Bhartiya Parmapara

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र में इसका महत्व

अनेक विविधताओं से भरा भारत,'अनेकता में एकता' के लिए जाना जाता है। यही एकता उसको आज़ादी की ओर ले गयी और आज, भारत अपनी आज़ादी की हीरक जयंती मना रहा है।

भारत एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। संविधान सभा के सदस्य १९३५ में स्थापित प्रांतीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से चुने गए। फिर साल १९४६ के दिसंबर महीने में एक संविधान सभा का गठन किया गया। कुल ०२ साल ११ महीने व १८ दिनों में बनाये गए संविधान को भारत की संविधान सभा ने २६ नवम्बर १९४९ को अपना कर २६ जनवरी १९५० से लागू कर दिया। इस संविधान को संविधान सभा ने बहुत गहन विचार कर और भविष्य को परख कर बनाया था।

'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' इसी संविधान का एक अंश है जो अनुच्छेद १९ के तहत भारत के सभी नागरिकों को यह आजादी देता है कि वे बिना किसी के दबाव में रहकर अपने विचार रख सके, भाषण दे सके और अपने या किसी और के विचार की चर्चा परिचर्चा कर सके।    
पर क्या हम इस स्वतंत्रता का उचित लाभ उठा पा रहे हैं?    
क्या यह स्वतंत्रता केवल कागजी है?    
मेरे विचार से नहीं। देशवासियों को उनके मौलिक अधिकारों से बोध कराता हमारा संविधान उन्हें यह पूरा अधिकार देता है कि यदि उनको सरकार या किसी संस्थान के किए गए किसी भी प्रकार के कार्य से आपत्ति  है, तो वे तर्क सहित उसका विरोध करें और उस कार्य में बदलाव या उसे वापस लेने की मांग करें।   
यहाँ यह आवश्यक है कि विचारक मन से मज़बूत रहे अर्थात अपनी बात पर अडिग रहना जरूरी है क्योंकि यदि आप सही राह दिखाएँगे तो आप पर उँगली उठाने वाले दस खड़े हो उठेंगे अर्थात एक व्यक्ति की बात दूसरा व्यक्ति दबाने की कोशिश करेगा या उसकी बात की गलत व्याख्या निकाल, उसे डरायेगा, धमकायेगा। बहुत बार ऐसा भी होता है कि अगर किसी वक्ता की बात श्रोताओं को उचित नहीं लगती है तो वे उग्र हो जाते हैं और सरकार को दोष देने लगते हैं और कहने लगते हैं कि हमारे पास तो अभिव्यक्ति की कोई स्वतंत्रता ही नहीं। जबकि श्रोताओं को वक्ता की बात को केवल विचार के रूप में लेना चाहिए। यह भी जरूरी है कि विचारक केवल अपने तथ्यों को सामने रखे, न कि उससे श्रोताओं को उकसाये।

हम सिनेमा जगत को अभिव्यक्ति की आज़ादी का एक सशक्त उदाहरण मान सकते हैं। साथ ही साथ, इससे बड़ी क्या बात कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने मन की बात के माध्यम से देश के युवा वर्ग या अन्य वर्ग को एक मंच प्रदान कर उन्हें अभिव्यक्ति के अधिकार से वंचित नहीं रहने दिया।

ध्यान रखें अभिव्यक्ति की आजादी कुछ सीमा के साथ मिलती है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है, हालांकी अनुच्छेद 19 के खण्ड 2 से 6 में यह उल्लेखित है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार निरपेक्ष नहीं है यानि की इसकी भी कुछ सीमाएँ हैं।   
   
अब निष्कर्ष के तौर पर यही बताना चाहूंगा कि "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न होने पर हम आजाद रहकर भी गुलाम हैं“ और इसी दृष्टांत के साथ अब मैं यह आग्रह करना चाहूंगा कि प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि वह अपनी अभिव्यक्ति के अधिकार को सुरक्षित एवं गरिमामय रखे।

 

                                     

                                       

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