
क्या 1 जनवरी को नववर्ष मनाना उचित है?
1 जनवरी से प्रतिवर्ष अँग्रेजी नववर्ष प्रारंभ हो जाता है। यह अंग्रेजों के द्वारा हमें दी गयी एक कुप्रथा है, जो हमारी मानसिक दासता का प्रतीक है। यह सत्य है कि विश्व ने इसे अपना लिया है और हम आज अपने अधिकांश कार्य इसी वर्ष के अनुसार करने के लिए बाध्य हैं, परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह नववर्ष हमारा नहीं है।
भीषण शीत में नया वर्ष मनाने का क्या औचित्य
जनवरी भीषण शीत का माह होता है। इस ऋतु में हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं पर बरफ गिरती है। वहाँ से आने वाली हवाएं मानव सहित सभी प्राणियों को कँपकँपा देती हैं। इस बीच होने वाली वर्षा पारा को और नीचे सरका देती है। इस समय सुबह - शाम कोहरा, पाला, धुंधऔर शीतलहर जनजीवन में कठिनाइयां बढ़ा देते हैं। न कहीं कोई उमंग दिखती है, न कोई रंग। हर जगह उबाऊ वातावरण दिखाई देता है।
31 दिसंबर की आधी रात से नए वर्ष का उत्सव मनाने वाले, एकबार अपने आप से पूछ लें, यह कैसा नया वर्ष है। न ऋतु बदली, न मौसम। न छात्रों की कक्षा बदली और न शिक्षा सत्र। न खेतों में फसल पकी और न वनस्पति में कुछ परिवर्तन हुआ। प्रकृति में वीरानी सी छाई रही। जीव - जन्तु ठण्ड से बचने के लिए कहीं दुबके रहे। पेड़ - पौधों पर न नई कोंपलें आई और न पुष्प खिले। शीत ऋतु में छोटे दिन और लंबी रातें, इससे आवश्यक काम समय से निबट ही नहीं पाते। 1 जनवरी से प्रारंभ होने वाले इस आँग्ल नववर्ष की बधाई भी मित्रों को देंगे तो कंबल या रजाई से मुँह निकाल कर। अँग्रेजी नववर्ष को नृत्य, मौज - मस्ती, मदिरा सेवन के बाद हंगामा करने और होटलों में भोजन के साथ मनाने की प्रथा भारतीय नहीं हो सकती।
मौसम की दृष्टि से यह नववर्ष, भारतीय वातावरण के अनुकूल कदापि नहीं हो सकता, सनातन संस्कृति से तो इसका दूर - दूर तक नाता नहीं है।
अँग्रेजों ने हम पर थोपी है यह कुप्रथा
जनवरी माह में नववर्ष मनाने की प्रथा हम पर अँग्रेजों ने अपने शासनकाल में थोपी है और हम अंधानुकरण करते हुए इस कलंक को ढो रहे हैं। भारत की स्वतंत्रता के अमृतकाल व्यतीत हो जाने पर भी हमारे बच्चों को यह जानकारी नहीं है कि हमारी अपनी कालगणना की पद्धति क्या है, देशी मासों के नाम क्या हैं तथा कुल ऋतुएँ कौन-सी हैं। आज अँग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों को अपनी भाषा में गिनती नहीं आती और अभिवादन में चरणस्पर्श-नमस्ते करना तक नहीं जानते। वे अपने भारतीय संस्कार, भाषा और समाज से पूर्णतः कट चुके हैं और पाश्चात्य संस्कृति को अपना लिया है। अपने समाज में विशेष रूप से नई पीढ़ी को प्रेरणा देने वाले नवसंवत्सर से परिचित ही नहीं कराया जाता।हम अपनी भाषा, अपनी संस्कृति और अपने महापुरुषों को भूलकर, अपना विकास नहीं कर सकते।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने स्पष्ट कहा है -
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है।
भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाना तर्कसंगत
