
अक्षय तृतीया
वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को बसंत ऋतु का समापन होकर ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है और इसी दिन को हम सनातनी 'अक्षय तृतीया' या 'आखा तीज' के रूप में मनाते हैं। यह दिन अबूझ या सर्वसिद्ध या स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में माना गया है, इसलिये सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन अबूझ मुहूर्त होने के कारण किसी भी तरह के शुभ कार्य किये जा सकते हैं यानी बिना कोई पंचांग देखे हर प्रकार का शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, किसी भी प्रकार के नए काम की शुरुआत से लेकर महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी वगैरह काम भी बिना किसी शंका के किए जाते हैं। यही कारण है इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। जिसका अर्थ है कि इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है। माना तो यहाँ तक जाता है कि इस दिन यदि हम जाने-अनजाने में किये गए अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करें तो भगवान उन अपराधों को क्षमा ही नहीं करते बल्कि हमें सदगुण भी प्रदान कर देते हैं। यही कारण है कि आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में हमेशा हमेशा के लिए समर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा है।
अक्षय तृतीया से जुड़े अनेकों तथ्यों में से कुछ पौराणिक तथ्य या घटनाएं जो इतिहास के पन्नों में अपना विशेष स्थान बना चुके हैं, प्रस्तुत करते है -
1] भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है यानि सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ इस तिथि पर ही हुआ था ।
2] अक्षय तृतीया के दिन प्रभु विष्णु के 3 अवतारों की पूजा की जाती है। एक भगवान परशुराम, दूसरा नर नारायण और तीसरा हयग्रीव क्योंकि इन सभी का जन्म आज ही के दिन हुआ था ।
3] एक तथ्य यह भी है कि प्रभु विष्णु जी के छठे अवतार भगवान परशुराम (आठ पौराणिक पात्रों में से एक हैं) जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है और इसी अमरता के चलते ही यह तिथि अक्षय मानी गयी है।
4] ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी और श्री विष्णु जी का विवाह इसी दिन हुआ था।
5] आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था यानी भागीरथ जी तपस्या के बाद गंगा जी को इसी दिन धरती पर लाए थे।
6] ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था ।
7] मान्यता है कि भंडार और रसोई की देवी माँ अन्नपूर्णा जिनका दूसरा नाम 'अन्नदा' भी है, का जन्म भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।
8] आज ही के दिन प्रभु महादेव ने कुबेर की तपस्या से खुश हो ऐश्वर्य का आशीर्वाद दिया जिससे उन्हें माता लक्ष्मी की प्राप्ति हुई।
9] कुबेर जी ने तुरंत ही माता लक्ष्मी जी की पूजा इसी दिन से ही प्रारम्भ कर दी, कुबेरजी द्वारा प्रारम्भ की गयी मां लक्ष्मी जी की पूजा की परंपरा के आधार पर ही भारत में अक्षय तृतीया वाले दिन लाल कपड़े में नए बही खाते शुरू किए जाने की प्रथा का शुभारम्भ हुआ।
10] द्वापर युग में प्रभु श्रीकृष्ण के परम बाल सखा सुदामा अक्षय तृतीया के दिन ही प्रभु श्रीकृष्ण से मुलाकात कर उपहार में उन्हें बड़े ही संकोच के साथ सूखे चावल भेंट किए थे जिसके चलते उनके भौतिक जीवन का उद्धार हुआ।
11] महर्षि वेदव्यासजी और श्री गणेश जी ने इस शुभ दिन से ही महाकाव्य महाभारत के लेखन का कार्य प्रारंभ किया था।
12] चीरहरण के वक्त द्रौपदी की पुकार पर प्रभु श्रीकृष्ण ने आज ही के दिन उसे चीरहरण से बचा कर उसकी इज्जत की रक्षा करी थी।
13] अक्षय तृतीया के दिन ही पाण्डव ज्येष्ठ युधिष्ठिर को वरदान स्वरुप वह अक्षय पात्र मिला जिसमें रखी हुई भोजन सामग्रियां तब तक अक्षय (ख़त्म नहीं होगी) रहेंगीं, जब तक द्रौपदी उसमे से परोसती रहेगी।
14] अक्षय तृतीया के दिन ही द्वापर युग के साथ महाभारत युद्ध का भी समापन हुआ था।
15] प्रसिद्ध पवित्र तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी के कपाट भी अक्षय तृतीया वाली तिथि से ही दर्शन के लिए खोले जाते हैं।
16] साल में एक ही बार अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर वृंदावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर में भक्तों को श्री विग्रह चरण के दर्शन होते हैं अन्यथा बाकी दिनों में पूरे साल चरण वस्त्रों से ढके रहते हैं।
17] बसन्त पंचमी से प्रारम्भ हुए लकड़ी के चयन पश्चात अक्षय तृतीया वाले दिन से ही जगन्नाथ पूरी में आयोजित होने वाली रथयात्रा की तैयारी बलराम, सुभद्रा और भगवान श्रीकृष्ण के रथों के निर्माण के साथ आरम्भ हो जाती है।
18] अक्षय तृतीया जैन धर्मावलंबियों के महान धार्मिक पर्वों में से एक है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान, जिन्हें भगवान आदिनाथ भी कहा जाता है, ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। इसी कारण से जैन धर्म में इस दिन को अक्षय तृतीया के साथ साथ 'इक्षु तृतीया' भी कहते हैं। इसलिये अक्षय तृतीया कहिये या इक्षु तृतीया वाला यह दिन भगवान आदिनाथ, जैनों के पहले भगवान की स्मृति में मनाया जाता है।
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