
नववर्ष के स्वागत में पूरा शहर रोशनी की जगमगाहट में चमचमाता नजर आ रहा था जैसे आसमां में सितारे जड़े होते है बिल्कुल उसी तरह सर्द की ठिठुरती गहन रात में यह रोशनी सितारों की भांति राहगीरों को अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी। बाजार रंग-बिरंगे भेंट वस्तुओं से सुसज्जित था, होटलों की सजावट हर युवा मन को लुभा रही थी। नववर्ष के स्वागत हेतु युवा वर्ग मन में ऊंची उड़ान भर भविष्य की योजनाओं को सफल करने का संकल्प ले रहे थे। अपने हम उम्र साथियों के आग्रह करने पर भव्या भी आधुनिक परिवेश में पार्टी में जाने के लिए तैयार हो गई, उसके लौटने तक दादी सो जायेगी यह सोचकर उसने कहा, दादी कल से सुबह जल्दी उठना है योग भी करना है, आप याद से मुझे उठा देना कहते हुए उसने घर से विदा ली। दादी अनमने भाव से उसे निहार रही थी कहीं न कहीं उनका मन भीतर से आहत हो रहा था पर बदलते परिवेश में उन्होंने चुप्पी साधना ही उचित समझा।
संस्कारी परिवार में पली बढ़ी भव्या सहपाठियों के आग्रह को टाल न सकी, ऊपरी तौर पर उसे भी यह नवीनता का मायावी जाल मृगमरीचिका की भांति सम्मोहित कर रहा था। वहीं दूसरी ओर उसका अंतर्मन यह आधुनिकता सहज स्वीकार करने की स्वीकृति नहीं दे रहा था। रात देर तक युवाओं के कदम डिस्को पर थिरक रहे थे होटल घर से बहुत दूर था जिसके चलते भव्या का अकेले घर जाना संभव नहीं था। भव्या के सभी सहपाठी पार्टी का आनंद ले रहे थे रात एक बज चुकी थी भव्या भीतर ही भीतर डर रही थी घर पहुँचने पर डांट सुनना निश्चित था उसकी घबराहट उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी जिससे सहपाठियों के बीच वह हंसी का पात्र बन गयी थी।
डरते कदमों से भव्या ने घर में कदम रखे दादी ने दरवाजा खोला उनकी आंखों से नींद कोसों दूर थी। भव्या ने दादी से क्षमा मांगी तो उनका हृदय पिघल गया। रात में देर होने से भव्या सुबह जल्दी नहीं उठ पायी और दूसरे ही दिन लिया हुआ संकल्प पूरा नहीं हो पाया, अक्सर युवाओं का यही हाल होता है तभी सफलता का स्वाद नहीं चख पाते।
संक्रांति पर्व करीब था दादी का नियम था हर संक्रांति पर्व पर वह अनाथालय जाकर बच्चों को जरूरतमंद चीजें दे आती, साथ ही दो बच्चों के शिक्षा का दायित्व भी उन्होंने ले रखा था। भव्या के साथ जा दादी ने अनाथालय के हिसाब से कुछ सामान खरीदा और अनाथालय पहुंच गई। दादी को देखते ही वहां बच्चों के मुखमंडल पर जो खुशी की तरंगें दौड़ रही थी उसका वर्णन शब्दों में कर पाना संभव नहीं था। दादी के भीतर संतुष्टि के भाव जागृत हो उनकी आत्मा को प्रफुल्लित कर रहे थे। वहां से निकल ही रहे थे तभी एक युवक दादी के पास आ उन्हें प्रणाम कर धन्यवाद प्रकट कर रहा था सफल युवक वहीं था जिसकी गरीबी के चलते दादी ने उसे पढ़ाया लिखाया था। दादी द्वारा की हुई मदद ने उसके जीवन में खुशियों के रंग भर दिये। यह सब देखते हुए भव्या ने आज काफी कुछ सीख लिया था। रास्ते में उसने जब दादी से कहा अब वह हर छुट्टी के दिन यहां आकर बच्चों को पढ़ाया करेगी यह सुनकर दादी को अत्याधिक खुशी हुई उसे समझाते हुए कहा बेटी तुम जो नववर्ष की बात कह रही थी वह नववर्ष हमारा नहीं है, अपने भारतीय संस्कृति में हुड़दंग मचाने की परंपरा कभी नहीं रही। हमारी संस्कृति हमें विचलित नहीं करती आंतरिक खुशी देती है जरूरत है बस उसे समझने की आज यह सब सुनकर भव्या का हृदय परिवर्तित हुआ और उसके भीतर परोपकार की भावना जन्म ले चुकी थी जिसमें उसका भी कल्याण निश्चित था।
