
नवरात्रि के नौ दिन में कमला देवी घर में नित्य घी का दीपक लगा अखंड ज्योत प्रज्वलित रखती, आरती, धूप होती, अखंड पाठ चलता पूरा घर भक्तिमय तरंगों से पावन हो जाता।
अष्टमी पर बेटा, बहू भी एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आ जाते और फिर घर में रौनक छा जाती। आज नवमी थी और सुबह सुबह रत्ना बाई का फोन आ गया आज उसकी तबियत खराब थी।
उसने जैसे ही दो दिन छुट्टी का बोला, कमला देवी आग बबूला हो उठी जिस दिन अधिक काम होता है तुम जानबूझकर ऐसा करती हो तरह तरह के आरोप प्रत्यारोप लगाने के पश्चात आवेश में आकर बोली अब दूसरा घर देख लेना यहां आने की कोई जरूरत नहीं कहकर फोन पटक दिया। मौन साधे बहू सब कुछ सुन रही थी।
कुछ ही देर में एक एक कर नौ कन्याओं का आगमन हुआ सभी आज बहुत घरों में जाकर आयी थी इसलिए भोजन तो दूर नाम मात्र प्रसाद ले रहीं थी वह भी बड़ी मनुहार करने के बाद छोटी छोटी बच्चियां आखिर खा भी कितना पाती फिर सभी को कुमकुम का तिलक किया उनके पैर धोये उनका आशीर्वाद लिया सभी को भेंट वस्तू दी तत्पश्चात पूरा परिवार भोजन करने बैठा, तभी रत्ना की बेटी आयी कहने लगी माँ ने भेजा है आज बर्तन मैं मांज देती हूँ।
कमला देवी खुश हो गई जैसे कोई जंग जीत गई हों कहने लगी जब तक इन्हें डराओं धमकाओं नहीं यह अपनी आदतों से बाज नहीं आते। छुटकी को आवाज लगा कहने लगी यह बर्तन समेटकर ले जाओं। छुटकी भीतर आयी बारह तेरह की उम्र हड़बड़ी में कुछ बर्तन हाथ से फिसल फर्श से टकरा गये कमला देवी आंखें तरेर कर उसपर बरस पड़ी।
यह सब देख रहीं बहू के धीरज का बांध अब जवाब दे गया उसने कहां मॉं आज एक तरफ आप कन्या पूजन कर पुण्य प्राप्त करना चाहते हैं और दूसरी तरफ किसी जरूरतमंद मासूम नाबालिग पर अत्याचार यह तो न्याय संगत नहीं हैं...आप ने जिन्हें भोजन करवाया वह तो संपन्न परिवार में नाजों से पल रहीं कलियां हैं जो हमारे आमंत्रण पर मात्र औपचारिकता निभाने आती है।
मॉं कुछ परम्पराओं में हमें परिवर्तन लाना होगा तभी देवी मां प्रसन्न होगी। काम होने के पश्चात बहू ने छुटकी को भोजन कराया ऐसा स्वादिष्ट भोजन खाकर उसकी आत्मा को जैसे तृप्ति मिल गई खुशी के भाव उसके चेहरे पर साफ नजर आने लगे बहू ने उसे नई फ्रॉक भेंट की अब तो उसकी खुशी मानों आसमान छू रही थी दूसरे दिन जब रत्ना बाई घर आयी तो बहू ने कहा छुटकी के पढाई का खर्च हर साल नवरात्रि में मुझसे ले लिया करों।
कमला देवी ने बहू से कहा बेटी कन्या पूजन की वास्तविक सार्थकता तो नेक कार्य में हैं तुमने मेरी आँखें खोल दी, अब मैं भी नवरात्रि में एक जरूरतमंद बेटी के शिक्षा और उसके निर्वहन का दायित्व लेती हूँ।
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