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अक्षय तृतीया: महत्व, पूजा विधि, कथा और शुभ संयोग | Akshaya Tritiya

अक्षय तृतीया या अखा तीज वैशाख शुक्ल तीज को कहते हैं। हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किया जाता है उसका अच्छा फल या परिणाम होता है इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। वैसे धार्मिक दृष्टि से प्रत्येक मास के तृतीया का अपना महत्व होता है, अक्षय तृतीया को विशेष संयोग होने के कारण भी अधिक महत्वपूर्ण एवं शुभ माना जाता है। यह तिथि अबूझ मुहूर्त कारक है, किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि के साथ खरीदारी के लिए भी शुभकारी है। उपरोक्त किसी भी कार्य को करने के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

अबूझ मुहूर्त क्यों ??

इस दिन ग्रहों का विशेष संयोग होता है सूर्य तथा चंद्रमा दोनों अपनी उच्च राशि में होते हैं। सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में होता है तथा चंद्रमा उच्च राशि वृषभ में होता है। यह विशेष संयोग वर्ष में एक बार ही आता है और वह अक्षय तृतीया के दिन। अक्षय तृतीया को जो भी कार्य होते हैं वह सुखद परिणाम देने वाले होते हैं, सूर्य का संबंध कीर्ति से होता है तथा चंद्रमा का संबंध मन से होता है, शीतलता से होता है शांति, तथा तन मन से किए गए कार्य हमेशा शुभ कारी एवं सुखद होते हैं जो व्यक्ति की यश कीर्ति में वृद्धि करते हैं। पाणिग्रहण संस्कार के लिए तिथि सर्वोत्तम मानी जाती है। ऐसा माना जाता है दांपत्य जीवन में युगलों का प्रेम समाप्त नहीं होता उनका संबंध ब प्रेम जन्म जन्मांतर तक रहता है। भारतीय संस्कृति के गणना के अनुसार कुल चार स्वयं सिद्ध मुहूर्त हैं, या अबूझ मुहूर्त है गुड़ी पड़वा, दशहरा, दीपावली एवं अक्षय तृतीया।

शुभ संयोगों की खान - अक्षय तृतीया को शुभ संयोग उनकी खान भी कहते हैं।

1) भगवान विष्णु के छठे अवतार ब्राह्मण कुलभूषण भगवान परशुराम का माता रेणुका के गर्भ से अवतरण। समस्त ब्राह्मण जाति भगवान परशुराम अवतरण दिवस को भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाती है। भगवान परशुराम की पूजा प्रभात फेरियाँ, जुलूस सामूहिक विवाह युवक युवती परिचय सम्मेलन सामूहिक उपनयन संस्कार आयोजित किए जाते हैं। 
2) चारों युगों का प्रारंभ अक्षय तृतीया के दिन से ही हुआ था। सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ दिवस। 
3) मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर इसी दिन हुआ था। 
4) भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण और हयग्रीव का अवतरण दिवस है। 
5) भगवान बद्री नारायण के मंदिर के कपाट भक्तों के लिए इसी दिन खुलते हैं। 
6) वृंदावन में बांके बिहारी के विग्रह के दर्शन केबल इसी दिन होते हैं शेष समय वस्तुओं से ढके रहते हैं। 
7) महाभारत युद्ध की समाप्ति इसी दिन हुई। 
8) भगवान वेदव्यास गणेश जी द्वारा महाभारत का लेखन कार्य इसी दिन प्रारंभ किया। 
9) द्वापर युग का समापन। 
10) ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव अक्षय तृतीया से जुड़ा है। 
11) ऐसी भी मान्यता है आज के दिन पिंडदान का अच्छा फल मिलता है।

                              

                                

व्रत दान तथा पूजन –

इस दिन भगवान विष्णु का पूजन मां लक्ष्मी के साथ किया जाता है तथा सफेद गुलाब या कमल के फूल अर्पित किए जाते हैं। किसी पवित्र नदी या गंगा में स्नान करने का फल विशेष रूप से होता है। दक्षिण भारत में कुंवारी कन्या अपने परिवार में पिता तथा भाइयों को शगुन देते हैं। तथा आशीर्वाद लेती हैं कुछ स्थानों पर घर की महिलाएं अपने घर की समृद्धि के लिए व्रत करती हैं।

इस दिन दान का विशेष महत्व है क्योंकि गर्मी की ऋतु प्रारंभ हो जाती है अतः जल से भरा मटका, पंखा, चटाई, मौसमी फल तरबूज, खरबूज, ककड़ी का दान फलदायी है। छाते का दान इमली आदि का दान शुभ एवं फलदायी होता है। इस दिन सत्तू का सेवन अवश्य किया जाता है। पुराने कपड़े तथा बासी भोजन तथा प्लास्टिक की वस्तुएं ना दें, तेल झाड़ू पुरानी किताब या धारदार वस्तुएं भी दान ना दें। 
आखा तीज को दूसरा धनतेरस भी कहा जाता है इस दिन चांदी सोना खरीदना तथा भगवान को अर्पण करना शुभ होता है।

व्रत कथा –

धर्मदास नाम का एक गरीब ब्राह्मण था वह किसी तरह मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालता था। आय कम होने के कारण परिवार का पालन पोषण करना उसके लिए कठिन हो रहा था। एक दिन वह मजदूरी करके लौट रहा था उसने देखा कुछ लोग पेड़ की छांव में भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी का पूजन कर रहे वह भी वहां पर बैठ गया। श्रद्धा तथा भक्तों के साथ उसने भी पूजन किया उसके पश्चात उसने व्रत कथा पूजन की पूरी विधि जान ली तथा हर वर्ष अक्षय तृतीया को वह व्रत कथा पूजन करने लगा। जिससे उसके घर में सुख शांति तथा समानता आ गई। जीवन पर्यंत हुआ यह व्रत करता रहा तथा अगले जन्म में वह राजा को साबित हुआ तथा शतपथ पर चलते हुए प्रजा प्रिय एवं यशवान हुआ।

ऐसा भी कहा जाता है वनवास के समय कृष्ण ने पांडवों को एक पात्र दिया था जो मांगने पर सब कुछ देता था ताकि पांडव भूखे ना रहे। जिस दिन पात्र दिया था उस दिन अक्षय तृतीया थी। इसलिए उस पाठ का नाम अक्षय पात्र पड़ा, पांडवों के कष्टों को हरा तथा उन्हें वनवास में सहायता की। 
अंत में मैं इतना ही कहना चाहती हूं हम अपने भारतीय संस्कृति को बनाए रखने के लिए जो कि वैज्ञानिक के आधार पर है उससे संबंधित समस्त कार श्रद्धा और भक्ति से करें। 
 

                              

                                

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