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रामायण महाभारत के युद्ध बनाम आधुनिक युद्ध

रामायण महाभारत के युद्ध बनाम आधुनिक युद्ध 

भारत की प्राचीन युद्ध परंपरा रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में परिलक्षित होती है, जहाँ युद्ध को धर्म और नीति का साधन माना गया है। इसके विपरीत, 20वीं एवं 21वीं सदी के युद्ध मुख्यतः राजनीतिक सत्ता, भू-सामरिक प्रभुत्व एवं आर्थिक संसाधनों के नियंत्रण हेतु लड़े गए हैं—और कुछ अब भी लड़े जा रहे हैं।

युद्ध का उद्देश्य: 

रामायण में युद्ध रावण जैसे अधर्मी राजा के विरुद्ध था, जिसने स्त्री का अपहरण कर धर्म का उल्लंघन किया। महाभारत में युद्ध कौरवों के अन्याय, छल और सत्ता के अनुचित हरण के विरुद्ध अंतिम उपाय के रूप में हुआ। दोनों महाकाव्यों में युद्ध धर्म की स्थापना हेतु अपरिहार्य माना गया। 
इसके विपरीत, आधुनिक काल के युद्धों का उद्देश्य राष्ट्रहित, सामरिक रणनीति, प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण तथा वैश्विक प्रभुत्व बन चुका है।

युद्ध की नैतिक संहिता: 

रामायण-महाभारत में युद्ध के स्पष्ट नैतिक नियम थे। रात्रिकालीन युद्ध निषिद्ध था, समकक्ष योद्धाओं के मध्य ही युद्ध की अनुमति थी, निहत्थे अथवा शरणागत पर आक्रमण वर्जित था। दुर्योधन को गदा युद्ध में जंघा पर प्रहार को लेकर विद्वानों में आज भी नैतिक बहस होती है, जो उस युग की युद्ध नीति की गहराई को दर्शाता है। 
आधुनिक युग में जिनेवा संधि जैसी संहिताएं युद्धों को कुछ हद तक नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं, किंतु नागरिकों को लक्षित करना, रासायनिक हथियारों का उपयोग और साइबर युद्ध जैसी अमानवीय प्रवृत्तियाँ इन नियमों का उल्लंघन करती हैं।

संधि प्रयास: 

रामायण और महाभारत काल में युद्ध न हो, इसके लिए भरपूर प्रयास किए जाते थे। श्रीराम ने रावण को संधि प्रस्ताव भेजने हेतु अंगद को भेजा, जबकि युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण को धृतराष्ट्र के पास संधि प्रस्ताव लेकर भेजा। 
आज के युग में संधियाँ युद्ध समाप्त करने के लिए होती हैं, वह भी शक्तिशाली देशों के दबाव में। अधिकतर संधियों में वही देश लाभान्वित होता है, जिसके पक्ष में सामरिक महाशक्तियाँ खड़ी रहती हैं।

युद्ध के साधन एवं तकनीक: 
रामायण-महाभारत काल में धनुष-बाण, गदा, तलवार, रथ, अश्व एवं दिव्यास्त्र युद्ध के प्रमुख साधन थे। दिव्यास्त्रों का प्रयोग सीमित और उद्देश्यपूर्ण होता था, जिनके लिए तपस्या और मंत्रज्ञान आवश्यक था। 
वर्तमान युद्ध प्रणाली में मिसाइल, परमाणु बम, टैंक, युद्धक विमान, ड्रोन, उपग्रह-आधारित निगरानी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित साइबर हमले शामिल हैं, जो युद्ध को अत्यधिक विनाशकारी बना चुके हैं। युद्ध अब भौतिक रणभूमि से हटकर आभासी सीमाओं में भी लड़े जा रहे हैं।

नेतृत्व और सैनिक की भूमिका: 

रामायण-महाभारत में राजा स्वयं युद्ध का नेतृत्व करता था और अग्रिम पंक्ति में लड़ता था। आज युद्ध का नेतृत्व वार रूम और नियंत्रण केंद्रों में सीमित है, जहाँ से तकनीकी माध्यमों से संचालन होता है। सैनिकों की भूमिका व्यक्तिगत शौर्य से अधिक एक सामूहिक प्रणाली का अंग बन गई है।

युद्धोपरांत स्थिति: 

प्राचीन काल में युद्ध के पश्चात सामाजिक पुनर्निर्माण एवं धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा पर बल दिया जाता था। श्रीराम का रामराज्य और युधिष्ठिर का शांतिपूर्ण शासन इसके उदाहरण हैं। युद्ध से हुई क्षति के लिए राजा प्रायश्चित भी करता था। 
आधुनिक युद्धों के उपरांत दीर्घकालिक सामाजिक, मानसिक एवं पर्यावरणीय संकट उत्पन्न होते हैं। पुनर्निर्माण प्रक्रिया बहुराष्ट्रीय हितों के अधीन रहती है और शांति स्थापना जटिल होती जा रही है।

निष्कर्ष:  

रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य युद्ध को केवल शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि धर्म और नीति की परीक्षा मानते थे। आधुनिक युद्ध, इसके विपरीत, नैतिकता से दूर तकनीकी अतिरेक और वैश्विक असंतुलन के प्रतीक बन गए हैं। आज की दुनिया को आवश्यकता है कि वह प्राचीन युद्ध परंपराओं से प्रेरणा लेकर युद्ध की नैतिकता और मानवता को पुनः केंद्र में स्थापित करे। मानवता की रक्षा के लिए कोशिश तो यही होना चाहिए कि युद्ध न हो। यदि युद्ध जैसी परिस्थितियां निर्मित भी हो तो बातचीत से समाधान निकाला जाना चाहिए।

 

                                    

                                      

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