Login to Leave Comment
LoginNo Comments Found
संबंधित आलेख
यात्रा
महिला सशक्तिकरण
तमाशा
उपहार
शिक्षा जीवन का आधार
कन्या पूजन
खुशबू
ह्रदय परिवर्तन
सच्चे मित्र - संघर्ष, दोस्ती और शिक्षा की प्रेरक कहानी
एक चुटकी गुलाल - लघुकथा
दुआ - लघुकथा
अपेक्षा - एक लघुकथा
सावन की सौगात
दोस्त – एक प्रेरणादायक कहानी सच्ची दोस्ती और आत्मविश्वास की | भारतीय परंपरा
पितृपक्ष की एक भावनात्मक कथा | Pitru Paksha
खुशियों के दीप – उम्मीद और संघर्ष की एक भावनात्मक दीपावली कहानी
परीक्षा डयुटी | शिक्षकों की परीक्षा में भूमिका
आभूषण | माँ-बेटी के रिश्ते और जीवन के सुंदर संदेश की कहानी | Adornment
रिश्तों की डोर - पतंग से मिली जीवन सीख
यह घर बहुत हसीन है – एक भावनात्मक लघुकथा
होली पर लघुकथा – रंगों से भरी दिल छू लेने वाली कहानी
परीक्षा और परवरिश की कहानी: दादाजी की सीख और राघव की जीत
बच्चों के मन में अंकुरित विश्वास की सुंदर कहानी
भ्रष्टाचार
क्षितिज तक
बड़ा लेखक
महकते रिश्ते
जीवन सार : प्रेरणादायक कहानी
अलविदा मेरे प्यारे बेटे
देसी बीज
समर्पण
प्रेम की जीत
बदलता कैडर
युग परिवर्तन
परवरिश - माँ के आत्मचिंतन की कहानी
माँ अभी जिंदा है - कहानी
बालकथा - माँ का दर्द
लघुकथा : हार-जीत
वो नाश्ता (That Breakfast)
निर्णय (The Decision)
दिशा (Direction)
बांसुरी के बोल - राधा, गोपियाँ और बांसुरी का भावपूर्ण संवाद
राधा की प्रेम-साधना – एक अद्वितीय समर्पण
बच्चों को लौटा दो बचपन – आधुनिक पालन-पोषण पर एक विचारणीय कहानी
भूलते रिश्तों की चीख – एक भावनात्मक हिंदी लघुकथा
लघुकथा – पिता और सपनों की सच्चाई
लेखक के अन्य आलेख
लघुकथा – पिता और सपनों की सच्चाई
वर्तमान दौर में बदलता प्रेम का स्वरूप – एक विचारणीय लेख
बच्चों को लौटा दो बचपन – आधुनिक पालन-पोषण पर एक विचारणीय कहानी
दिशा (Direction)
कन्याओं को पूजन से अधिक सुरक्षा की जरूरत है ...!
परवरिश - माँ के आत्मचिंतन की कहानी
समर्पण
डोर विश्वास की : रक्षाबंधन
महकते रिश्ते
भ्रष्टाचार
परीक्षा और परवरिश की कहानी: दादाजी की सीख और राघव की जीत
होली पर लघुकथा – रंगों से भरी दिल छू लेने वाली कहानी
रिश्तों की डोर - पतंग से मिली जीवन सीख
आभूषण | माँ-बेटी के रिश्ते और जीवन के सुंदर संदेश की कहानी | Adornment
खुशियों के दीप – उम्मीद और संघर्ष की एक भावनात्मक दीपावली कहानी
पितृपक्ष की एक भावनात्मक कथा | Pitru Paksha
दोस्त – एक प्रेरणादायक कहानी सच्ची दोस्ती और आत्मविश्वास की | भारतीय परंपरा
सावन की सौगात
अपेक्षा - एक लघुकथा
दुआ - लघुकथा
एक चुटकी गुलाल - लघुकथा
ह्रदय परिवर्तन
खुशबू
कन्या पूजन
शिक्षा जीवन का आधार
उपहार
महिला सशक्तिकरण
बचपन की सीख | बच्चों को लौटा दो बचपन
यात्रा