Bhartiya Parmapara

आडंबर की कहानी | प्रकृति के प्रति मानव समाज

आडंबर 


"माँ! हमें नदी किनारे बसना था न? कम से कम पानी तो मिल जाता। यहाँ तो कोई इंसान हमें झाँकने तक नहीं आता।"  
नीम का छोटा पौधा चिंता व्यक्त करते हुए अपनी माँ से बोला।

"कोई बात नहीं बेटा, जितना मिले उतने में ही खुश रहना चाहिए।"  
नीम ने दो टूक उत्तर देकर उसे शांत किया।

"ये बात तो ठीक है नीम बहन... लेकिन आजकल हम सभी का जीवन खतरे में है। कब सरकारी आदेश आए और हम पर बुलडोज़र चल जाए।"  
बाईं ओर से अशोक का पेड़ अपने पत्ते हिलाते हुए बोला।

बरगद, नीम, बाँस, शीशम और अन्य पेड़ भी साथ रहते थे। सबने आज अपनी–अपनी बातें रखीं।

"पहले कितना अच्छा वातावरण रहता था; लोग गर्मी के दिनों में हमारे पास बैठते थे, शुद्ध ऑक्सीजन लेते थे। अब तो हमें ही ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ रही है।"  
बाँस के पेड़ ने सहमति जताते हुए कहा—  
"सही कहा बहन आपने।"

"खैर... हमें तो ईश्वर का आशीर्वाद मिला है बहन...!"  
बरगद का पेड़ बोला।

उसी समय नीम का पौधा पूछ बैठा—  
"वो कैसे बरगद काका?"

बरगद ने हँसते हुए कहा—  
"बेटा! हम तो ऐसे पेड़ हैं जो स्वयं उग आते हैं। हमें बाकी पेड़ों की तरह रोपने या लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। हम स्वावलंबी होकर बढ़ते हैं, समझे नीम के बच्चे!"  
बरगद ने अपनी एक शाखा से नीम को सहलाते हुए कहा।

"हाँ काका, लेकिन आजकल मनुष्य नज़र ही नहीं आते। हमसे तो दूर ही रहते हैं, बस सफ़र करते समय वाहन से झाँक लेते हैं। अब अगर कभी आएँगे तो हम भी उन्हें छाया नहीं देंगे।"  
रूठे स्वर में नीम का पौधा बोला।

तभी उसकी माँ बोली—  
"नहीं–नहीं बेटा, हम स्वार्थी नहीं हो सकते। अगर हम स्वार्थी हुए तो भला उनमें और हममें क्या फ़र्क रह जाएगा?"

"हाँ नीम जीजी! आप भले ही लोगों के लिए कड़वी दवाई हैं, लेकिन जिन्हें आप स्वीकार हो जाती हैं, उनके लिए तो जीवनदायिनी भी हैं। धन्य हैं आप!"  
शीशम का पेड़ नीम के सामने सिर झुकाकर बोला।

अचानक नई कोंपलें, जो सड़क किनारे विकसित हो रही थीं, बोलीं—  
"अरे! आज इतनी चहल–पहल कैसे? वो भी यहाँ, जहाँ कोई वाहन रुकना भी पसंद नहीं करता।"

तभी खैर का पेड़ बोला—  
"आज शाम तक ऐसा ही रहेगा। न जाने कितने लोग आएँगे, फोटो खिंचवाएँगे, अख़बार में छपवाने के लिए।"

बरगद नाराज़गी जताते हुए बोला—  
"हाँ बच्चों, आज यहाँ तुम्हारे नए–नए साथी भी लगाए जाएँगे। ये हर साल का लोगों का आडंबर है। फिर कल... हम रहें या न रहें, झाँकने तक नहीं आएँगे।"

उसी क्षण पाँच–छह मंत्रीगण आए और खाली जगह देखकर वहाँ एक शीशम का पौधा रोपते हुए बोले—  
"आ जाओ सभी, एक साथ फोटो ले लेते हैं। अगले साल इन नीम, शीशम और बरगद जैसे पुराने पेड़ों की कटाई का आदेश देना पड़ेगा। रास्ता जाम कर बैठे हैं, जड़ें ज़्यादा फैल गई हैं। साथ ही सड़क चौड़ीकरण भी तो करवाना है।"

पसीने से तर-ब-तर सभी मंत्री पेड़ों की छाया में आराम करने लगे और बातें करते रहे।

ये सब बातें सुनकर नीम के साथ-साथ जितनी भी नई कोंपलें थीं, सभी मुरझाने लगीं।

  

    

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