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बुद्ध पूर्णिमा का महत्व व संदेश

बुद्ध पूर्णिमा

 

बुद्ध पूर्णिमा, जिसे "वैशाख पूर्णिमा" भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का एक अत्यंत पावन पर्व है। यह दिन भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महापरिनिर्वाण – तीनों घटनाओं की स्मृति में मनाया जाता है। यह पर्व वैशाख माह की पूर्णिमा को आता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई महीने में होता है।

भारतीय परंपरा में बुद्ध न केवल एक महान संत हैं, बल्कि उन्हें एक अवतार के रूप में भी देखा जाता है। श्रीमद्भागवत एवं अन्य पुराणों में भगवान विष्णु के दस अवतारों में बुद्ध का भी उल्लेख है। उनका जीवन त्याग, अहिंसा, करुणा और आत्मबोध का प्रतीक है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था।  
राजकुमार सिद्धार्थ ने सुख-सुविधाओं से भरपूर जीवन को त्यागकर सत्य और मुक्ति की खोज में तपस्या का मार्ग अपनाया। बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे 'बुद्ध' कहलाए – अर्थात ‘जाग्रत आत्मा’।

बुद्ध पूर्णिमा पर भारतवर्ष में विशेष पूजा, ध्यान, सत्संग और दान का महत्व है। बौद्ध विहारों और मंदिरों में इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अनुयायी बुद्ध वचनों का पाठ करते हैं, धम्मचक्र प्रवर्तन की स्मृति में प्रवचन होते हैं, और दीप जलाकर करुणा का प्रकाश फैलाया जाता है। इस दिन उपवास, सेवा, और अहिंसा का विशेष पालन किया जाता है। बुद्ध का संदेश “अप्प दीपो भव” – स्वयं दीपक बनो, आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उन्होंने जीवन के दुःखों को समझने और उनसे मुक्ति पाने का जो मार्ग बताया– अष्टांगिक मार्ग, वह मानवता को शांति और संतुलन की ओर ले जाने वाला पथ है।

बुद्ध पूर्णिमा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आत्म निरीक्षण और आंतरिक शांति की ओर बढ़ने का एक अवसर है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सच्चा ज्ञान और करुणा ही मानव जीवन को सार्थक बनाते हैं।

                                    

                                      

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