Bhartiya Parmapara

माँ से सास तक: विभा की शक्ति और सामंजस्य की यात्रा

किरदार 

 

पलक झपकते ही जैसे उम्र की सीढ़ियां पीछे छूटने लगी। जीवन रूपी पगडंडी पर चलते हुए अनेक उतार-चढ़ाव आए किंतु विभा धैर्य से सब कुछ सहकर हर स्थिति में सामंजस्य बिठा ही लेती।

आज तक अपनी हर भूमिका उसने बड़े ही शिद्दत से निभायी अब नजर अतीत के पन्नों से हटकर भविष्य के सुनहरे पन्नों की कल्पना करने लगी। उसकी अँगुली थामकर चलने वाला उसका लाड़ला पता ही नहीं चला कब यौवन की दहलीज पर आ गया।

अपनी प्रतिभा और परिश्रम से वह हर मुकाम हासिल कर ही लेगा उसकी मां होना विभा के लिए किसी सम्मान या उपलब्धि पाने से कम नहीं था। छोटी सी उम्र में बड़े बड़े ख्वाब देखना और उन्हें मुकम्मल करने में दिलो-जान से जुट जाना। 
यह देखकर मन ही मन विभा अपनी परवरिश पर इतरा उठती छोटी बेटी भी बहुत समझदारी से रहती।  गृहस्थी संतुष्टि से हंसी खुशी चल रही थी, अब बेटे के ब्याह की बातें होने लगी।

विभा को खुशी के साथ साथ अपने नए किरदार में कैसे सामंजस्य स्थापित करें, यह चिंता रहने लगी एक सासू मां की भूमिका में खरा उतरना बड़ा ही चुनौती पूर्ण काम है।

बहु को हर क्षेत्र में पारंगत करने की दृष्टि से कुछ सिखाने का प्रयास करें और वह इस बात को नकारात्मक ले तो मुश्किल और उसे कुछ न सिखाए तो परिवार, समाज, रिश्तेदारों में वह उपहास का पात्र भी बन सकती हैं। उसके रहते उसकी बहु पर कोई टिका टिप्पणी करे, उसे यह भी मंजूर नहीं सोच के सागर में डूबी विभा आज निर्णय लेने में असमर्थ महसूस कर रही थी।

किंत उसने मन ही मन हिम्मत बटोरी और निर्णय लिया वह अपने बहूं संग मित्रवत व्यवहार रखेगी और जीवन में आने वाली हर चुनौती से हंसी खुशी मुकाबला करने के लिए तैयार करेगी उसकी बहूं किसी के मध्य उपहास का पात्र बने यह उसे स्वीकार्य नहीं रहेगा। 
 

                                    

                                      

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