रोना भी आवश्यक है।
रोना भी स्वास्थ्य रक्षक सिद्ध हुआ है, जाने कैसे–?
स्वस्थ जीवन के लिए हंसना बहुत जरूरी है, तो रोग निरशन के लिए रोना भी आवश्यक है। इस आधुनिक जीवन की भागम-भाग के दौर में भावनाएं एवं विचार ऐसे होते हैं, कि हमारी मानसिकता व्यवस्था होती है, यही दबी हुई भावनाएं धीरे-धीरे एक ग्रंथि का रूप धारण कर लेती हैं, ऐसी स्थिति में सुरक्षा का तरीका यह है, कि भावनाओं को दूसरे रूप में अभिव्यक्त हो, इसे रो कर आसूंओं द्वारा भावनाओं की अभिव्यक्ति की जा सकती हैं।
मनुष्य संवेदनशील प्राणी है। वह परिवार ,समाज और राष्ट्र में घटित होने वाली घटनाओं की भीतरी कसक से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। यह प्रभाव हर्ष और विषाद के रूप में अभिव्यक्त होता है। हर्ष किसी एक की बपौती नहीं है, तो विषाद किसी एक का कर्ज भी नहीं है। जीवन हर्ष और विषाद का युगल है। हर्ष से खुशी के फव्वारे फूटते हैं, तो विषाद से आंसुओं का झरना प्रस्फुटित होता है। हर्ष प्रिय लगता है, विषाद बुरा लगता है, यह हम ऐसा भी कह सकते हैं, कि अतिरिक्त भावनाओं से संबंधित आंसू होते हैं, जो बहुत दुख के कारण अथवा ठेस लगने या बहुत खुशी में बाहर आते हैं, ये आंसू भी सामान्य मात्रा से अधिक होते हैं।
अब देखे अंतरिक्ष यात्री सुधांशु शुक्ला को अंतरिक्ष में रवाना होते देख, उनके पिता शंभू शुक्ला और मां आशा शुक्ला भावुक हो गए और आंखों में आंसू बहने लगे माता-पिता दोनों ही भावुक होकर उस समय कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे, उनके आंसू हर्ष से भरे हुए थे, उन्होंने कहा हम बहुत खुश हैं, शुभांशु सफल होगा, हम गर्व से अभिभूत हैं। इस तरह हर्ष के आंसू बह रहे थे। वहीं दूसरी और जब राम मंदिर आंदोलन का प्रमुख हिस्सा रही साध्वी ऋतुभरा ,उमा भारती और निरंजन ज्योति मिले तो बहुत प्रतीक्षित स्वप्न पूर्ण होने से की प्रसन्नता से आंखों में आंसू छलक आए। इस तरह इंसान के आंसू हमेशा दुख और तकलीफ को ही बयां नहीं करते हैं, बल्कि मन में हर्ष खुशी और मीठी यादों में तथा सुकून भरे दिनों को याद करने पर भी आंखों में आंसू छलकते हैं।
अमेरिका के प्रसिद्ध डॉक्टर फ्रैंक ने कहा “आंसू तनावों से मुक्ति का सर्वाधिक सफल सहायक है, भावावेश को अधिकांश व्यक्ति दबा देते हैं," इसी वजह से कुंठा, अवसाद, दर्द, तनाव और दिमागी विकृतियां पैदा होती हैं, यहां देखें यदि किसी व्यक्ति की आंखों में दुख या विपत्ति के वक्त आंसू ना आए, तो डॉक्टर के अनुसार वह व्यक्ति अस्वस्थ हैं, यदि किसी महिला की आंखों में घोर शोक अथवा संकट की घड़ी में आंसू नहीं आए, तो ऐसी महिलाएं शुष्काशि रोग से ग्रस्त होती हैं। महिलाएं और पुरुष के आंसू में भिन्नता होती है, इसी तरह हर्ष और विषाद के आंसुओं में भिन्नता होती हैं। पुरुष भी कभी रो तो उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा रोने की प्रवृत्ति अधिक होती है, महिलाओं को रोने का मानो प्रकृति से वरदान मिला हो। इसी कारण से महिलाएं अनेक व्याधियों से मुक्त रहती हैं। वहीं पुरुषों को व्याधियों को भोगना पड़ता है। पुरुष रो कर उनसे मुक्त हो सकते हैं। किंतु मनुष्य रोता कम है। सामान्यतः रोने को बुरा माना जाता है, वहीं रोना स्वास्थ्य की सुरक्षा करता है, और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि करता है, वहीं महिलाएं रोने में माहिर होती है।
एक नई स्टडी से ज्ञात हुआ कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों के तथाकथित मगरमच्छ के आंसू ज्यादा भरोसेमंद होते हैं। शोधकर्ता मोनिका ब्रावेल कहती हैं नकली पछतावे वाले लोग ज्यादा भावनात्मक उतार-चढ़ाव दिखाते हैं, उनकी आवाज में झिझक होती हैं, इसे भावनात्मक अशांति कहते हैं। वे चेहरे के हाव-भाव का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। आंसू ना आने के कारण अनेक प्रकार की शारीरिक विकृतियों जैसे आंखों में चुंभन या जलन, दिखने में कठिनाई होना, जोड़ों में दर्द होना, मुंह फटना नाक का सूखा रहना, सिर दर्द रहना आदि हो सकते हैं। आंसू न केवल आंखों को स्वस्थ रखते हैं, बल्कि उन्हें कीटाणु से सुरक्षा भी देते हैं। डॉक्टर मानटेग का कहना है कि “जिन व्यक्तियों की विकास प्रक्रिया में आंखों से कम आंसू निकलते हैं, वह जीवन की सभी अवस्थाओं आमतौर से जल्दी ही रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं।“ एक जापानी शिक्षक योशीदा खुद को टियर्स टीचर कहते हैं और वह टियर्स वर्कशॉप चलाते हैं ! योशीदा इस विचार के आधार पर टियर्स वर्कशॉप चलाते हैं, कि हफ्ते में एक बार रोने से तनाव दूर हो सकता है, और यह हंसने या रोने की तुलना में अधिक प्रभावी तनाव निवारक हो सकता है, आंसू आंखों को संक्रमण से बचते हैं, साथ ही उनमें नमी बनाए रखते हैं, यह तनाव को काम करते हैं, और मानसिकता को मजबूत बनाते हैं।
जो लोग सहज रोते हैं, वह अधिक स्वस्थ रहते हैं ,और उनका जीवन के प्रति नजरिया भी सकारात्मक होता है। इसके साथ ही महिला पुरुषों में आंसू आने से फेफड़े खुल जाते हैं, और चेहरा साफ हो जाता है। वहीं यदि आंसू को बहाने से रोकते हैं, तो “टाकिसन” साइंस की तरह काम करते हैं, और हमारे शरीर के प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करते हैं। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र से ज्ञात होता है, कि यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो रोइये क्योंकि आंसुओं के रूप में कुछ रसायन आंखों से बाहर आ जाते हैं।
लेखक - डॉ. बी.आर. नलवाया जी, पूर्व प्राचार्य, शासकीय पीजी महाविद्यालय, मंदसौर (म. प्र.)

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