
अरे गंगा मौसी आज फिर आपने आने में देरी कर दी मुझे समय से शाला पहुंचना होता है, विद्यार्थियों को अनुशासन सिखाती हूँ तो मुझे भी अनुशासित रहना चाहिए। बहूरानी अभी कर देती हूँ काम चिंता ना करो, आज हो गई जरा देरी। बहूरानी हमारी बस्ती में बच्चे शाला तो जाते है पर पढ़ते नहीं है। मेरे अगल बगल की सभी महिलाएं पूछने लगी क्या तुम्हारी मेमसाब हर इतवार आकर हमारे बस्ती के बच्चों को पढा देगी...?
हां मौसी क्यों नहीं... आज के बच्चों के हाथों कल देश का भविष्य है और विद्यादान तो सर्वश्रेष्ठ दान है, बच्चे किस शाला में जाते हैं मुझे वहां भी ले चलना मैं वहां के अध्यापकों से बात करूंगी ठीक है। अभी तो मुझे शाला जाना है। कल शाम तुम बस्ती के बच्चों को और उनके माता-पिता को एक जगह बुलाकर रखना।
दूसरे दिन संध्या समय नेहा बस्ती में गई वहां का वातावरण और बच्चों में अत्यधिक उदंडता देख वह आहत हुई उसने मन ही मन निश्चय किया इस बस्ती में वह ज्ञान यज्ञ की अखंड ज्योत प्रज्वलित कर अपना जीवन सार्थक करने के साथ ही बच्चों के उज्जवल भविष्य निर्माण में सहायक बनेगी यह कार्य था तो चुनौती पूर्ण किंतु संकल्प से सिद्धि मिलती ही है यह सोचकर वह प्रबल आत्मविश्वास के साथ सेवा कार्य में जुट गई। करीब करीब तेरह चौदह बच्चे आए थे हर इतवार सुबह तीन घंटे की क्लास होना तय हुआ। नेहा शुरुआत में बच्चों को बोधात्मक कहानियां सुनाती जिस से उनका अध्ययन के प्रति रुझान बढ़े, उनके भीतर आत्मविश्वास की ज्योत जगमगाये। कुछ बच्चों के साथ सामंजस्य स्थापित करने में समय जरूर लगा पर नेहा की मेहनत रंग लाई।
धीरे धीरे बच्चों में अध्ययन के प्रति रुचि विकसित हुई उनमें संस्कार के बीज बो दिए थे जो पौधा बन विकसित होने तैयार थे। बच्चों में अपने करियर के प्रति जागरूकता देख नेहा को अत्याधिक खुशी हुई। बच्चों के मन में भी परिवार की काया पलट हो यह इच्छा निर्माण हुई और वह उस दिशा हेतु अध्ययन करने लगे जब कोई कठिनाई आती वह नेहा टीचर से अपनी समस्या साझा करते। अपनी व्यस्तता के बावजूद शिक्षिका नेहा ने जो बच्चे बड़े हो गए थे उन्हें उच्च शिक्षा के लिए तैयार करने के उद्देश्य से प्रतिदिन एक घंटे की क्लास अपने घर में लेने लगी कुछ सहायक अध्यापक भी इस शिक्षा यज्ञ में शामिल हुए। शिक्षिका नेहा निरंतर इस सेवा कार्य में लगी थी। अलग-अलग सेवा भावी संस्थाओं से होनहार छात्रों को आर्थिक मदद का भी इंतजाम करने लगी।
आज वर्षों बाद बस्ती के तीन बच्चे जो अब उच्च शिक्षा ग्रहण कर आत्मनिर्भर बन गये और अच्छे वेतन के साथ उनकी नियुक्ति हुई थी। आज शिक्षक दिवस पर नेहा टीचर का आशीर्वाद लेने आये उनके नेत्रों से आनंदाश्रु बह रहे थे, वो नेहा टीचर के चरण स्पर्श कर भावविभोर हो कह रहे थे टीचर अंधेरे से निकाल आपने हमारे जीवन को रोशनमय किया आज हम गुरु दक्षिणा देने में समर्थ है। आप आज्ञा दीजिए... हम आपका ऋण चुका तो नहीं सकते किंतु आपके द्वारा चल रहे इस ज्ञान यज्ञ की ज्योत में किसी न किसी रूप में आहुति जरूर दे सकते हैं। अपने सपने को साकार रूप में देख नेहा ने कहा बेटा "शिक्षा जीवन का आधार है" यह शिक्षा रूपी यज्ञ खंडित ना हो पाए बस तुम्हें इसका ध्यान रखना होगा।
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