
हनुमान जयन्ती एक हिन्दू पर्व है। यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन हनुमानजी का जन्म हुआ माना जाता है। हनुमान जी को कलयुग में सबसे प्रभावशाली देवताओं में से एक माना जाता है। हनुमान जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। पहली हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को अर्थात ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक मार्च या अप्रैल के बीच और दूसरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी को अर्थात सितंबर-अक्टूबर के बीच। इसके अलावा तमिलानाडु और केरल में हनुमान जयंती मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को तथा उड़ीसा में वैशाख महीने के पहले दिन मनाई जाती है। चैत्र पूर्णिमा को मेष लग्न और चित्रा नक्षत्र में प्रातः 6:03 बजे हनुमानजी का जन्म एक गुफा में हुआ था। मतलब चैत्र माह में उनका जन्म हुआ था।
वाल्मिकी रचित रामायण के अनुसार हनुमानजी का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था। एक तिथि को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में जबकि दूसरी तिथि को उनके जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।
हनुमान जी के माता पिता - महावीर हनुमान को भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार कहा जाता है और वे प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त हैं। हनुमान जी ने वानर जाति में जन्म लिया। उनकी माँ का नाम अंजना (अंजनी) और उनके पिता का नाम वानरराज केशरी हैं। इसी कारण वीर हनुमान को आंजनाय और केसरीनंदन आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार हनुमानजी के जन्म के पीछे पवन देव का भी योगदान था। एक बार अयोध्या के राजा दशरथ अपनी पत्नियों के साथ पुत्रेष्टि हवन कर रहे थे। यह हवन पुत्र प्राप्ति के लिए किया जा रहा था। हवन समाप्ति के बाद गुरुदेव ने प्रसाद की खीर तीनों रानियों में थोड़ी थोड़ी बांट दी।
खीर का वह एक भाग एक कौआ अपने साथ उस जगह ले गया जहा माता अंजनी तपस्या कर रही थी। यह सब भगवान शिव और वायु देव के इच्छा अनुसार हो रहा था। तपस्या करती माता अंजनी के हाथ में जब खीर आई तो उन्होंने उसे शिवजी का प्रसाद समझ कर उसे ग्रहण कर लिया। इसी प्रसाद की वजह से हनुमानजी का जन्म हुआ।
हनुमान जी को मिलने वाले 8 वरदान - वाल्मीकि रामायण के अनुसार, बचपन में एकबार जब हनुमानजी सूर्य देव को फल समझकर खाने के लिए चल पड़े तब घबराकर देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर वज्र का वार किया। वज्र के प्रहार से हनुमानजी बेहोश हो गए। यह देखकर वायुदेव बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने समस्त संसार में वायु का प्रवाह रोक दिया। संसार में हाहाकार मच गया। तब परमपिता ब्रह्मा हनुमानजी को होश में लाए। उस समय सभी देवताओं ने हनुमानजी को वरदान दिए। इन वरदानों से ही हनुमानजी परम शक्तिशाली बन गए।
1. भगवान सूर्य ने हनुमानजी को अपने तेज का सौवां भाग देते हुए कहा कि जब इसमें शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति आ जाएगी, तब मैं ही इसे शास्त्रों का ज्ञान दूंगा, जिससे यह अच्छा वक्ता होगा और शास्त्रज्ञान में इसकी समानता करने वाला कोई नहीं होगा।
2. धर्मराज यम ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह मेरे दण्ड से अवध्य और निरोग होगा।
3. कुबेर ने वरदान दिया कि इस बालक को युद्ध में कभी विषाद नहीं होगा तथा मेरी गदा संग्राम में भी इसका वध न कर सकेगी।
4. भगवान शंकर ने यह वरदान दिया कि यह मेरे और मेरे शस्त्रों द्वारा भी अवध्य रहेगा।
5. देव शिल्पी विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि मेरे बनाए हुए जितने भी शस्त्र हैं, उनसे यह अवध्य रहेगा और चिंरजीवी होगा।
6. देवराज इंद्र ने हनुमानजी को यह वरदान दिया कि यह बालक आज से मेरे वज्र द्वारा भी अवध्य रहेगा।
7. जलदेवता वरुण ने यह वरदान दिया कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी मेरे पाश और जल से इस बालक की मृत्यु नहीं होगी।
8. परमपिता ब्रह्मा ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह बालक दीर्घायु, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्दण्डों से अवध्य होगा। युद्ध में कोई भी इसे जीत नहीं पाएगा। यह इच्छा अनुसार रूप धारण कर सकेगा, जहां चाहेगा जा सकेगा। इसकी गति इसकी इच्छा के अनुसार तीव्र या मंद हो जाएगी।
पूजा विधि -
* हनुमान जयंती पर व्रत रखने वालों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
* इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सर्वप्रथम भगवान श्रीराम, माता सीता व हनुमानजी का स्मरण करें।
* इसके बाद नहाकर हनुमानजी की मूर्ति स्थापित करें और विधिपूर्वक पूजा करें।
* हनुमानजी को शुद्ध जल से स्नान करवाएं। फिर सिंदूर और चांदी का वर्क चढ़ाएं।
* हनुमानजी को अबीर, गुलाल, चंदन और चावल चढ़ाएं।
* इसके बाद सुगंधित फूल और फूलों की माला चढ़ाएं, एवं नारियल चढ़ाएं।
* फिर केवड़ा या अन्य सुगंधित इत्र लगाएं।
* इन सब के बाद हनुमानजी की मूर्ति के वक्ष स्थल यानी हृदय वाले स्थान पर चंदन से श्रीराम लिखें।
* इस तरह श्रद्धापूर्वक जो भी चढ़ाना चाहते हैं वो हनुमानजी को चढ़ाएं।
* इसके बाद हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करें] नहीं कर पाएं तो श्रीराम नाम का ही जप करें।
* आखिरी में हनुमान जी को नैवेद्य लगाकर आरती करें और प्रसाद बांट दें।
हनुमान चालीसा की रचना - मान्यता है कि हनुमान चालीसा के रचयिता तुलसीदास जी हैं। उन्होंने ही रामचरित मानस भी लिखा था।
एक बार बादशाह अकबर ने तुलसीदास जी को दरबार में बुलाया और उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ तब तुलसीदास जी ने कहा कि भगवान श्री राम सिर्फ भक्तों को ही दर्शन देते हैं। यह सुनते ही अकबर ने तुलसीदास जी को कारागार डलवा दिया। किंवदंती के अनुसार, कारावास में ही तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा लिखी। उसी दौरान फतेहपुर सीकरी के कारागार के आसपास ढे़र सारे बंदर आ गए। उन्होंने बड़ा नुकसान किया। तब मंत्रियों की सलाह मानकर बादशाह अकबर ने तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त कर दिया।
इस चालीसा में चालीस चौपाइयों में ये वर्णन है, इसीलिए इसे चालीसा कहा गया। इसमें 40 छंद भी हैं। कहा जाता है कि जब पहली बार तुलसीदास जी ने इसका वाचन किया तो हनुमान जी ने खुद इसे सुना।
"संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।"
जय श्री राम || जय श्री हनुमान ||
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