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मानवीय सद्गुण की आज बड़ी जरूरत | विनम्रता की शक्ति

मानवीय सद्गुण की आज बड़ी जरूरत - 
आज जब समाज में संवेदनशीलता खत्म हो रही है मानवीय सदगुणों की बड़ी जरूरत महसूस की जा रही है। विनम्रता ऐसा सद्गुण है जो न तो कमजोरी है न ही झुकाव का प्रतीक बल्कि यह वह आंतरिक शक्ति है जिससे व्यक्ति दूसरों को जोड़ता है। इस गुण में टूटे हुए मनुष्य को जोड़ने की भी अद्भुत शक्ति है। 
गुरुदेव टैगोर का यह कथन कि "हम मानवता के सबसे तब करीब होते हैं जब हम विनम्रता में महान होते हैं।" आज के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है। जिस युग में स्वार्थ, दिखावा और अधिकार की होड़ ने संबंधों की आत्मा को कमजोर कर दिया है, वहां विनम्रता को कमजोरी समझा जाने लगा है लेकिन वास्तव में विनम्रता ही वह मानवीय गुण है जो व्यक्ति को आत्मकेंद्रित अहंकार से बाहर निकालकर व्यापक मानवता से जोड़ता है।

गुरुदेव टैगोर का मानना था कि महानता केवल उपलब्धियों से नहीं बल्कि उस संवेदनशीलता और नम्रता से मापी जानी चाहिए जिससे हम दूसरों के दुख को समझ सकें, सहानुभूति रख सकें और बिना किसी दिखावे के सहायता कर सकें।

जब व्यक्ति अपने 'मैं' को छोटा करके दूसरों के लिए कुछ करता है वहीं से सच्ची मानवता की शुरुआत होती है।

आज समाज में बढ़ती असहिष्णुता, आत्ममुग्धता और संवेदनहीनता के बीच गुरुदेव टैगोर की यह सीख हमें याद दिलाती है कि “मानव होने का अर्थ केवल शारीरिक रूप से मनुष्य होना नहीं बल्कि दूसरों की पीड़ा को अपना समझना और उसे कम करने के लिए आगे आना है।”

विनम्रता वही धरातल है जहाँ मानवता की असली नींव रखी जाती है। गुरुदेव का यह विचार न केवल एक आदर्श की ओर संकेत करता है, बल्कि आज के समाज को पुनः मानवीय बनाने की पुकार भी है। 

लेखक - अमृतलाल मारु जी, इंदौर
 

                                    

                                      

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