भारतीय नववर्ष, जिसको 'विक्रमी संवत' भी कहते हैं, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। चैत्र मास में वासंती ऋतु होती है, चारों ओर फूल खिल जाते हैं, पेड़ों पर नए पत्ते आ जाते हैं, प्रकृति में वसंत ऋतु की सुषमा मन मोह लेती है। इस समय में सर्दी जा रही होती है और गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है। मार्च - अप्रैल में विद्यालयों के परिणाम आ जाते हैं, नवसत्र प्रारंभ हो जाता है और बच्चे नए उत्साह से नई कक्षा में प्रवेश लेते हैं। 31 मार्च को बैंकों की बंदी (क्लोजिंग) होती है, व्यापारी नए बही - खाते खोलते हैं। सरकार का भी नया सत्र प्रारंभ होता है। इसी ऋतु में खेतों में पकी फसल काटी जाती है, नया अनाज घर में आता है जिससे कृषकों का नया वर्ष उनके उत्साह को दोगुना कर देता है।
वर्ष के अतिरिक्त, दिन के हिसाब से भी आज भी हम संवत को महत्व देते हैं। अपने महापुरुषों के जन्मदिन- रामनवमी, जन्माष्टमी,सभी व्रत - त्योहार जैसे शिवरात्रि, नवरात्र, रक्षाबंधन, भैयादूज, होली,दीपावली, दशहरा, चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण इत्यदि देशी तिथियों के अनुसार ही मनाए जाते हैं। घर - परिवार में सारे मांगलिक कार्य जैसे विवाह,जन्म पत्र, मुण्डन, गृह प्रवेश आदि में भी हम अपने संवत के अनुसार ही शुभ मुहूर्त की गणना करते हैं। इससे स्पष्ट है कि कालगणना में 'भारतीय नवसंवत्सर' का स्थान विशेष महत्वपूर्ण है। भारतीय कालगणना की परंपरा प्राचीनतम, वैज्ञानिक और प्रकृति के अधिक निकट है।
भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों के अनुसार
नक्षत्रों की गणना करने वाले भारतीय महीनों का नामकरण नक्षत्रों से ही मानते हैं। तदनुसार, चित्रा नक्षत्र में आरंभ होने कारण वर्ष के प्रथम महीने का नाम चैत्र रखा गया। विशाख नक्षत्र से वैशाख नामकरण हुआ। जेष्ठा से जेठ मास, उत्तर आषाढ़ ही आषाढ़ महीने का जन्मदाता हुआ, श्रवण से श्रावण, उत्तरा भाद्र नक्षत्र के कारण भादों, अश्विन नक्षत्र से आश्विन, कृतिका नक्षत्र से कार्तिक, मृगशिरा से मार्गशीर्ष, पौष से पूस तथा माघ नक्षत्र से माघ महीने का नाम रखा गया। भारतीय वर्ष में प्रत्येक माह में दो पक्ष चंद्रमा की गति के अनुसार रखे गए - ये हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। दोनों पक्षों में 15 - 15 दिन होते हैं और प्रत्येक मास में 30 दिन होते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इस विधि से तिथि पूछने के लिए रेडियो, टीवी या अखबार का सहारा नहीं लेना पड़ता।
अँग्रेजी कैलेण्डर, जिसे हम आज कालगणना के लिए प्रयोग में लाते हैं, उसमें छः - सात सौ वर्ष पहले तक वर्ष के दस मास थे। इन मासों के नाम गिनती के ऊपर आधारित हैं, जैसे सैपेटम्बर अर्थात सातवां, अक्टूबर अर्थात आठवाँ, नवंबर अर्थात नौवां और दिसंबर अर्थात दसवां मास कहलाता था। पहले जुलाई और बाद में अगस्त मास को तत्कालीन राजाओं के नाम के साथ जोड़ा गया। उसमें भी जुलाई और अगस्त दोनों महीनों को 31 दिन का करने का विधान उन राजाओं की हठधर्मी के कारण किया गया, भले ही उसके लिए फरवरी माह में दिन कम करने पड़े।
अँग्रेजी नववर्ष का कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं
