
"मैं बहुत थक गयी हूँ। अब एक कदम भी नहीं चला जाता है मुझसे। सुबह से शाम तक बस; सिर्फ काम ही काम। सुनिए जी, आज मैं घर पर ही रहूँगी। आप जाइये काम पर।" नन्हीं चींटी सोना ने अपने पति डंबू से कहा।
डंबू ने सोना को चिढ़ाते हुए कहा - "ओह ! तो आज मेरी सोना थक गई है। आराम फरमाएगी। अच्छा...!"
डंबू की बात से सोना तमतमा गयी। कहने लगी- "मैं आपसे ज्यादा वजनदार सामान उठाती हूँ, लेकिन आज थोड़ी थकान महसूस हो रही।" डंबू ने कहा- "ठीक है, आज तुम आराम कर लो। कल साथ में चलेंगे।" सोना ने मुस्कुराते हुए कहा- "लो आप जाइए।" डंबू काम पर चला गया।
दिन भर डंबू काम करता रहा। शाम को घर वापस आया। खाने का कुछ सामान ले आया था। घर के अंदर रखा। सोना से कहा - "सोना, तुम्हारी तबीयत कैसी है ?"
सोना सेब के टुकड़े को चबाते हुए मजे से बोली- "मैं बिल्कुल अच्छी - भली चंगी हूँ।"
सोना घर में रहने का बहुत आनंद ले रही थी। डंबू को बात समझ आ गयी। उस समय उसने कुछ नहीं कहा। अगले दिन सुबह डंबू ने सोना से भोजन की व्यवस्था के लिए अपने साथ चलने की बात कही। सोना फिर बहाना मारने लगी। लेकिन डंबू अच्छी तरह समझ गया। सोना को समझाते हुए कहा- "देखो सोना, मुझे पता है कि तुम काम पर नहीं जाना नहीं चाहती। क्यों कर रही हो ऐसा ?"
डंबू का मुंह ताकती हुई सोना उसकी बातें सुन रही थी- "हम चींटी हैं। हम घर पर बैठ कर आराम नहीं कर सकते। बहाना तो इंसान बनाते हैं; हम चींटियाँ नहीं। जब तक मेहनत नहीं करेंगे, भला हमें भोजन कैसे और कहाँ से मिलेगा?" तभी बीच में ही सोना का कहना हुआ - "हाँ, तुम सही कह रहे हो। जीवन में मेहनत जरूरी है।"
डंबू बोला - "हाँ बिल्कुल। अब सर्दी का मौसम आ रहा है। भोजन ढूंढना मुश्किल होगा। इस बात को समझो। चीटियाँ कभी हार नहीं मानतीं। जब कोई इंसान कमजोर पड़ने लगता है तो हम से ही मेहनत करने की सीख लेता है कि एक छोटा सा जीव जब हार नहीं मानता है तो हम क्यों हार माने। इंसानों को हमारी मेहनत, एकता और साहस ही मजबूत बनाता है। धरती में सबसे ज्यादा मेहनतकश प्राणी के रूप हमारी गिनती होती है। तुम ऐसे कमजोर नहीं पड़ सकती। सोना को डंबू की बातें समझ में आ गयी। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। फिर डंबू और सोना दोनों भोजन की तलाश में निकल पड़े।
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