Bhartiya Parmapara

रंगारंग होली के गीत – रसिया और परंपरागत धुनों का उत्सव

आ गया फागुन मास ढोलक की थाप मंजीरे और झांझ की मधुर ध्वनि के साथ होली गायन का मौसम। होली राग रंग का लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है संगीत और रंग इसके प्रमुख अंग हैं। होली गायन की परंपरा प्राचीन काल से है बसंत पंचमी से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है।

होली का त्योहार हमारे देश में भिन्न-भिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न प्रकार से मनाया जाता है। लेकिन मथुरा की पारंपरिक लठमार होली पूरे देश में प्रसिद्ध है। मथुरा तथा वृंदावन में 15 दिन तक होली का त्योहार मनाया जाता है साथ ही में होली का गायन भी जो विशेषकर के आकर्षण का केंद्र भी है। रसिया ब्रज क्षेत्र का लोकगीत है जिसमें भगवान कृष्ण, राधा एवं गोपियों के संग होली खेलने का वर्णन होता है। हास्य एवं व्यंग का समायोजन देखने को मिलता है। रस की दृष्टि से यह श्रृंगार रस प्रधान होता है। भक्ति रस के रसिया भी उपलब्ध हैं। कुछ पारंपरिक रसिया जो प्रायः गाए जाते हैं –

1) 
मैं नगर नैनी तेरो यार नवल रसिया 
बड़ी-बड़ी अखियां ने नैनन कजरा, 
तेरी टेढ़ी चितवन मन बसिया।। 
अतलस को याको लहंगा सौहे, 
झिलमिल सारी मेरे मन बसिया।। 
छोटी सी अंगुरिन मुंदरी सौहे, 
याके बीच आरसी मन बसिया।। 
बाँहबरा बाजूवंद सौहेयाके, 
हियरे हार दिपत छतियाँ।। 
रंग महल में सेज बिछाई, 
याको लाल पलंग पंचरग तकिया।। 
पुरुषोतम प्रभु देख विवस भये, 
सबै छाँड बृज में बसिया।।

                             

                               

2) 
नैननि में पिचकारी दई,  
मोहि गारी दई होरी खेली न जाय।। 
तेरे लंगर लंगराई मों सों कीन्ही, 
केसरि कींच कपोलनि दीन्ही, 
लै गुलाल ठाढो मृदु मुसकाय।। 
नैक न कानि करत काहू की, 
आँरव बचावत बलदाऊ की, 
पनघट सौं घर लों बतराय।। 
औचक कुचनि कुमकुमा मारे, 
रंग सुरंग सीस पै डारै, 
अंग लपटि हँसि हा हा खाय।। 
होरी के दिनन मौं सौं दूनों दूनों अटके, 
सालिगराम कौन जाय हटकै, 
यह ऊधम सुनि सासु रिसाय।।

                             

                               

3) 
बाजी रही पैजनिया, छम छम बाज रही। 
कौन ने बनाए दई पांव पैजनियाँ, कौने कमर करधनिया। 
कौने गढ़ाई दऔ गरे को हरवा, कोने नाक नथुनियां।। 
ससुर बनाई दई पाँय पैजनियॉ, जेठा कमर करधनियॉ 
दिवर गढ़ाई दऔ गरे को हरवा, सैंया नाक नथुनियॉ, 
कैसे टूटी पाँय पैजनियाँ, कैसे कमर करधनियाँ।। 
कैसे टूटो गले को हरंवा, कैसे नाक नथुनिया। 
नाचत टूटी पाँय पैजनियाँ, मटकत कमर करधनियाँ 
लिपटत टूटो गले को हरवा, चूमत नाक नथुनिया। 
छम छ्म बाज रही, बाज रही पैजनियाँ।

हमारे देश में होली गायन की एक समृद्ध परंपरा रही है। चांग की ढ़ाप और रसिया गीत का अनूठा समावेश होली के त्योहार पर चार चाँद लगा देता है। चतुर्वेदी के सभी गांव में प्रत्येक राग में होली के गीत गाए जाते है। मथुरा में रसिया, पुरा ताल गांव में लेद, होलीपुरा में धमार, चन्द्रपुर मे ठ्डउआ, तरसोखर में जकड़ी, जगहों पर राग में गायन होता है। शास्त्री संगीत में 25 रागों में गायन होता है हमारी पारंपरिक होलियां के गीत प्राय: सभी रागों में गाए जाते है।

यदि हम वर्तमान समय की बात करें तो आजकल रसिया का विकृत रूप हमें देखने और सुनने को मिलता है जिन्हें परिवार के साथ बैठकर सुना भी नहीं जा सकता। हमारे जो परंपरागत रसिया तथा होली के गीत थे उनको हम सुरक्षित रखें एवं साथ ही में उनका प्रचार-प्रसार भी करें।

आप सभी को होली की शुभकामनाएं।

                             

                               

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