
धर्म के मूर्तिमान स्वरूप श्रीराम
'धर्म' भारतीय संस्कृति का एक संकेत - शब्द है। धर्म मनुष्य को पूर्ण बनाता है, व्यक्ति को उन्नत बनाता है, जीवन के समस्त अंगों का समन्वय करना सिखाता है और सभी के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।
पुण्य भारत भूमि पर हजारों महापुरुष अवतरित हुए। उन्होंने उत्तम जीवन व्यतीत कर लोगों का मार्गदर्शन किया लेकिन 'विग्रहवान धर्म तो अकेले श्रीरामचंद्र ही हैं। राक्षस मारीच स्वभाव से आसुरी प्रवृत्ति से भरा था, किंतु उसने भी अपने प्रभु राक्षसराज रावण से श्रीरामचंद्र के संबंध में कहता है -' रामो विग्रहवान धर्मः' ।
अर्थात श्रीराम मूर्तिमान धर्म हैं। (वाल्मीकि रामायण 3/27 /13)
श्रीराम ने कहा है कि संसार की भलाई के लिए मंगलमूर्ति श्रीजानकी जी को भी त्यागना पड़े तो भगवान श्रीराम तैयार हैं। भगवान श्रीराम का ऐसे भीषण संकट काल में आविर्भाव हुआ, जबकि दुर्दांत रावण - कुंभकर्ण, मेघनाद, खरदूषण जैसे अगणित प्रबल अत्याचारी निशाचरों का अतिशय प्राबल्य था। श्रीरामचंद्र जी ने इन नृशंस दुष्ट दैत्यों का दलन कर भक्तजन का उद्धार किया तथा वैदिक धर्म एवं शास्त्रमर्यादा की सम्यक प्रकार से स्थापना की। भगवान श्रीराम के सभी चरित्र इतने आदर्श और महान हैं कि उनके स्मरण मात्र से ही त्रिविध ताप - शाप पलभर में विनष्ट हो जाते हैं।
पारिवारिक जीवन की दृष्टि से देखें, तो श्रीराम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई और आदर्श पति के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। माता-पिता और गुरुजन के प्रति उनमें असीम श्रद्धा और सम्मान के भाव हैं। भाइयों के प्रति उनके हृदय में अगाध प्रेम है, जिसका बखान स्वयं श्रीभरत जी अपने मुख से करते हैं - 'हारेहुँ खेल जितावहिं मोहीं' (रामचरितमानस 2/259/4)।
श्रीराम के आदर्श चरित्र में हमें स्नेह की कोमलता के साथ - साथ कर्तव्य के प्रति महान निष्ठा के दर्शन होते हैं। पिता के सत्य और धर्म की रक्षा के लिए युवराज पद पर अभिषेक के दिन वे समस्त राजसिक सुखों को त्यागकर जीवन के कठिन कंटकाकीर्ण वन की ओर अग्रसर होते हैं।
अपने आचरणों द्वारा मनुष्यों को धर्माचरण की शिक्षा देने के लिए भगवान विष्णु धर्म के चार स्वरूपों में प्रकट हुए। धर्म के ये चार स्वरूप हैं - सामान्य धर्म, विशेष धर्म, विशेषतर धर्म और विशेषतम धर्म। इनमें से भगवान श्रीराम ने 'पितृवचनपालन' के रूप में सामान्य धर्म का उपदेश दिया है। श्रीलक्ष्मणरूप से 'जीवात्मा भगवान का अंश है' अर्थात भगवान का अंश होने से भगवान की सेवा ही इसका कर्तव्य है, इससे विशेष धर्म का उपदेश दिया गया है।
श्रीभरत रूप से - 'जीवात्मा परमात्मा के परतंत्र हैं' का निर्वहन करते हुए विशेषतर का आचरण किया है। श्रीशत्रुघ्न रूप से 'जीवात्मा भागवतों (वैष्णवों) का दास है, इस विशेषतम धर्म का अपने आचरण द्वारा सेवा का प्रतिपादन किया गया है।
वाल्मीकि ने' श्रीरामायण' के द्वारा श्रीरामचरित्र के माध्यम से विश्व - राष्ट्रों और विश्व - मानवों को' मानवधर्म' का उपदेश दिया है और बताया है कि राम जैसा नर 'मानव' है और राम के जैसे चरित्र से मानवता की प्राप्ति हो सकती है। यही मानव चरित्र का आदर्श है।
प्राचीनकाल में इसका प्रभाव और प्रसार विश्व के समस्त देशों और चारों खण्डों में एक रूप से सर्वत्र व्याप्त था। आज भी इसका प्रभाव भारत के पूर्वीय द्वीपों और देशों में अविच्छिन्न रूप से सुरक्षित है। संपूर्ण भारतीय समाज के लिए समान आदर्शों के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक सब लोगों ने स्वीकार किया है। हिंदी में गोस्वामी जी की 'रामचरितमानस', पूर्व में 'कृत्तिवास-रामायण', दक्षिण में महाकवि कम्बन रचित 'कम्बरामायणम' तथा आदिकवि वाल्मीकि की 'श्रीरामायण' आदि में यही स्थापित किया गया है कि आसेतु-हिमाचल भारत के लिए प्रभु श्रीराम ही आदर्श हैं तथा सभी को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया गया है।
श्रीराम सदैव हमारे आराध्य रहे हैं। मंदिरों में मूर्ति - स्थापना करके उनकी पूजा-अर्चना करना प्रत्येक रामभक्त का कर्तव्य है। रामायण के अनुसार प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में एक भव्य श्रीराम मंदिर था। उसको सनातन धर्म के विरोधी मुगल शासकों ने 15 वीं शताब्दी में विध्वंस करवा दिया और उसके स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवा दिया। इस मस्जिद को दिसंबर 1992 में रामभक्तों द्वारा तोड़ दिया गया, फलतः मुस्लिमों ने विवाद उत्पन्न कर दिया। उच्चतम न्यायालय के अनुसार, लगभग 500 वर्षों बाद, भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिनांक 5 अगस्त 2020 को राममंदिर भूमिपूजन अनुष्ठान किया गया। हर्ष एवं गौरव का विषय है कि दिनांक 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर का लोकार्पण (प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम)प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों के द्वारा संपन्न होगा जिसमें भगवान राम, श्री लक्ष्मण जी और माता जानकी के भव्य विग्रह प्रतिस्थापित होंगे। यह धार्मिक अनुष्ठान संपूर्ण विश्व के लिए गौरवपूर्ण और प्रेरणास्पद रहेगा।
आज भी नीतिभ्रष्टता की शक्तियाँ हमारे समकालीन जीवन में बवंडर बनकर उतर रही हैं। हमारे दृष्टिकोण को विकृत कर रही हैं। आतंकवाद संपूर्ण विश्व के देशों के लिए विकट समस्या है। इसका निदान श्रीराम द्वारा स्थापित शौर्य और वीरता से आसुरी तत्त्वों पर विजय प्राप्त करने से होगा। हमें सनातन धर्म के चिरंतन आदर्शों के प्रतीक श्रीराम के चरित्र से धीर - वीर - गंभीर कर्तव्यपालन की प्रेरणा लेनी चाहिए।जय श्रीराम।
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