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प्रवासी भारतीय ही भारतीय संस्कृति के पहरेदार | नीदरलैंड में भारतीय संस्कृति का उजागर

प्रवासी भारतीय ही भारतीय संस्कृति के पहरेदार

नीदरलैंड देश में भारतीय संस्कृति व हिन्दी भाषा की तेज़ी से पनपती बेल को जानने के लिए हमें थोड़ी सी जान पहचान नीदरलैंड देश की मिट्टी से करनी होगी। नीदरलैंड यूरोप महाद्वीप का एक प्रमुख देश है। यह उत्तर-पूर्वी यूरोप में स्थित है। इसके दक्षिण में बेल्जियम और पूर्व में जर्मनी देश है। नीदरलैंड दो शब्दों नीदर = अथार्थ नीचा और लैंड= अथार्थ सतह, (स्थल, ज़मीन) से मिलकर बना है क्योंकि नीदरलैंड समुद्र तल से एक मीटर नीचे बसा है।

नीदरलैंड में दो तरह के प्रवासी भारतीय रहते हैं जिनमें 2,00,000 भारतीय-सूरीनामी समूह के है, दूसरे लगभग 40,000 वह प्रवासी है जो द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर अब तक उच्च शिक्षा, रोजगार व अन्य कारणों से सीधे भारत से हवाई जहाज में बैठ कर यहाँ आये। सूरीनामी भारतीय प्रवासी वह हैं जिन्हें सन 1872 ब्रिटिश व डच लोगों के आपसी समझौते से सन 5 जून 1873-1916 के बीच भारत के विभिन्न अलग-अलग भागों से लगभग 35,000, लोगों को बिहार, जौनपुर बहराइच, बलिया, बेतिया, दरभंगा व उड़ीसा से कोलकाता की बंदरगाह से लाला रूख जहाज़ में “श्री राम के देश" ले जाने के नाम पर सूरीनाम जो दक्षिण अमेरिका के महाद्वीप के उत्तर में स्थित एक देश है वहाँ ले ज़ाया गया। 25 नवंबर 1975 को सूरीनाम डच शासन से स्वतंत्र हो गया तब बहुत से भारतीय परिवार अपने उज्जवल भविष्य बनाने के सपनों के साथ नीदरलैंड प्रवास कर गये। इस तरह से इन प्रवासी भारतीयों का यह दूसरा प्रवास स्थल बना।

भारत की संस्कृति विश्व की प्रधान संस्कृति है, यह एक वास्तविकता है। भारतीय संस्कृति अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर अमर है। अपने प्रथम प्रवास के समय इन प्रवासियों के लिए अपनी मूल जड़ों से नए स्थान, नई संस्कृति, भाषिक विविधताओं व असहनीय विषम परिस्थितियों में भारत से जाते समय अपने साथ रामायण, महाभारत, गीता, कबीर व सूरदास की कुछ पुस्तकें, लोकगीत, लोक परम्पराएँ ले गये थे वहीं इनकी शक्ति बना। अपने दूसरे यानी सूरीनाम से नीदरलैंड प्रवास के साथ ही उनकी सांस्कृतिक विरासत भी नीदरलैंड आ गई। सूरीनाम व भारत से आने वाले ज़्यादातर भारतीय ऐम्सटर्डम, रोटर्टेडम देनहाग़ व कुछ यूतरैखत में बस गये। ऐम्सटर्डम व देनहाग़ में भारतीय बहुलता में थे इसलिए उन्होंने अपना एक सामाजिक संगठन बना अपनी धार्मिक आस्था, त्योहारों व रीति रिवाजों का विस्तार किया। शुरुआत में यह कार्य बहुत मुश्किल था तब यह लोग एक दूसरे के घरों में इकट्ठा हो रामायण पाठ, दुर्गा पूजा, व अन्य उत्सवों का आयोजन करते थे किन्तु बाद में इस प्रवासी भारतीय समुदाय ने स्वयं धन एकत्र कर मंदिर का निर्माण किया।

आज नीदरलैंड में छोटे बड़े लगभग पचास सनातन, आर्य समाज व एक बड़ा इस्कॉन मंदिर है। लगभग पाँच गुरुद्वारे हैं। भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों का विवरण सनातन धर्म में मिलता है जिसका अनुपालन यहाँ के प्रवासी भारतीय आज भी करते है। प्रवासी भारतीय आज भी जब मिलते हैं तो हैलो या नमस्कार नहीं बल्कि राम-राम और जय सीता राम से संबोधित करते हैं।

