Bhartiya Parmapara

राम – सत्य और धर्म का सार

राम श्वांस है आश है, राम सत्य का मर्म ।
धुरी राम के  नाम की, टिका हुआ है धर्म ।।

समाया राम  नाम में , मर्यादा का रूप ।
संस्कृति संवाहक सदा, अद्भुत और अनूप ।।

मेरे गाँव की परिकल्पना – विकास और विनाश पर एक...

घायल पड़ी औरत को देखकर मैंने पूछा- अरे! तुम कौन? ऐसी दुर्दशा किसने की?उसने अपना नाम धरती बताते हुए कहा - "तुम मेरी छाती पर खड़े होकर मुझे ही भूल गए?“ यह एक प्रश्न था सिर्फ मेरे लिए ही नहीं बल्कि समस्त मनुष्य और मनुष्यता के लिए।

पुरुष - पितृ दिवस

ये पुरुष, जैसे विशाल समंदर का आगाज़
अनंत गहराई उसमें छिपे है कई राज़
छत मेरी, सर पे उसके जिम्मेदारियों का ताज

भावनाओं के किनारों में, ये कभी बंधता नहीं
कभी शांत, कभी उफ़ना के, शांत रहता नहीं
वो अपनी बात, कभी किसी से कहता भी नही

सावन गीत

सावन गीत (आल्हा छंद)
कितना मनभावन है सावन,
बाद एक दूजा त्यौहार।
भोले दूर करें तकलीफ़ें,
ख़ुशियाँ झूमे हर घर द्वार।

चाहत बस इतनी सी

फूल कहाँ माँगे थे मैंने, कब माँगी मँहगीं सौग़ातें,
ये भी कभी नहीं चाहा.. तुम चाँद सितारे ले आते!

कहाँ कभी चाहा मैंने] सोने चाँदी से लद जाना,
या ऊँची ब्रैंडिड गाड़ी में] घूम घूम कर इतराना!

आज का सबक - भारतीय परंपरा

आज जब परंपराओं की बात आती हैं तो हम एक कदम पीछे हटने लगते हैं।

हमसे जब कोई हमारी परंपराओं का जिक्र करने
लगता हैं तो हम निशब्द हो जाते हैं।

क्या यही हमारी भारतीय परंपराओं की पहचान हैं? 

नव वर्ष

नई उमंगें साथ लिए, नव वर्ष अब आया है।

बहुत कठिन था साल पुराना, छायी थी अंधियारी । दुर्भाग्य ने सबको घेर लिया आई थी लाचारी ।। डर, चिंता आतंक ने सबको बहुत सताया है। नई उमंगें साथ लिए, नव वर्ष अब आया है।।1।।

आतंक रूपी कोरोना से, सबको आफत आयी। जाने कितने चले गए, सब देने लगे दुहाई ।। क...

नहीं कर अभिमान रे बंदे

नहीं कर अभिमान रे बंदे, पल का नहीं ठिकाना बंदे ! दुनिया में लालच का मौका, चलती हवा का तेज झोंका, कब कहाँ उड़ा जाये बंदे ! नहीं कर अभिमान रे बंदे, पल का नहीं ठिकाना बंदे !

बचपन माँ की गोदी सोवत, माँ बाप का कर्जदार जगत, उनका कर्ज चुकाना बंदे! नहीं कर अभिमान रे बंदे, पल का नहीं ठिकाना बंदे!<...

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