम ने पूछा– तुम्हें क्या हो गया है अनु? आज पारा सूरज की तरह गर्म क्यों लग रहा है?  
तभी अनुराधा बोली– हमारे कॉलोनी के सभी लोग बोलते हैं मुझे; तुम्हारे पतिदेव दिन भर पोस्ट करते रहते हैं और मोबाइल में घुसे रहते हैं। न जाने मेरे पीठ पीछे कितना रायता फैला रहे होंगे; पता चले तो समेटना मुश्किल हो जाएगा।

अच्छा! तो तुम ये क्यों नहीं बोलती कि वे एक साहित्यकार हैं, कविता–कहानियाँ लिखते हैं। मनोरम अनुराधा को बड़े ही सहजता से बोला।

अच्छा! अपने आप को बहुत बड़े साहित्यकार मानते हैं;  ये भी कोई शौक़ है भला! मुंह बनाती हुई अनुराधा बोली।

बिल्कुल! क्यों नहीं। विश्व में ऐसी कोई भी जगह नहीं छूटी है जहाँ मेरी कविताएँ न छपी हो; समझी! मनोरम ने बहुत ही प्रसन्न चित्त हो कर बताया।  
         
अच्छा! बताओ तुम बहादुर सिंह को जानती हो? मनोरम ने पूछा।

कौन बहादुर सिंह? मैं किसी बहादुर–वहादुर सिंह को नहीं जानती। मेरे रिश्तेदार थोड़ी न है; जिनको जानने का ठेका ले रखी हूँ। अनुराधा अपनी भौहें ऊँची करती हुई बोली।

अरे! ये क्या हमारे कॉलोनी के बाहर छोटी वाली गली में रहता है। मनोरम आश्चर्य से बोला।

रहता होगा मुझे क्या; आप क्यों पूछ रहे हैं बहादुर सिंह के बारे में? अनुराधा बोली।

फिर तुम पंडित सुंदरलाल शर्मा जी, महादेवी वर्मा जी और दिनकर जी को क्यों और कैसे जानती हो; क्या वे तुम्हारे रिश्तेदार थे या पड़ोसी? 
ये कैसा सवाल है जी? अनुराधा झल्लाती हुई बोली। 
वे तो महान आत्मा थे जिन्होंने हमारे देश के लिए कितना कुछ नहीं किया है, इसके अलावा बहुत ही नामी साहित्यकार भी थे। उन्हीं की कविताएँ और कहानियाँ पढ़ कर हम बड़े हुए हैं और आप जो कहानियाँ पोस्ट करके लाइक कमेंट्स चेक करते हो न; इन्हीं की पुस्तकें पढ़ कर प्रेरणा मिली होगी आपको।  
समझे! पतिदेव।

मनोरम मुस्कुराते हुए बोला शायद "दिमाग की बत्ती जल गई"। 
हाँ! ठीक ऐसे ही बहादुर जैसे कितने ही मनुष्य इस धरती पर आवागमन करते हैं। अगर ईश्वर ने हमको प्रतिभा दी है तो उसको बाहर लाना ही हमारा कर्तव्य है और शायद मैं मानता हूँ कि ईश्वर के द्वारा प्राप्त तोहफ़े को प्रदर्शित करना ईश्वर का सम्मान करना है। खाना–पीना, घूमना, पैसा कमाना ये तो हर मनुष्य का उद्देश्य है और ज़िम्मेदारी भी। जानवर भले ही पैसे न कमाते हों;  लेकिन सुबह–शाम खाने का बंदोबस्त तो करते ही हैं न! और एक दिन ऐसा आता है कि इस देह का अंत हो जाता है। हम में और जानवरों में क्या अंतर है बताओ ज़रा! मनोरम की बातें कुछ अनुराधा के सर के ऊपर से जा रही थी कुछ साँस के साथ अंदर। दुनिया में सिर्फ पैसा कमाना ही एक मात्र उद्देश्य नहीं होता है अनु। तुम अभी बता रही थी कि पड़ोसी बहादुर को नहीं जानती हो अगर वो कुछ अच्छा काम करता तो तुम नहीं जानती क्या? 
हम्म! अनु धीमे स्वर में बोली। 
          
मैं एक शासकीय पद में हूँ। साठ साल बाद रिटायर्ड हो जाऊँगा उसके बाद बस इधर–उधर घूमना फिर अंतिम सांस लेना। उसके बाद कॉलोनी वाले और मेरे कुछ साथीगण आ कर कुछ मिनटों तक शोक प्रदर्शित कर तुम्हें सांत्वना देंगे। तुम नहीं जान पाओगी कि ये घड़ियाली आँसू हैं या शत प्रतिशत उनके अपने आँसू हैं। कौन जानता है भला?

प्रतिभा ऐसी होती है जिससे कभी रिटायर्ड नहीं होते हैं। "ये जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी" रहती है।

अनुराधा आज मनोरम की किताब को अपने दोनों आँखों से लगाते हुए अपने आप को बहुत ही सौभाग्यशाली समझ रही थी।

                                    

                                      

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