
“क्योंकि जल होगा तो कल होगा”
हम बहुत से वरिष्ठजन नियमित रूप से शाम के समय मैदान में बैठ आपस मे किसी भी विषय पर बातचीत करते आ रहे हैं। धरा को हरा-भरा रखने के लिये दो बिन्दु पर जो निर्णय लिया उस पर हम सभी वृक्षारोपण अभियान चला ही रहे हैं ताकि हमारे आच्छादित जगह में वाष्पीकरण के द्वारा वर्षा भारी मात्रा में हो सके। उसी समय लिये गये निर्णय अनुसार जल विषय पर हमें हमारे स्तर पर जल संरक्षण पर कैसे आगे बढ़ना उचित रहेगा, पर भी गहन विचार विमर्श पश्चात सबने स्वीकार किया कि जल की फिजूलखर्ची को रोकना यक्ष प्रश्न है। इसलिये यह आवश्यक है कि हम सभी को यह निगरानी तो रखनी ही पड़ेगी ताकि पीने का पानी पीने के अलावा अन्य कार्य में उपयोग न हो।
इसका मतलब यह है कि हमें पानी बचाने के लिए पहल करने की जरूरत है चाहे कमी हो या न हो यानि स्वयं ही जल के महत्व को समझ अपने स्तर से ही इस मुहिम की शुरुआत कर अमोल पानी को बचाने का प्रयास अति आवश्यक है। अतः हम सब मिलकर इस विषय पर निम्न बिन्दुओं पर जागरूकता का आगाज अपने अपने घर से शुरू कर ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल सरंक्षण के निम्न उपाय अपनाने का आग्रह करेंगे अर्थात सभी के बीच जागरूकता फैलायेंगे –
* सबसे पहले नल की टोटियां जिससे पानी रिसता हो भले ही घर की हो या फिर सार्वजनिक पार्क, गली, मोहल्ले, अस्पताल, स्कूलों आदि में उसे तुरंत ठीक करवाना है।
* मंजन करते समय, दाढ़ी बनाते समय नल तभी खोलें जब सचमुच पानी की ज़रूरत हो।
* गाड़ी को पानी से धोने की बजाय गीले कपड़े से साफ कर लेने वाली प्रक्रिया अपना लेने का आग्रह करेंगे ताकि पानी बचे।
* सभी से निवेदन कर/समझा बुझाकर रसोई घर में लगे पानी शुद्धिकरण यन्त्र [आरओ] एवं वातानुकूलक [ए सी] निकलने वाले पानी को घर वाले पौधों को पानी देने के काम में लेने या फिर यह पानी घर में पोछा लगाने में काम में लेने वाली प्रक्रिया को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करेंगे ताकि उस स्तर भी जितना पानी बचाया जा सकता हो उसे बचायें।
* दाल, चावल को धोने के बाद पानी को यदि हम पौधों में डालते हैं तो यह पौधों में पोषण देने का काम करते हैं जिससे बगिया हरी भरी रहती है।
* ऐसी ही पाकपात्र [कुकर], कढ़ाई गंदे ही नल के नीचे रख दें जिससे सब्ज़ी वगैरह धोते समय गिरने वाला पानी से वो भर जायेंगे और साफ करना आसान हो जायेगा।
* नित्य कपड़े धोने की बजाय कपडे इकट्ठे होने पर ही धोएं। कपड़े जो हाथ से धोते है, तो पानी खंगालने के बाद हम नाहनघर [बाथरूम] धो सकते हैं अथवा शौचासन [कमोड] में भी डाल सकते हैं।
* गर्मियों के दिनों में टंकी का पानी गरम हो ही जाता है इसलिये बाल्टियों में पानी भर कर थोड़ी देर के लिये छोड़ दें ताकि नहाते वक्त ठंडा पानी मिल सके।इसके अलावा स्वविवेक से कम पानी से नहाने की आदत पर ध्यान केंद्रित करें। सभी से आग्रह करेंगे कि इस काम के लिए आप भारत रत्न सचिन तेंदुलकर से प्रेरणा ले सकते हैं जो सिर्फ १ बाल्टी पानी से ही नहाते हैं।
