Bhartiya Parmapara

लघुकथा – पिता और सपनों की सच्चाई

लघुकथा - पिता

अरे नमन! तुम यहां स्टेशन पर क्या कर रहे हो भाई?  
शानु तुम..... यहाँ कैसे मेरे दोस्त और कहां जा रहे हो ....? तुम तो बिल्कुल भी नहीं बदले जहाँ तक मुझे याद है तुम्हारे पापा का तबादला हुआ तब हम सातवीं कक्षा में थे बराबर? हां दोस्त, मैं पी जी की तैयारी कर रहा था परीक्षा के लिए यह सेंटर मिला इसी सिलसिले में आना हुआ था। अब तुम बताओ तुम कहां जा रहे हो...? जा रहा हूँ मायानगरी में अपनी किस्मत आजमाने.... मतलब मैं कुछ समझा नहीं नमन सीधे सीधे बोलो न यार क्या हुआ, अभी ट्रेन आने में एक घण्टे का समय है चलो तब तक कॉफी पीते हैं और वहीं इत्मीनान से बैठ बातें भी करते है।

अब तुम बताओ  मुंबई आखिर किस मकसद से जा रहे हो, तुमने पढ़ाई क्या की। शानु कॉलेज के पांच साल यार मौज-मस्ती में कैसे उड़ गए पता ही नहीं चला। कोई अच्छी डिग्री तो हासिल नहीं कर पाया जिसका बहुत अफसोस है। तुमने आगे क्या किया शानु... मेरे पापा का सपना था मैं डॉक्टर बनूं तो मैं मेडिकल में गया गवर्मेंट कॉलेज से एम.बी.बी.एस करने के बाद मुंबई के कॉलेज में इंटर्नशिप कर रहा हूँ।

तुमने मुंबई जाकर क्या करने का सोचा है नमन....?  
फिलहाल तो कुछ सोचा नहीं। पापा चाहते थे मैं इंजीनियरिंग करूं और किसी अच्छी जॉब पर लग जाऊं।   
तो इसमें ग़लत क्या है मेरे भाई। अरे यार वह मैं नहीं कर पाया तो अब पापा सुबह से चालू हो जाते हैं वो चाहते हैं उनके बिजनेस में हाथ बटाओ....इन छोटे-मोटे कामों में मेरी दिलचस्पी नहीं है शानु.....।

अच्छा ठीक है चलो मुंबई में तुम कुछ दिनों के लिए मेरे फ्लैट पर रह सकते हो। थैंक्स यार तुमने एक चिंता तो दूर कर दी।  
मुंबई पहुंचकर..... अरे नमन मैं निकलता हूँ मेरी ड्यूटी का समय हो चुका है मिलते हैं रात में। अरे इतने सुबह-सुबह तुम तैयार भी हो गए शानु!  
हॉं भाई मायानगरी है, यह चलो बाय पांच मिनट भी देर हो जाए तो लोकल निकल जाएगी। ठीक है तुम निकलो मैं भी उठता हूँ। दो-चार माह तो जॉब ही करनी पड़ेगी।

                               

                                 

रात में शानु आते ही कहीं कोई जॉब की बात हुई नमन...? दो-तीन जगह गया था यार पर ऐसे काम क्या बताऊं और सैलरी भी पंद्रह बीस हजार से ऊपर नहीं दो-तीन दिन यूं ही चक्कर काटने में निकल गए, अपना स्टार्टअप करूं तो फंड नहीं कुछ दिमाग काम नहीं कर रहा है। बुरा मत मानना नमन पर तुम क्या सोचते हो फंड के रहने भर से स्टार्ट अप सक्सेस हो जाएगा.... उसके लिए भी बहुत नॉलेज चाहिए अच्छे-अच्छे पढ़ें लिखे भी फेल हो रहे है। उस समय तुम पढ़ाई-लिखाई पर फोकस करते तो कम से कम आज परेशान तो नहीं होना पड़ता। तुम सही कह रहे शानु तब दोस्तों और पार्टियों से ही फुरसत नहीं मिलती थी। मम्मी- पापा बहुत समझाते भी थे पर मैं तो उनकी बात जैसे हवा में उड़ा देता, बहुत विश्वास के साथ यहाँ आया था पर दूर-दूर तक कोई आशा की किरण नजर नहीं आ रही।

नमन पापा के साथ बिजनेस जाना शुरू तो करो उसमें ही तुम और आगे बढ़ सकते रातों-रात तो सफलता किसी को भी नहीं मिलती थोड़ा पेंशस तो रखना ही पड़ता है। हाँ तुम सही कह रहे पर अब घर लौट कर जाऊं कैसे मैं तो कहकर निकला था बहुत बड़ा आदमी बनने के बाद ही घर की दहलीज पर कदम रखूंगा, यहां आने पर समझ आया ख्वाब और हकीकत में जमीन आसमान का अंतर है....  
तभी दरवाजे की बेल बज उठी सामने पापा को देखकर नमन की आंखें डबडबा गई पापा ने उसे गले लगाते हुए कहा बेटा अपने घर चलो। मैं तुम्हें आने ही न देता पर यहां आकर तुमने जो पाठ पढ़ा वह तुम्हें हमेशा याद रहेगा और मेहनत करने के लिए प्रेरित करेगा। अब हम अपने बिजनेस को ही विस्तार देंगे। नमन को खुशी-खुशी पापा के साथ रवाना होते देख शानु मुस्कुराने लगा।

 

                               

                                 

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