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उत्सव नीरस जीवन में भरते है रंग | जीवन में उत्सवों का महत्व

उत्सव हमारे नीरस जीवन में भरते हैं रंग

 

उत्सव का अर्थ है - मंगल कार्य, धूमधाम, त्यौहार, आनंद विहार। व्यक्ति और परिवार के बाद तीसरी प्रमुख इकाई है, समाज। इन तीनों घटकों को समुन्नति और सुविकसित बनाने के लिए, पर्वोत्सव मनाए जाते हैं। उत्सव मनाने से समाज का स्तर ऊँचा होता है। इससे हर्षोल्लास और प्रसन्नता व्यक्त करने का सुअवसर प्राप्त होता है।

प्रायः मनुष्य प्रसन्न कम और दुःखी अधिक रहता है, क्योंकि मन जीवन में घटी सुखद घटनाओं को जल्दी भूल जाता है और मन दुखद घटनाओं पर अटका रहता है। इससे जीवन में नीरसता आ जाती है। इस नीरसता को दूर करने के लिए हमारे ऋषियों ने कुछ - कुछ समय के बाद धर्म के साथ उत्सवों को जोड़ दिया, जिससे परेशान मन प्रसन्न हो सके। उत्सव आने से पहले ही मन खुश होने लगता है और जाने के कुछ दिन बाद तक उस खुशी का आभास बना रहता है। आज की भागदौड़ भरे जीवन में इन्हीं उत्सवों के साथ पूरा परिवार इकट्ठा होकर खुशियाँ मनाता है। यदि ये उत्सव न होते तो जीवन मशीन की भाँति एक जैसा हो जाता।

उत्सव हमारे जीवन में परिवर्तन और उल्लास का संचार करते हैं, नीरसता में इंद्रधनुषी रंग भरते हैं। उत्सव ही ऐसे आयोजन हैं, जो किसी भी जाति के लोगों के बीच एकता बनाए रखने के प्रतीक हैं। उत्सव हमारी संस्कृति के सजीव स्वरूप हैं, जो कर्तव्य - कर्म में शिथिलता आने पर उसमें स्फूर्ति मय चेतना का संचार करते हैं। उत्सव समष्टि गत जीवन में उत्साह और उमंगों के प्रदाता हैं। वे भिन्न-भिन्न प्रकार के मनोरंजन, उत्साह और आनंद प्रदान कर जीवन-चक्र को सरस बनाते हैं। उत्सवों से वर्षों से चली आ रही सांस्कृतिक परंपराओं, प्रथाओं, मान्यताओं, विश्वासों, आदर्शों, नैतिक, धार्मिक तथा सामाजिक मूल्यों का जीवंत प्रतिबिंब साकार होता है।

हमारे देश में उत्सव या त्यौहार को दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं, प्रथम वर्ग -जैसे नागपंचमी, ईद, दशहरा, दीवाली, होली, कृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी, रक्षाबंधन आदि। द्वितीय वर्ग में राष्ट्रीय उत्सव हैं, जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती, शिक्षक दिवस, बलिदान दिवस आदि। सभी उत्सव देश को एक सूत्र में बांधे रखने में समर्थ हैं। इस प्रकार ये आयोजन हमारे जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। उत्सवों में, समय के साथ आई कुरीतियाँ और विसंगतियाँ, व्यक्ति, परिवार और समाज को बहुत क्षति पहुँचाती हैं। कुछ ऐसे त्यौहार हैं, जिनमें पशुओं का वध होता है, ऐसे शुभ अवसर पर किसी की मृत्यु का होना शुभ नहीं होता। दीवाली पर्व पर पटाखे जलाए जाते हैं जिससे वातावरण प्रदूषित होता है, इस पर्व पर कुछ लोग जुआ खेलते हैं और हजारों रुपये गंवा देते हैं। बड़े-बड़े अवसरों पर डीजे चलाए जाते हैं तथा लाउड स्पीकर बजाए जाते हैं जिससे तीव्र ध्वनि प्रदूषण रंग में भंग कर देता है। किसी-किसी उत्सव में लोग मदिरा पान करते हैं। होली जैसे मिलन पर्व पर लोग भद्दी गालियाँ बकते हैं, कीचड़ उछाला जाता है। इन अवांछित गतिविधियों से उत्सव की मूल भावना आहत होती है और आनंद प्राप्ति के स्थान पर जीवन में दुःख और निराशा छा जाती है। मनुष्य ने मनोविज्ञान तथा सामाजिक कर्तव्य के उचित समय को ध्यान में रखकर उत्सव की परंपरा निर्मित की है। अतः उचित नियम और आचरण से किए गए उत्सव से ही जीवन के सभी संकटों से मुक्त हुआ जा सकता है और वास्तविक आनंद की प्राप्ति हो सकती है।

                                     

                                       

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