
🪔 संकट चौथ व्रत
भारतीय संस्कृति जो कि धर्म पर आधारित है इसलिए धार्मिक दृष्टि से व्रत का विधान भी है। प्राय: हर मास कोई ना कोई व्रत अवश्य पड़ता है।
चौथ का व्रत वैसे तो हर मास ही आता है और कुछ लोग हर मास की चौथ का व्रत करते हैं लेकिन इन चौथ में सबसे अधिक महत्व माघ मास की शुक्ल पक्ष की चौथ का है। यह चौथ अपना एक विशेष महत्व रखती जो हर मास की चौथ नहीं रखते हैं वह भी संकट चौथ का व्रत अवश्य ही करने का प्रयास करते हैं।
संकट चौथ को कुछ अन्य नामों से भी पुकारा जाता है जैसे संकटा चौथ, तिल चौथ, लंबोदर चतुर्थी तथा माघी चौथ आदि।
🌟 व्रत का महत्व तथा पूजन विधि –
संकट चौथ का विशेष महत्व है, यह व्रत अपनी संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना लेकर किया जाता है। अपनी संतान के सुख के लिए मां दिनभर निराहार रहकर व्रत करती है कहीं-कहीं तो यह व्रत निर्जला भी किया जाता है वृत्ति पानी भी नहीं पीता, फिर गोधूलि की बेला में प्रथम पूज्य गणपति की पूजा आरती अर्चना करता है। पूजा के समय गणेश जी के ऊपर हरी दूब अवश्य चढ़ाई जाती है। क्योंकि गणेश जी को दूब अति प्रिय है। गणेश पूजन के साथ ही साथ डूबते हुए सूर्य की पूजा भी की जाती है।
पूजा करने के बाद व्रत करने वाला कथा कहता है अथवा सुनता है, कहने अथवा सुनने दोनों से ही पुण्य लाभ होता है।
पूजा में प्रसाद तिल का लगाया जाता है और उसमें काले तिल का अधिक महत्व होता है पूजा में भी तिल का प्रयोग होता है तथा प्रसाद में भी तिल का ही भोग लगता है।
इस दिन विशेष रूप से बथुआ का भी अपना महत्व है, गणेश जी की पूजा करते समय गणेश जी 57 पिंडी बथुए की रखी जाती हैं बथुआ उबालकर छोटी-छोटी पिंडी बना देते हैं।
रात में जब चंद्रमा निकलता है तब चंद्र दर्शन करके चंद्र भगवान की भी पूजा की जाती है और उनको भी प्रसाद लगाया जाता है तिल का ही प्रसाद लगाना होता है तथा बथुआ भी चढ़ाया जाता है
चंद्रमा की पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। हाथ में सुपारी, दूब, कुमकुम, चावल, सिक्का तथा तिल रखकर गंगाजल मिला पानी डालकर अरख देते हैं। अरख देते समय यह मंत्र बोलते हैं –
तिल तिल दियारा, तिल तिल बाती।
तिल तिल जले संकट की राती बांधे छूटे बिछड़े मिले।
पूजन करने के बाद व्रत करने वाली महिला अपना व्रत फलाहार खाकर तोड़ती है सर्वप्रथम बथुआ तथा तिलकुट खाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन अर्थात संकटा चौथ के दिन गणेश जी के ऊपर बहुत बड़ा संकट आया था इसलिए इसे संकटा चौथ कहते हैं तथा माताएं इसलिए व्यक्त करती हैं कि उनके बच्चों के ऊपर संकट नहीं आए।
जो माता व्रत करें वह 1 दिन पहले सात्विक भोजन करें तथा व्रत वाले दिन प्रातः काल जल्दी स्नान कर लाल वस्त्रों को धारण करें तथा चौकी बिछाकर लाल कपड़ा बिछाकर गणपति जी को विराजित कर उनकी पूजा करें तथा अपने बच्चों की सुख कामना करें।
📖 कथा –
राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था वह मिट्टी के बर्तन बनाता तथा आवा लगाकर पका कर उन्हें बेचकर अपना तथा परिवार का पालन पोषण करता था।
कुछ दिनों के बाद कुम्हार जब भी आवा लगाता आवा पकता नहीं बर्तन कच्चा ही रह जाते वह बहुत परेशान हो गया तब एक तांत्रिक के पास गया, तांत्रिक को उसने अपनी समस्या बताई, तांत्रिक ने उसे एक उपाय बताया कि आप आवाज लगाते समय एक बच्चे की बलि दो और अब आ के अंदर ही बर्तनों के साथ बच्चे को अंदर बैठा कर आवा बंद कर दो। कुम्हार ने तांत्रिक के बताए अनुसार ही किया। अब आवा पक गया उसके अंदर से टन टन की आवाज आने लगी अब कुम्हार बहुत घबरा गया वह राजा के पास गया तथा पूरी घटना बताई। बच्चे की मां बच्चों को ढूंढ रही थी तथा उसने संकट चौथ का व्रत रखा था अपने बच्चे की सलामती के लिए। सबके सामने आवा खोला गया सब बड़े आश्चर्य में पड़ गए कि बालक जिंदा बैठा था और एक डंडी से बर्तनों को बजा रहा था।
गणेश जी की कृपा से उसके जीवन की रक्षा हुई तब से राजा ने डौंडी पिटवा दी सभी लोग संकट चौथ का व्रत करेंगे। कथा सुनते समय हाथ में जो तिल और चावल लिए जाते हैं वह भगवान को अर्पण कर कथा समाप्त होती है। यह कथा हम सुबह भी कह सकते हैं तथा शाम को भी कह सकते हैं किसी प्रकार का बंधन नहीं है।
।गणपति महाराज की जय।
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