
भारत रत्न गुलजारी लाल नन्दा
योजना, सिंचाई एवं उर्जा मन्त्रालय के अलावा गृहमंत्री, श्रम एवं रोजगार मन्त्री फिर रेलमंत्री के अलावा न केवल योजना आयोग के अनेक वर्षों तक उपाध्यक्ष रहे बल्कि दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे सिद्धान्तवादी, मितव्ययी भारत रत्न गुलजारी लाल नन्दा जी के १२६वीं जयन्ती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुये आपको बताना चाहता हूँ कि स्व. नन्दा जी को कुरुक्षेत्र को भारत के पर्यटन स्थल पर स्थापित करवाने के लिये हमेशा श्रद्धापूर्वक याद किया जायेगा।
इसके अलावा इनके अथक प्रयास से देश में एक ऐसा सशक्त श्रम कानून आ पाया जिसको आज तक बदलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। ये सिद्धांतों के पक्के ऐसे राजनेता थे जिन्होंने खुलकर इन्दिरा गांधी के आपातकाल लगाने के फैसले से न केवल नाराजगी जताई बल्कि उस आपातकाल के बाद सभी नामीगिरामी हस्तियों के बारबार मनाने के बावजूद कभी चुनाव नहीं लड़ा। उस समय स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते हर स्वतंत्रता सेनानी को ५०० रुपये प्रति महीने का पेंशन भत्ता मिलता था, लेकिन नन्दा जी ने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार कर दिया था, कि ‘उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी ही नहीं है'।
अब मैं आप सभी को दृढ संकल्पित सिद्धान्त के पक्के नन्दा जी के साथ घटी दो घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ -
१) नन्दा जी जब गृहमन्त्री थे तब उन्होंने अपने ही राजनीतिक दल के एक बड़े नेता को भ्रष्टाचार केस में दोषी पाया तो बिना विलम्ब उन्होंने उसे गिरफ्तार करवा जेल भेज दिया। हालांकि इस घटना से उनके दल के अनेक सदस्य नाराज हो गये लेकिन ये अपने निर्णय पर अटल रहे फलस्वरूप उन सभी भ्रष्टाचार में संलिप्त नेताओं ने उनके खिलाफ षड्यंत्र रचकर उन्हें गृह मंत्रालय से हटवा दिया!
२) दूसरी घटना जो इनकी मृत्यु के मात्र छह वर्ष पूर्व घटी जिसके अनुसार एक बार एक पत्रकार यह देख आश्चर्यचकित रह गया कि दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी स्थित एक मकान के सामने एक ९४ वर्ष के वरिष्ठ, अपने बहुत ही अल्प सामान के साथ उस मकान से निकाले जाने पर उस मकान के बाहर मकान मालिक से किराया चुकाने के लिये थोड़ा और वक्त माँग रहा है। साथ ही कुछ पडो़सी भी उस बूढ़े के शालीन व्यवहार के चलते मकान मालिक को राजी करने की चेष्टा कर रहे हैं। कुछ ना नुकर के बाद मकान मालिक राजी तो हो जाता है लेकिन उसकी अनिच्छा स्पष्ट झलक रही थी।
यह सब देख, सुन पत्रकार ने उन सभी की जो फोटो ले ली थी, के साथ यह समाचार अपने समाचारपत्र में प्रकाशन हेतु अपने समाचारपत्र के मालिक को जब प्रस्तुत किया तो उस पत्र के मालिक ने उस पत्रकार से पूछा यह बूढ़ा कौन है?
तो उसने अपनी अनभिज्ञता जतायी। लेकिन अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था, ”भारत के पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”। उस खबर में सम्पादक ने एक टिप्पणी भी लिखी कि आजकल के राजनीतिज्ञ खूब पैसा कमा रहे हैं जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं।
इस समाचार का असर ही था कि अगले दिन ही वर्तमान प्रधानमंत्री ने मंत्रियों और विशिष्ट अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने विशिष्ट अधिकारियों के वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार, श्री गुलजारीलाल नंदा भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे। मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों पर झुक गया।
अधिकारियों और विशिष्ट अधिकारियों ने गुलजारीलाल नंदाजी से जब सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया तब नन्दाजी ने बड़ी ही विनम्रता से उन्हें "बिना श्रम किये जनता से टैक्स में मिले पैसा लेना महापाप है", बता निरूत्तर कर दिया साथ ही इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।
अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे गांधीवादी एवं सिद्धांत के प्रति संपूर्ण रूप से प्रतिबद्ध और ईमानदार स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। ऐसे निर्लोभी, वास्तविक फकीर और संत महापुरुष को वर्ष १९९७ में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी व श्री एच डी देवगौड़ा के मिले-जुले सद्प्रयासों से भारत रत्न से सम्मानित किया गया ।
अन्त में हम सभी यही आशा करते हैं कि वर्तमानकाल के राजनेताओं में से भी कोई तो ऐसा उभरेगा जो श्री गुलज़ारीलाल नन्दा जी जैसे मन-वचन और कर्म से न केवल पवित्र बल्कि अपने किये गये वादों के प्रति ईमानदार, प्रतिबद्धता एवं सत्यनिष्ठा के साथ अपने सिद्धांतों के प्रति अडिग खड़ा दिखायी देगा।
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