Bhartiya Parmapara

परीक्षा और परवरिश की कहानी: दादाजी की सीख और राघव की जीत

राघव देखा तुमने पिछले तीनों एग्जाम में अंकित ने कैसे बाजी मारी कभी तो तुम भी टॉप कर हमारा नाम रोशन कर दिया करो कहते हुए सोनिया अपने कमरे में सोने चली गई।

राघव अनमना सा हो पढ़ने की कोशिश कर रहा था किंतु वह विषय उसकी रूचि का न होने से उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था और कुछ देर पहले मम्मी की कही हुई बात मानो उसके कानो में शूल चुभो रही थी इस बार अच्छे अंक प्राप्त करने का वह भी प्रयास कर रहा था किंतु पढ़ाई और मम्मी का दबाव दोनों बनने से वह तनाव महसूस करने लगा और इस वजह से पढाई में अपना ध्यान भी केंद्रित नहीं कर पा रहा था। कठिन विषय ऊपर से दबाव रहने के कारण उसकी मानसिक अवस्था विचलित होने लगी उसने लाइट बंद कर दी और अपने टेबल लैंप को चालूं कर नकल की छोटी छोटी पर्चियां बनाने लगा कल के पेपर में नकल करने का उसने मानस बना लिया था।

तभी कमरे में दादाजी ने प्रवेश किया और लाइट चालूं की तो वह हड़बड़ा गया और उसकी पर्चियां नीचे गिर गई। दादाजी को सारा माजरा समझते देर न लगी। उन्होंने प्यार से उसकी पीठ सहलाते हुए समझाया बेटा बेईमानी कर प्रथम आने से बेहतर है “तुम अपनी मेहनत और काबिलियत से उत्तीर्ण हो जाओ अंक कम भले ही आए पर तुम्हें संतुष्टि रहेगी और यह ज्ञान तुम्हें जीवनभर काम आएगा तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे साथ बैठता हूँ तुम एकाग्रता से पढ़ने की कोशिश करो अंक कम भी आए तो चिंता मत करना।”

राघव ने दादाजी को सारी पर्चियां सौप दी और दादाजी के मार्गदर्शन में पढ़ने लगा उनकी ज्ञानवर्धक अनुभवी बातों का उसपर सकारात्मक  प्रभाव पड़ा। राघव पेपर देने चला गया दादाजी द्वारा प्राप्त छोटी छोटी हिदायते बड़ी ही कारगर रही।

राघव के स्कूल जाने के बाद दादाजी ने बहू को सबक सिखाने की ठान ली बहू ने जैसे ही खाने की प्लेट मेजपर रखी वह उसमें नुक़्स निकालने लगे और कहने लगे बहु मेरे मित्र की बहु इतना स्वादिष्ट भोजन बनाती है की पेट भर जाता है पर मन नहीं भरता तुम भी सीखों उससे, यह बेस्वाद खाना तो गले से नहीं उतरता। यह सुनते ही सोनिया को भीतर ही भीतर क्रोध आने लगा और उसकी ऑंखें भी डबडबा गई दो- चार दिन दादाजी ने यह क्रम चालूं ही रखा। आखिर सोनिया के सब्र का बाँध फूट पड़ा वह कहने लगी बाबूजी मैं तो आपके लिए हर व्यंजन अधिक से अधिक स्वादिष्ट बनाने की ही कोशिश करती हूँ फिर भी आपको पसंद नहीं आए तो मैं क्या कर सकती ?

    
बहु जिस तरह तुम मुझे बेहतर से बेहतर भोजन देने का प्रयास करती हो वैसे ही राघव भी अपनी और से पढ़ने का भरसक प्रयास करता है हाथों की सभी उंगलियां एक सी नहीं होती। बहु तुम्हारे शब्दों के बाण उसके मासूम दिल को घायल कर रहे है। आज वह बच्चा है कुछ गलतियां करने पर हम उसे प्यार से समझा सकते है किंतु कल जाकर वह हाथ से निकल जाएगा तो सबसे अधिक अफसोस तुम्हें ही होगा इसलिए उसकी किसी से तुलना मत करो सब अपने आप में कुछ खूबी रखते है उसके मन को पढ़कर उसे प्रोत्साहित करने की जिम्मेदारी तुम्हारी है बहु, देखना अधिक सख्ती कहीं भटकाव का कारण न बने।

सोनिया को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। उसने अपने स्वभाव में परिवर्तन किया, मां का प्रेम और सहयोग मिलने से राघव का मनोबल भी बढ़ने लगा और उसके नतीजे भी बेहतर आने लगे।

                              

                                

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