उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से पूर्व लगभग 272 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोरखपुर नगर आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। गोरखपुर छठी शताब्दी ईसा पूर्व सोलह महाजनपदों में से एक अंग था। माना जाता है कि चन्द्र वंश ने इस क्षेत्र पर शासन किया था, जिसमें राजा बृहद्रथ भी सम्मिलित थे। गोरखपुर मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त और हर्ष राजवंशों के तत्कालीन साम्राज्यों का एक अभिन्न अंग था।
प्राचीन समय में गोरखपुर के भौगोलिक क्षेत्र में बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़ आदि आधुनिक जनपद सम्मिलित थे। वैदिक अभिलेखों के अनुसार, अयोध्या के सत्तारूढ़ ज्ञात सम्राट इक्ष्वाकु, जो सौर राजवंश के संस्थापक थे, जिनके वंश में उत्पन्न सूर्यवंशी में रामायण के राम को सभी लोग जानते हैं, पूरे क्षेत्र में अति प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यता के प्रमुख केंद्र कोशल और मल्ल, जो सोलह महाजनपदों में दो प्रसिद्ध राज्य ईसा पूर्व छठी शताब्दी में विद्यमान थे। यह उन्हीं राज्यों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था। इसका नाम कई बार बदला, जैसे रामग्राम, पिप्पलिवन, गोरक्षपुर, अख्तनगर आदि। वर्ष 1801 में ब्रिटिश इंडिया कंपनी ने अवध के नवाब से गोरखपुर के अधिकार प्राप्त किए और तब इसका नाम गोरखपुर रखा।
भगवान बुद्ध से संबंधित पवित्र स्थल -
गोरखपुर में राप्ती और रोहिणी नदियों का संगम होता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में गौतम बुद्ध ने सत्य की खोज के लिए जाने से पहले अपने राजसी वस्त्र यहीं रोहिणी के तट पर त्याग दिए थे और सत्य की खोज में निकल पड़े थे।
भगवान महावीर का भी रहा जुड़ाव -
यह नगर समकालीन 24 वें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर की यात्रा के साथ जुड़ा हुआ है। भगवान महावीर की जन्मस्थली गोरखपुर से बहुत दूर नहीं है। बाद में उन्होंने पावापुरी में अपने मामा के महल में महानिर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया था। यह पावापुरी कुशीनगर से 15 कि.मी. की दूरी पर है।
हिन्दू संत गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखपुर -
मध्यकालीन समय में, इस शहर को मध्यकालीन हिन्दू संत गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखपुर दिया गया था। यद्यपि गोरक्षनाथ की जन्म तिथि अभी तक स्पष्ट नहीं है, तथापि जनश्रुति यह भी है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का निमंत्रण देने उनके छोटे भाई भीम स्वयं यहाँ आए थे। चूँकि गोरक्षनाथ उस समय समाधिस्थ थे, अतः भीम ने कई दिनों तक विश्राम किया था। उनकी विशालकाय लेटी हुई प्रतिमा आज भी प्रति वर्ष तीर्थयात्रियों की एक बड़ी संख्या को अपनी ओर आकर्षित करती है।
गोरखनाथ मंदिर -
गोरखनाथ मंदिर नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है। हिन्दू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना के अंतर्गत विभिन्न सम्प्रदायों और मत - मतांतरों में ‘नाथ सम्प्रदाय ‘का प्रमुख स्थान है। सम्पूर्ण देश में फैले नाथ सम्प्रदाय के विभिन्न मंदिरों तथा मठों की देखरेख यहाँ से होती है। नाथ सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानंद शिव के साक्षात् स्वरूप ‘श्री गोरक्षनाथ जी ‘त्रेतायुग में गोरखपुर, उत्तर प्रदेश और कलयुग में गोरखमधी, सौराष्ट्र में आविर्भूत हुए थे। चारों युगों में विद्यमान एक अयोनिज अमर महायोगी. सिद्ध महापुरुष के रूप में दक्षिण के एशिया के विशाल भूखण्ड तथा सम्पूर्ण भारत वर्ष को अपने योग से कृतार्थ किया।
गोरखनाथ मंदिर का निर्माण -
गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर में अनवरत योग साधना का क्रम प्राचीनकाल से चलता रहा है। ज्वालादेवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए गोरक्षनाथ जी ने भगवती राप्ती के तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी और उसी स्थान पर अपनी दिव्य समाधि लगाई थी, जहाँ वर्तमान में ‘श्री गोरक्षनाथ मंदिर स्थित है। महायोगी गुरु गोरखनाथ की यह तपस्याभूमि प्रारम्भ में एक तपोवन रूप में रही होगी और जनशून्य शांत तपोवन में योगियों के निवास के लिए कुछ छोटे-छोटे मठ रहे,मंदिर का निर्माण बाद में हुआ। आज हम जिस विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन कर हर्ष और शांति का अनुभव करते हैं, यह ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज जी की ही कृपा से है। महंत अवैद्यनाथ जी महाराज के संरक्षण में श्रीगोरखनाथ मंदिर की भव्यता. विशाल आकार-प्रकार, प्रांगण की भव्यता तथा पवित्र रमणीयता को प्राप्त हुआ। पुराना मंदिर नव निर्माण की विशालता और व्यापकता में समाहित हो गया है।
वर्तमान संत एवं योगी आदित्यनाथ (मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश) संत गोरखनाथ के सिद्धान्तों के अनुसार नाथ सम्प्रदाय के पीठाधीश्वर हैं, जिनको 14 सितंबर, 2014 को महंत नियुक्त किया गया है। कहा जाता है कि गोरखनाथ मंदिर में संत गोरखनाथ जी की समाधि और गद्दी (प्रार्थना स्थल) हैं। यहाँ मकर संक्रांति के अवसर पर हजारों श्रद्धालु आते हैं और एक माह तक चलने वाले विशाल ‘खिचड़ी मेला‘ में गोरखनाथ बाबा को खिचड़ी चढ़ाते हैं।
अखण्ड ज्योति -
मुस्लिम शासन में हिन्दुओं और बौद्धों के अन्य सांस्कृतिक केन्द्रों की भाँति इस पीठ को भी कई बार क्षति पहुँचाई गई। विक्रमी चौदहवीं सदी में भारत के मुस्लिम सम्राट अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में यह मठ नष्ट किया गया और साधक योगी बलपूर्वक निष्कासित किए गए थे। विक्रमी संवत सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मुगल शासक औरंगजेब ने इसे दो बार नष्ट किया. परन्तु शिव गोरक्ष द्वारा त्रेता युग में में जलाई गई अखण्ड ज्योति आज तक अखण्ड रूप में जलती हुई आध्यात्मिक- धार्मिक आलोक से ऊर्जा प्रदान कर रही हैं। यह अखण्ड ज्योति श्रीगोरखनाथ मंदिर के अंतरवर्ती भाग में स्थित है।
सामाजिक समरसता का प्रतीक है गोरखनाथ मंदिर -
गोरखनाथ मंदिर की सामाजिक समरसता समरसता विश्व समुदाय के लिए एक अद्वितीय उदाहरण है। ऊँच-नीच, छुआछूत और कुरीतियों के विरुद्ध समाज को जगाने में यह पंथ अग्रणी भूमिका निभाता है। पंथ के लिए हिन्दू और मुसलमान में कोई भेद नहीं है। इस संप्रदाय के साधक अपने नाम के आगे नाथ शब्द जोड़ते हैं। “कान छिदवाने के कारण उन्हें कनफटा, दर्शन कुण्डल धारण करने के कारण दरशनी और गोरखनाथ के अनुयायी होने के कारण गोरखनाथी भी कहा जा सकता है।”
मंदिर परिसर में पीढ़ियों से रहते हैं मुस्लिम परिवार भी मंदिर परिसर साम्प्रदायिक सद्भावना का केन्द्र है। यहाँ कई मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से रहते हैं और वे विभिन्न तरह के व्यवसाय का जीविकोपार्जन करते हैं। वे मंदिर की व्यवस्था में रचे - बसे हैं। मंदिर के चारों ओर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की बस्ती है।
मंदिर की दीवारों पर लिखी ये पंक्तियाँ एक बार आश्वस्त करती हैं कि सामाजिक- साम्प्रदायिक समरसता का नाथ सम्प्रदाय का ध्येय सुस्थिर रहेगा -
‘हिन्दू ध्याये देहुरा, मुसलमान मसीत। जोगी ध्यावे परमपद, जहाँ देहुरा न मसीत। ‘
अर्थात योगी मंदिर - मस्जिद का ध्यान नहीं करता, वह परमपद का ध्यान करता है, यह परमपद क्या है?? कहाँ है? यह परमपद तुम्हारे भीतर है। इसके अतिरिक्त यहाँ विष्णु मंदिर, गीता वाटिका, चौरी-चौरा स्मारक, नक्षत्रशाला, वाटर पार्क, नीर निकुंज, इंदिरा बाल विहार, प्रेमचंद पार्क. नेहरू मनोरंजन केन्द्र, रेल संग्रहालय, पंडित दीनदयाल उपाध्याय पार्क आदि अनेक दर्शनीय स्थान हैं, जो तीर्थयात्रियों को सहज ही आकर्षित करते हैं, उनमें से कुछ अन्य निम्नवत हैं -
तरकुलहा देवी
तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर से 20 किलोमीटर की दूरी पर तथा चौरी-चौरा से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह हिन्दू भक्तों के लिए प्रमुख धार्मिक स्थल है।
मंदिर से जुड़ा क्रांतिकारी बाबू बंधू का इतिहास -
सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के पहले यहाँ क्षेत्र में जंगल हुआ करता था। इस जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह रहते थे। वे बचपन से ही गोर्रा नदी के किनारे ताड़ के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर देवी की पूजा किया करते थे। तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह की इष्ट देवी थीं। जब वे बड़े हुए, तो भारतीयों के ऊपर अँग्रेजों के अत्याचार की कहानियाँ सुनकर, उनका खून खौल उठता था। बंधू सिंह गोरिल्ला युध्द में कुशल थे। इसलिए जब भी कोई अँग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह उसको मारकर उसका सिर देवी माँ के चरणों में समर्पित कर देते। क्षेत्र के एक व्यवसायी की मुखबिरी के चलते बंधू सिंह अँग्रेजों के हत्थे चढ़ गए। अँग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में प्रस्तुत किया गया. जहाँ उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 12 अगस्त, 1857 को गोरखपुर में अलीनगर चौराहा पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया गया। अमर शहीद बंधू सिंह को सम्मानित करने के लिए यहाँ एक स्मारक बना है।
आरोग्य मंदिर -
आरोग्य मंदिर शरीर के प्राकृतिक रूप से चिकित्सा संबंधी उपचारों के लिए काफी प्रसिद्ध है। गोरखपुर के उत्तर में मेडिकल कालेज रोड पर स्थित इस संस्थान में शहर के किसी भी स्थान से सुगमता से पहुँचा जा सकता है। यहाँ पर लोगों को मेडिटेशन और नेचुरल हीलिंग के तरीके सिखाए जाते हैं। पर्यटक यहाँ स्वास्थ्य लाभ के लिए पूरे वर्ष आते हैं।
गोरखपुर के औरंगाबाद का टेराकोटा विदेशों तक प्रसिद्ध -
गोरखपुर से उत्तर में बसे ग्राम औरंगाबाद का टेराकोटा व्यवसाय, जैसे मिट्टी के बर्तन, खिलौने तथा कलाकृतियों की धूम देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी है। यहाँ आने वाले तीर्थयात्री परम्परागत शिल्प - कला के नमूनों को देखकर चमत्कृत हो उठते हैं और वे भारत की गौरव - गरिमा से अभिभूत होते हैं।
गीता प्रेस -
गोरखपुर का गीता प्रेस बहुत पुराना विश्व स्तरीय प्रकाशन है। यह जाना-माना प्रतिष्ठान विगत कई वर्षों से धर्म और अध्यात्म का प्रकाश फैला रहा है। भारतीय संस्कृति एवं विदेश में अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सफल है। यहाँ सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक साहित्य की पुस्तकें बड़े स्तर पर प्रकाशित होती हैं।यहीं से प्रकाशित ‘कल्याण ‘नामक आध्यात्मिक मासिक पत्रिका अपने प्रकाशन के लगभग 100 वर्ष पूर्ण कर रही है। इसका बड़ी संख्या में प्रकाशन होता है, जिसका मूल्य अत्यल्प है। इसमें विज्ञापन प्रकाशित नहीं होते हैं।
रामगढ़ ताल इसका मूल नाम रामग्राम था। यह पूर्वांचल का मरीन ड्राइव बन चुका है। यहाँ लाइट एंड साउंड शो के साथ सायं को अद्भुत दृश्य होता है।
कुसुम्ही वन -
यह घना जंगल है। इस जंगल के बीच बुढ़िया माई का मंदिर है। इस मंदिर की ख्याति दूर - दूर तक फैली है। यहाँ प्रतिदिन श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या दर्शन के लिए पहुंचती है। यहाँ विनोद वन पार्क भी है।
राजकीय बौद्ध संग्रहालय -
इसकी स्थापना 1987 में विविध तत्वों के संरक्षण के लिए की गई है। यहाँ पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक की पुरातात्विक वस्तुएँ हैं। इसमें पत्थर की वस्तुएँ, कांस्य की मूर्तियाँ, धातु की वस्तुएँ. टेराकोटा के बर्तन, पाण्डुलिपियां, हाथी दांत, लघु चित्र, पुराने सिक्के आदि कई चीजें प्रदर्शित हैं।
गोरखपुर तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ पहुँचने के लिए प्रायः सभी प्रमुख स्थानों से वायु मार्ग, रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग से पर्याप्त सुविधा-संसाधन उपलब्ध हैं। यहाँ आने के लिए कभी भी योजना बनाई जा सकती है। माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने अयोध्या, वाराणसी, नैमिषारण्य जैसे अनेक तीर्थ स्थलों के साथ गोरखपुर को भी विशिष्ट पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का संकल्प लिया है।

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