
नारी एक-दायित्व अनेक, पर ठोस सशक्तिकरण बाकी...
मनुस्मृति के अध्याय ३ में उल्लेखित "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" [श्लोक ५६] का आशय है "जहां स्त्री जाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं"।
इसी प्रकार हमारे वेदों, ऋग्वेद हो या यजुर्वेद, सामवेद हो या अथर्ववेद, सभी में नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान किया गया है। इसलिये भले ही मनुस्मृति को विवादास्पद ग्रन्थ मानें लेकिन इसमें वर्णित उपरोक्त श्लोक हमारे पूर्वजों के विचारों / मान्यताओं को प्रतिपादित करता है। अतः यह स्पष्ट है कि हमारे समाज में नारी का सनातन काल से ही एक महत्वपूर्ण सम्मानित स्थान है।
इसलिये हम कह सकते हैं कि हमेशा से नारी केंद्र में ही रही है यानि वैदिक काल से लेकर आज तक हमेशा नारी की सुरक्षा, शिक्षा पर हमेशा ध्यान दिया गया है और हर तरह से सम्मानजनक स्थान देने की कोशिशें होती रही हैं। लेकिन इसके बावजूद नारियाँ आज तक अपना सही स्थान पाने के लिये संघर्ष कर रही हैं। यह सभी जानते हैं कि संसार में किसी भी पुरुष की उत्पत्ति और उसकी पहचान एक नारी से ही होती है और इस दुनिया में वह चाहे जितना महान हो एक नारी के कोख से ही जन्म लेकर मृत्यु को प्राप्त करता है।
अब आज के परिप्रेक्ष्य में महिलाओं के सशक्तिकरण का सवाल बहुत मायने रखता है क्योंकि जब महिलायें सशक्त होंगी तभी वे अपने घर के साथ साथ समाज को भी सशक्त बना पायेंगी। यह सर्वमान्य तथ्य है कि एक सशक्त समाज की सशक्त राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इस तरह महिलाएं राष्ट्र निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाती हैं।
इन सबको जानते हुए भी सारे राजनैतिक दल संरक्षण के साथ सशक्तिकरण के वायदे तो बहुत करते हैं, लेकिन अभी भी विधानसभाओं एवं संसद की तो बात छोड़िये, नौकरी में महिलाओं को 30% आरक्षण दिया नहीं गया है जिसके चलते आज भी महिलायें संघर्षरत हैं। इसके बावजूद पारिवारिक हो या सामाजिक, व्यावसायिक क्षेत्र हो या नौकरी सभी जगह महिलायें अपना परचम फैलानें में सफल नज़र आ रही हैं। इन सबके पीछे मुख्य कारण है, हम सबकी बदली हुई सोच यानि आज परिवार हो या सरकार सभी बाल विवाह, भ्रूण हत्या, दहेज़ प्रथा, बाल मजदूरी, घरेलू हिंसा आदि सब पर सामाजिक एवं क़ानूनी रूप से प्रतिबंध लगाने में एक सक्रिय भूमिका अदा की है।
इस तरह हमारे देश में बालिका शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, बाल विवाह, स्वास्थ्य वगैरह क्षेत्रों में अनेकों सुधारात्मक कदम भी निरन्तर उठाये जा रहे हैं जिसके चलते आजकल महिलायें तकनीकी, प्रबंधकी, प्रशासनिक, आर्थिक, रक्षा वगैरह अनेक क्षेत्रों में कार्यरत हैं यानि आज शायद ही ऐसा कोई सैक्टर होगा जिसमें महिलाओं की उपस्थिति दर्ज ना हुई हो। उदाहरण के तौर पर आज अनेकों महिलायें सफल वैज्ञानिक के तौर पर दवा क्षेत्र हो या अन्तरिक्ष सभी जगह अपना परचम फैला रही हैं। इसी तरह विदेशी मामले हो या कानूनी या फिर रक्षा, सभी जगह अपनी पैठ बना पाने में सफल हैं।
अन्त में आपके ध्यानार्थ नौकरी वाले स्थान में सुरक्षा की दृष्टि के साथ साथ सुविधा से सम्बन्धित अनेक सार्थक कदम भी उठाए गए हैं।
इसके साथ साथ महिलाओं को आत्म-प्रतिरक्षा के गुर भी व्यापक रूप से सिखाये जा रहे हैं ताकि वे अपना बचाव स्वयं कर सकें।
इन सबके बावजूद यह उल्लेखित करना भी जरूरी है कि अभी भी महिलाओं के संरक्षण और सशक्तिकरण वाली प्रक्रिया जारी रखना अति आवश्यक है क्योंकि अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।
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