Bhartiya Parmapara

चलिष्याम निरंतर | जोखिम, परिवर्तन और सफलता का संबंध

आज प्रतिस्पर्धा का दौर हैं और समय ने तेज़ी से करवट बदली है। प्रतिस्पर्धा के चौड़े मैदान में आगे की राह उसी को मिलती हैं जो निरंतर चलना जानता है। ठहराव का विकल्प लक्ष्य को ओझल कर देता है। लेकिन इस मार्ग चलना आसान नहीं है क्योंकि यह बड़ा कंटीला है।

हर कदम हर मोड़ पर अनिश्चितता, खतरा और सफलता के पहले हतोत्साहित करने वाली कई असफलताएं मुंह बांए खड़ी होती हैं। कभी-कभी तो निराशा इस कदर घेर लेती है कि आदमी राह बदलने को मजबूर हो जाता है मगर फिर भी जो इन खतरों से जूझते हैं बदलाव की राह उन्हें ही मिलती हैं। एक नई दिशा वही तय करते हैं। 
एक महत्वपूर्ण पहलू यह कि जोखिम उठाना केवल साहस का काम नहीं यह दूरदृष्टि का परिचायक है। जब कोई व्यक्ति पुराने ढर्रे को छोड़कर नया रास्ता चुनता है तब वह अपने साथ सिर्फ सपने नहीं बल्कि परिवर्तन की संभावनाएं भी लेकर चलता है। चाहे बात नये व्यवसाय की हो, कोई सामाजिक आंदोलन, या व्यक्तिगत विकास की कोई यात्रा सबकी शुरुआत एक जोखिम से होती है। आज के संदर्भ में जब पूरी दुनिया तकनीकी, सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर बदलाव की ओर बढ़ रही है तब सिर्फ सुरक्षित राह ढूंढने वाले पीछे छूट जाते हैं।

डर जिनके दिल में छुपा रहता है वह नया क्षितिज, नई ऊंचाई और मुक्ताकाश नहीं देख पाते। इसलिए जीवन में अगर बदलाव लाना है समाज या व्यवस्था में तो खतरे उठाने की हिम्मत करना ही पड़ेगी। इसी जोखिम से आगे चलकर उन्नति के नए अवसर सामने आते हैं। इस बात को अच्छी तरह जेहन रखना कि जो जोखिम से नहीं डरता परिवर्तन उसी के आगे नतमस्तक होता है, और जो नई सोच से सकारात्मक बदलाव लाता है दुनिया उसी के नक्शे कदम पर चलती है।

लेखक - अमृतलाल मारू जी, इंदौर

                                    

                                      

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