आयुर्वेद में चांगेरी घास (Changeri) — जिसे संस्कृत में “चांगेरी”, “अम्लिका”, और इसे "इंडियन सोरेल" या खट्टी-मीठी घास भी कहते है — यह एक अत्यंत गुणकारी औषधीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम “Oxalis corniculata” है। यह छोटी सी दिखने वाली घास शरीर के कई विकारों को संतुलित करने की क्षमता रखती है। यह छोटे, तीन-पत्तियों वाले पौधे के रूप में होता है और इसका स्वाद खट्टा होता है। इसका उपयोग पाचन संबंधी समस्याओं, बवासीर और मसूड़ों की बीमारियों, फोड़े -फुंसियों जैसे विविध स्वास्थ्य समस्याओं का निवारण के लिए किया जाता है। यह आमतौर पर सड़क के किनारे, खेतों और बागों में पाई जाती है। इसकी तासीर गर्म होती है।
🌿 चांगेरी घास के प्रमुख आयुर्वेदिक लाभ -
चांगेरी को "छोटी लेकिन चमत्कारी जड़ी-बूटी" यूं ही नहीं कहा जाता। इसके प्रमुख लाभ -
1. 🧘♀️ पाचन तंत्र के लिए अमृत समान
- चांगेरी में अम्ल (acidic) और पाचक गुण होते हैं, जो भूख बढ़ाते हैं।
- गैस, कब्ज, पेट फूलना, या अपच जैसी समस्या में इसके रस या चूर्ण का सेवन अत्यंत लाभकारी होता है।
- आयुर्वेद में इसे “अग्निदीपक” यानी पाचन अग्नि को प्रज्वलित करने वाला माना गया है।
2. 💪 यकृत (लिवर) को मजबूत बनाती है
- यह लिवर की कार्यक्षमता को सुधारती है और शरीर से विषाक्त तत्व (toxins) निकालने में मदद करती है।
- जॉन्डिस (पीलिया) या भूख न लगने की स्थिति में इसके रस का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है।
3. 🧫 एंटीबैक्टीरियल और सूजन-रोधी गुण
- इसके पत्तों में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो संक्रमण को रोकते हैं।
- त्वचा पर लगाने से हल्के घाव, कीड़े के काटने या जलन में राहत मिलती है।
4. 🩸 रक्तशुद्धि और रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाना
- चांगेरी का नियमित उपयोग शरीर से विषाक्त पदार्थ निकालकर रक्त शुद्धि में मदद करता है।
- यह इम्यूनिटी (प्रतिरोधक क्षमता) को प्राकृतिक रूप से बढ़ाता है।
5. ⚖️ वात-पित्त-कफ संतुलन
- आयुर्वेद के अनुसार यह त्रिदोषनाशक है — विशेषकर पित्त और कफ को शांत करती है।
- इससे शरीर में स्फूर्ति और मानसिक स्थिरता आती है।
🌿उपयोग के पारंपरिक तरीके
रस रूप में: ताजे पत्तों का रस (2–3 चम्मच) दिन में दो बार पानी के साथ ले सकते है।
चूर्ण रूप में: सूखे पत्तों का चूर्ण 1–2 ग्राम सुबह गुनगुने पानी के साथ ले।
बाहरी उपयोग: पत्तों को पीसकर घाव या जलन वाले स्थान पर लगाने से तुरंत राहत मिलती है।
आपकी शारीरिक प्रकृति (वात–पित्त–कफ) के अनुसार चांगेरी घास का उपयोग कैसे, कितनी मात्रा में और कितने समय तक करना सबसे लाभकारी रहता है।
🌿 1. वात प्रकृति वालों के लिए (Vata Prakriti)
(जिन्हें अक्सर शरीर में दर्द, गैस, कब्ज़, ठंड लगना, नींद की कमी या बेचैनी रहती है)
उपयोग विधि:
- चांगेरी के ताजे पत्तों का रस 2 चम्मच गुनगुने पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट लें।
- अगर रस उपलब्ध न हो, तो सूखे पत्तों का चूर्ण 1 ग्राम शहद के साथ ले सकते हैं।
अवधि: 21 दिन लगातार, फिर 1 हफ्ता विराम, और पुनः 21 दिन।
लाभ:
- गैस, जोड़ों का दर्द, पाचन कमजोरी और तनाव में राहत मिलती है।
- शरीर में स्थिरता और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
🔥 2. पित्त प्रकृति वालों के लिए (Pitta Prakriti)
(जिन्हें अक्सर जलन, चिड़चिड़ापन, एसिडिटी, पसीना अधिक आना या नींद कम आना होता है)
उपयोग विधि:
- 2 चम्मच चांगेरी रस को 1 गिलास ठंडे पानी या एलोवेरा जूस (30ml) में मिलाकर सुबह नाश्ते से पहले लें।
- सूखे पत्तों का चूर्ण 1 ग्राम मिश्री के साथ ले सकते है।
अवधि: लगातार 30 दिन तक, फिर 15 दिन का अंतर करके दुबारा 30 दिनों तक ले।
लाभ:
- पित्त विकार, एसिडिटी, त्वचा पर लालपन, और चिड़चिड़ेपन में बहुत लाभकारी है।
- लिवर मजबूत होता है और चेहरा पर निखार आता है।
💧 3. कफ प्रकृति वालों के लिए (Kapha Prakriti)
(जिन्हें अक्सर वजन बढ़ना, सुस्ती, खांसी, बलगम या आलस्य की समस्या रहती है)
उपयोग विधि:
- 2 चम्मच चांगेरी रस में 1 चुटकी अदरक का रस या काली मिर्च पाउडर मिलाकर सुबह लें।
- सूखे पत्तों का चूर्ण 1 ग्राम गुनगुने पानी के साथ करें।
अवधि: 40 दिन तक लगातार सेवन करें।
लाभ: पाचन तेज होता है, शरीर हल्का महसूस होता है, और प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।
⚠️ ध्यान में रखने योग्य बिंदु (सभी प्रकृतियों के लिए)
मात्रा: अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से पेट में हल्का खट्टापन या जलन हो सकती है।
समय: इसे केवल सुबह या दोपहर में लें। रात में इसका सेवन न करें।
दूरी: सेवन के कम से कम 30 मिनट बाद तक दूध, चाय या कॉफी न पिएँ।
सावधानी:
- अत्यधिक एसिडिटी होने पर रस की मात्रा आधी रखें।
- गर्भवती महिलाएं और छोटे बच्चे वैद्य की सलाह के बिना सेवन न करें।
चांगेरी वास्तव में “छोटी लेकिन चमत्कारी जड़ी-बूटी” है — जो शरीर को शुद्ध करती है, पाचन को सुधारती है और ऊर्जा देती है।

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