* सम्भव हो तो दो बटन वाले संप्रवाही टंकी [फ्लश टैंक] उपयोग में लें जो पेशाब के बाद थोड़ा पानी और शौच के बाद ज्यादा पानी का बहाव देता है।
* बर्तन धोते समय भी नल को लगातार खोले रहने की बजाय अगर बाल्टी में पानी भर कर काम किया जाए तो काफी पानी बच सकता है।
* पीने के लिये पानी गिलास में पूरा भर के लेने की बजाय उतना ही लें जितना पीना है। इसी तरह किसी को देना है तो पानी भरकर शीशी [बोतल] या सुराही [जग] के साथ गिलास दे दें ताकि सामने वाला जितना पीना होगा उतना ही अपने आप ले लेगा। इस तरह से भी काफी पानी बचाया जा सकता है।
* चिलमची [वॉश बेसिन] के नीचे भी पानी नियंत्रण करने के लिए एक टोटी लगी होती है, अक्सर वो पूरी खुली होती है। अतः पानी बचाने के उद्देश्य से उसे पूरा नहीं खोल, उतना ही खोलेंगे जिससे पानी का प्रवाह कम हो जाए ताकि हाथ धोने में तकलीफ भी न हो और पानी बर्बाद भी न हो।
* बाग़ बगीचों में दिन की बजाय रात में पानी से सिंचाई करने से पानी का वाष्पीकरण रुकेगा। साथ ही पौधों में नली [पाइप] से पानी देने के बजाय कनस्तर [वाटर कैन] से पानी देने से हम पानी बचा भी पायेंगे।
* वर्षाजल संचयन के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना भी आवश्यक है।इसके लिये आवासन समितियों /आवास कल्याण संगठनों की सहायता से मकानों की छत पर वर्षाजल एकत्र करने के लिये एक या दो टंकी बनाकर उन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढककर जल संरक्षण किया जा सकता है।
संक्षेप में हम सभी का इरादा पानी व्यर्थ नहीं बहे साथ ही उसका आवश्यकतानुसार बुद्धिमानी से उपयोग हो क्योंकि पानी की बर्बादी सिर्फ उसे बर्वाद करने वाले को ही नहीं बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करती है। इसलिये जल संरक्षण के उन मुख्य विन्दुओं पर ही हम आगे बढ़ रहे हैं, जो हम अपने स्तर पर लागू करवा सकते हैं।
अब आशा करता हूँ कि प्रबुद्ध पाठक उपरोक्त बताये कारणों व जल संरक्षण उपायों से ज्यादा बहुत कुछ स्वयं भी समझ गये होंगे क्योंकि जल संरक्षण की जिम्मेदारी केवल मनुष्य के जिम्मे है, केवल और केवल मनुष्य के जिम्मे है। इसलिए हम सभी को प्रण लेकर पानी बर्बादी को रोककर अपने जीवन व प्रकृति को हरा-भरा तथा खुशहाल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में चूकना नहीं है।
अन्त में यही बताना चाहता हूँ कि योग, तंत्र, आयुर्वेद, ज्योतिष इत्यादि सभी ने जिन पांच मूल तत्वों से शरीर का निर्माण बताया उसी को संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी एक चौपाई लिख पूरे मानवजाति के सामने पर्यावरण का एक सही खाका खींच दिया था और उस चौपाई में जिन विशिष्ट पांच तत्वों का उल्लेख किया उसमें जल को भी विशिष्ट तत्व मान उल्लेख किया गया है जिसे आज के वैज्ञानिकों ने न केवल स्वीकारा है बल्कि मान्यता भी दी है और वह चौपाई इस प्रकार है–
"छिति जल पावक गगन समीरा ।पंच रचित अति अधम सरीरा ।।”
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