नीदरलैंड में रजिस्टर्ड विवाह का कानून है इसलिए हम प्रवासी भारतीय अपनी भारतीय परम्परा व नीदरलैंड परम्परा दोनों निभाते हैं। भारतीय परंपराओं में विवाह के सभी रीति रिवाज उसी तरह से किये जाते हैं जैसे उस समय (1872-1915) तक भारत में किये जाते थे।   
विवाह का कार्ड जिसे “न्यौता“ कहा जाता है विवाह से एक महीने पहले उस पर लवंग, अक्षत व हल्दी कुमकुम लगा कर बाँटा जाता है। विवाह की तैयारी के प्रथम दिन गोबर व जौ से सजा कर घर के भंडार घर गणेश भगवान की मूर्ति के साथ कलश स्थापना की जाती है फिर कुम्हार के चाक पूजन की विधि जिसे स्थानीय भाषा मे “मटकौडवा” कहते है की जाती हैं। विवाह से दो दिन पहले हल्दी व तेल चढ़ाने की विधि की जाती है जिसे “तैलवान" कहाँ जाता है और विवाह के एक दिन पहले “भतवान” होता है जिसमें होने वाले दुल्हन या दुल्हे का मामा उनके कपड़े, मिठाई लाता है व बुआ लावा भुजते है जिसे लावा भुजाई की रीत कहते हैं इसी दिन रात को मेहंदी लगती है व घर की महिलाएं पारम्परिक गीत गा कर हंसी ठिठोली करती है।

विवाह के दिन वर व वधू को भगवान राम व सीता का अवतार माना जाता है, मंडप में जाने से पहले वधू से गौरी पूजा कराई जाती है इमली का पत्ता खिलाया जाता है जिसके पीछे यह मान्यता है की अब तुम्हारे लिए मायका खट्टा हो गया और ससुराल मिठा है इसलिए तुम ससुराल में जा कर सिर्फ़ मिठास घोलना।

मंडप में आने से पहले की “दुल्हा" परछाये की रीत की जाती है जिसमें वर का स्वागत किया जाता है यह रीत वधू की माँ, भाभी या बड़ी बहन करती है उसके बाद वर पक्ष से पाँच पुरुषों को पंच परमेश्वर माना जाता हैं। मंडप में वर व वधू दोनों पक्ष के पंडित उपस्थित हो कर विवाह संपन्न करवाते हैं। विवाह के बाद परिवार के कुल देवी देवताओं की पूजा व अन्य रीति रिवाज सम्पन्न किये जाते है। इसी तरह गोद भराई, शिशु के जन्म लेने पर छटी पूजा, जनेऊ संस्कार, कर्ण भेद संस्कार, से लेकर अंतिम संस्कार व पितृ पक्ष तक सभी का पालन यहां देखने को मिल जाएगा।

                                     

                                       

अधिकांश भारतीय घरों में लोग अपनी मातृभाषा में, भोजपुरी या सरनामी हिंदी में बात करते है। रिश्तों में आजा-आजी, काका-काकी, फूफा-फुआ, नाना-नानी, बहनोई, नंदोई जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। घाम, मेध, माँड़ो (मंडप) बिहान (कल) मेहरारू, पतोह, दुल्हन, दुल्हनिया, तुरई, भाटा (बैंगन) अंझूर (अंधेरा) आदि शब्द बोलचाल में है।

भारतीय हिन्दी भाषा के लगभग पाँच प्राथमिक विद्यालय यहॉ हैं जिनमें लगभग बारह सौ बच्चों को हिंदी व संस्कृत भाषा पढ़ाई जाती है। हिन्दी विद्यालयों के अतिरिक्त यहाँ प्रवासी भारतीयों द्वारा 45 वर्षों से “सूरीनामी हिन्दी परिषद्” संगठन हिन्दी के प्रचार प्रसार में अपनी प्रमुख भूमिका निभा रहा है।