1 जनवरी का कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं है। अँग्रेजी कैलेण्डर की तारीख और अँग्रेज मानसिकता के लोगों के अतिरिक्त कुछ नहीं बदला। अतः विज्ञान आधारित कालगणना को पहचानें। केवल कैलेण्डर बदलें, संस्कृति नहीं।
विक्रमी संवत, जो शुद्ध रूप से महाराजा विक्रमादित्य, जिनका राज्याभिषेक ईसा से 57 वर्ष पूर्व हुआ था, जो जनहित और लोकमंगल के प्रति एक समर्पित साधक थे, उनसे जुड़ी मान्यताओं को महत्व देता है और भारतीय विक्रमी संवत के शुभारंभ को नववर्ष के रूप में मनाने हेतु आग्रह किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्र आरंभ, ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि रचना, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राजतिलक, महाराज युधिष्ठिर का राजतिलक, महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना इत्यादि महत्वपूर्ण घटनाओं का संबंध भी इसी दिन से है।
भारतीय नववर्ष मनाने का लें संकल्प
हमारा अगला भारतीय नववर्ष दिनांक 9 अप्रैल 2024 से प्रारंभ हो रहा है, जो 2081वाँ विक्रमी संवत है। पंचांग के अनुसार इसका नाम 'क्रोधी है, जिसको पंचांग भेद से 'कालयुक्त' भी कहा जाएगा। इसका राजा मंगल और मंत्री शनिदेव होंगे।
अतः हम संकल्प लें कि रोमन कैलेण्डर के 1 जनवरी को अँग्रेजी नववर्ष न मनाकर, अब भारतीय नववर्ष को धूमधाम से मनाएंगे। इसके लिए निम्नलिखित अनुष्ठान आयोजित किए जाने चाहिए -
-नववर्ष की पूर्व संध्या पर घरों में तथा अन्य विभिन्न स्थलों पर संगीतमय भजन, गायत्री चालीसा, रामायण पाठ, गीता पाठ, हनुमान चालीसा आदि का गायन किया जाए। घरों की छतों पर ऊँ अंकित भगवा ध्वज फहराएँ।
-घरों के द्वार पर नववर्ष की पूर्व संध्या पर दीपक जलाएं तथा पर्व- त्योहार जैसे आयोजन किए जाएं। इष्ट - मित्रों के साथ सहभोज करें। बच्चों को पार्क या सैर-सपाटा पर ले जाएं।
-नववर्ष पर शंख - ध्वनि से पूर्व प्रभातफेरी और सायंकाल शक्तिपीठों, प्रज्ञा - संस्थानों, मंदिरों आदि धर्म - स्थलों में दीप - यज्ञ के आयोजन किए जाएं।
-प्रिंट मीडिया और डिजिटल मीडिया में इसका भरपूर प्रचार किया जाए।
-इष्ट - मित्रों से मिलकर या मोबाइल फोन के माध्यम से एक - दूसरे को भारतीय नववर्ष की बधाई एवं शुभकामना दी जाए।
-निर्धनों में फल तथा वस्त्र वितरित किए जाएं तथा भोजन कराने हेतु भंडारे की व्यवस्था की जाए।
-गोशालाओं में गोमाताओं को गुड़ और विशेष चारे की व्यवस्था की जाए।
अतः आवश्यक है कि हम भारतीय नववर्ष के रूप में अपने संवत के महत्व को पहचानें। अपनी संस्कृति और सनातन धर्म की रक्षा के लिए, इसे अपने जीवन से अधिक से अधिक जोड़ें और नई पीढ़ी को भी इसके जाग्रत करें।पाश्चात्य संस्कृति के आक्रमण से बचने के लिए हम अपने इतिहास, शास्र और परंपराओ
की अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए समाज को आग्रह करें। समाज अपनी सांस्कृतिक परंपराओं की वैज्ञानिकता तथा श्रेष्ठता जानेगा तभी पाश्चात्य आक्रमणों से स्वयं की रक्षा करने में सक्षम होगा। भारतीय नववर्ष मंगलमय हो।
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