Bhartiya Parmapara

रिश्तों की डोर - पतंग से मिली जीवन सीख

आसमान में उड़ती रंग बिरंगी पतंगों ने विभा का ध्यानाकर्षण किया वह टकटकी लगाए उन्हें अपलक निहार रही थी। तभी "ये कटी, ये कटी" की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की यह आवाज मानों उसके कानों में शूल चुभा रही थी, उसकी आंखों के समक्ष जीवन की वास्तविकता का चित्रण उभर आया और आंखें सजल हो गई।

आसमान में ऊंची उड़ती पतंग सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। वह पतंग चक्री से जुड़ी थी चक्री जिसने पकड़ी थी पतंग ने उसपर पूर्ण विश्वास रख स्वयं को समर्पित किया था। पतंग को भी अनेक झंझावतों से गुजरना पड़ता है, कभी ढील दी जाती है तो कभी डोर को कसकर खिंचा जाता है किन्तु वह सारी क्रियाओं को कुशलता पूर्वक संपन्न करने में सक्षम रहती है तभी तो जीत का ताज पहनने में कामयाब होती है।       

काश! विभा ने भी अपने परिवार रूपी चक्री का साथ निभाया होता तो आज दशा और दिशा कुछ और ही होती किन्तु विपुल के उच्च पद पर आसीन होने से वह डोर से बँधे बिना ही उड़ना चाहती थी बिना बंधन के उड़ना कैसे संभव होता है वह उड़ान तो क्षणिक ही होती है और उसका अन्त और भी भयावह होता है। विभा की जिद के आगे विपुल की एक न चली और संयुक्त परिवार से अलग हो उसने अपना अलग आशियाना सॅंजों लिया किन्तु आंधी तूफान कब कहकर आते है।

रात में अचानक से विपुल के छाती में दर्द होने लगा। घबराहट के चलते विभा को फोन लगाने में भी हाथ कांप रहे थे, अब इस आलीशान कोठी में वह नितांत अकेली थी। आधा पौन घण्टा यूं ही असमंजस की स्थिति में बीत गया। परिवार साथ होता तो शायद समय पर कुछ उपचार संभव हो पाता किन्तु अब उसके पास सिवा पश्चाताप के कुछ शेष न रहा आसमान में उड़ती पतंगों ने आज बिना कुछ कहे ही जीवन का पाठ पढ़ा दिया।

                           

                             

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