यहां के मंदिर की दुकानों से आप पूजा की समस्त सामग्रियों, मूर्ति, धार्मिक ग्रंथ, हिन्दी भाषा की बाल पुस्तकें के साथ, भारतीय परिधान भी खरीद सकते है।

देंनहाग़ में भारतीय समुदाय की अधिकता के कारण वहाँ की क्रुखपॉल गली को “मिनी इंडिया" भी कहा जाता है यहाँ आप बॉलीवुड की फिल्मों की डीवीडी से लेकर वो सब सामान खरीद सकते जिसके लिए आप भारत जाने की सोच रहे हैं।

यहाँ पर आपको प्रवासी भारतीयों की कपड़ों की दुकानें, जवाहरात की दुकानें, व भारतीय सूरीनामी के व दक्षिण भारतीय रेस्टोरेन्ट मिल जाएँगे, भारतीय सूरीनाम के व्यंजन डच लोगों के प्रिय भोजन है। साल में एक बार “मिलान” (मिलन का अपभ्रंश रूप) देनहाग़, अलमेर मे सूरीनाम भारतीय पाँच दिवसीय मेला लगता है जिसमें सूरीनाम व भारत के गीत, लोक नृत्य, बॉलीवुड गायकों व कलाकारों को बुलाया जाता है, भारत से आने वाले लोग भी इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

यहाँ लगभग सभी भारतीय परिवारों मे एक छोटा मंदिर मिलेगा। भारतीय घरों को यहाँ आप आसानी से पहचान सकते हैं सभी घरों के बाहर लाल झंडी व धार्मिक चिन्ह देख सकते हैं। अब दस दिन का गणेश उत्सव, जगन्नाथ यात्रा व अन्य भारतीय त्यौहारों को भी नीदरलैंड में बहुत बड़े समारोहों रूप में मनाया जाने लगा है।

होली को यहाँ पारम्परिक रूप में मनाया जाता है । फाल्गुन माह के प्रथम दिन से ही चौताल का कार्यक्रम शुरू हो जाता है, शाम को लोग काम से आ कर मंदिरों या सामुदायिक भवनों में अपना रंग जमाते हैं। खेलने वाली होली से एक दिन पहले पारंपरिक रूप में होलिका दहन किया जाता है सब लोग वहाँ एकत्र हो कर पूजा करते है फिर पंडित जी द्वारा होलिका दहन होता है। अगले दिन रंग की होली खेली जाती है क्योंकि यहाँ ठंड अधिक होती है इसलिए पानी के रंगो से नहीं बल्कि सूखे रंग, गुलाल जो अब आसानी से उपलब्ध है पहले जब गुलाल उपलब्ध नहीं था तब टैलकम पाउडर को एक दूसरे पर छिड़क कर होली खेली जाती थी।

कुछ स्थानों पर होली के सप्ताहांत पर समुदाय भवन में होली का रंगारंग कार्यक्रम रखा जाता है।  नवरात्र के दिनों में मंदिरों में दुर्गा पाठ नौ दिन तक किया जाता है, लोग उपवास करते हैं व दसवें दिन मंदिर व घरों में बड़े उत्साह के साथ समापन किया जाता है।

यहां के टीवी. चैनलों पर भी भारतीय त्योहारों का प्रसारण किया जाता है। आजकल इंटरनेट ने भारत और नीदरलैंड को बहुत पास ला दिया है अब प्रवासी युवा पीढ़ी भारत में अपनी जड़ों को खोज कर फिर से अपना अस्तित्व बना रहे हैं।

भारतीय प्रवासी भारतीयों का नीदरलैंड की आर्थिक व्यवस्था को उच्च स्तर पर ले जाने में बहुत योगदान है वही आज के आधुनिक युग को चलाने वाली तकनीक भी ज्यादातर भारतीयों के हाथों में ही है। भारत सरकार द्वारा ओसीआई कार्ड की सुविधा ने भारत व नीदरलैंड की दूरियों को पाट दिया है।

सच कहें तो हम प्रवासी भारतीय ही भारतीय संस्कृति व भाषा के पहरेदार है।

लेखिका  - डॉ. ऋतु शर्मा ( ननंन पांडे), स्वतंत्र पत्रकार, लेखिका, कवयित्री, कार्यकर्ता सलाहकार समिति, नीदरलैंड 

 

 

 

                                     

                                       

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