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भाई दूज (यम द्वितीया): भाई-बहन के प्रेम, परंपरा और पूजा विधि का पर्व

भारतीय संस्कृति एवं हिंदू धर्मानुसार भाई बहन के प्यार निश्चय प्रेम की तीन तिथियां होती है। रक्षाबंधन, होली की दूज, तथा दीपावली के बाद भाई दूज। यह तीनों तिथियों का मूल दर्शन एवं भाव भाई बहन के प्यार को स्थायित्व देना है।

हम सभी जानते हैं हमारे दोनों प्रमुख त्योहारों के बाद दूज आती है और इन दोनों द्वितीय का अपना अलग-अलग महत्व है। दीपावली के बाद आने वाली दूज को "भैया दूज, यम द्वितीया तथा भातृ द्वितीया" भी कहते हैं।

यम द्वितीया 

 यम द्वितीया को ही "भातृ द्वितीया" कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार बहन भाई को टीका लगाकर उसकी लम्बी उम्र की प्रार्थना करती है। इस दिन यमराज का पूजन किया जाता है। ब्रज मंडल क्षेत्र में इसका विशेष महत्व है। भाई बहन के घर जाकर टीका लगवाता है तथा बहन के हाथ से पकाया हुआ भोजन ग्रहण करता है। समस्त बृज मंडल क्षेत्र में इस दिन भाई बहन का हाथ पकड़कर यमुना नदी में स्नान करते हैं। बहन यमुना नदी के जल में खड़े होकर भाई को टीका लगाती है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से भाई की उम्र बढ़ती है तथा वह दीर्घायु होता है।

यम द्वितीया का संदेश भाई बहन के प्रेम एवं स्नेह को पावन एवं पवित्र बनाकर सम्बन्ध स्थापित करना भी है।

पूजन विधि  

बहन भाई की हथेली पर चावल का घोल लगाती है। यह घोल चावल पीसकर बनाया जाता है। उस घोल के ऊपर सिंदूर लगाकर कद्दू के फूल पान सुपारी पैसा रखकर उसके ऊपर पानी डालती जाती है साथ ही इस मंत्र का उच्चारण करती है -

"गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े"

उपरोक्त मंत्र बोल कर हथेली की पूजा होती है। बहनें तिलक लगाकर भाई की आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिश्री खिलाती हैं। इस प्रकार की मान्यता है यदि कोई भयंकर जीव जंतु काट भी ले तो यमराज प्राण नही हरते है - "सांप काटे बाघ काटे बिच्छू काटे जो काटे तो आज काटे“। 
शाम को यमराज के नाम का एक चौमुखी दीपक घर के बाहर जलाना चहिये। इस बीच यदि कोई पक्षी ऊपर से उड़कर निकल गया तो शुभ माना जाता है ऐसी मान्यता है कि यमराज ने मेरी प्रार्थना भाई के सुख सौभाग्य एवं दीर्घायु को, कबूल कर ली पक्षी ने मेरा संदेश यमराज को दे दिया। साथ ही एक मान्यता यह भी है कि यदि भाई को पान भेंट करें तो इससे बहन का सौभाग्य अखंड रहता है।

यमुना में स्नान क्यों? 

भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम संज्ञा था। इनकी दो संताने पुत्र यमराज पुत्री यमुना थी। उनकी पत्नी सूर्य की किरणों की तपन सहन न कर सकी और उत्तरी धूप में छाया बनकर रहने लगी। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनि देव का जन्म हुआ। सूर्य की पत्नी का व्यवहार बदल गया अपनी संतानों के प्रति यमराज ने खिन्न होकर एक नई नगरी यमपुरी बसाई जहां पापियों को दंड मिलता था। यमुना पापियों को दंड देने का कार्य देख ना सकी और गो लोक चली गई जो कृष्ण भगवान के समय में भी थी। यमुना अपने भाई यमराज से बहुत प्रेम करती थी तथा घर आने का आग्रह करती थी लेकिन काम की व्यस्तता के कारण यमराज जा नहीं सके। समय बीतता गया तब यमराज को यमुना की याद आई तथा यमराज सोए गो लोक यमुना के घर पधारे तथा भोजन किया। तभी यमुना ने यमराज से वर मांगा - "जो भाई-बहन मेरे जल के अंदर हाथ पकड़ कर स्नान करें वह यमपुरी ना जाए।” तभी से ब्रज मंडल क्षेत्र के अधिकांश लोग मथुरा जाकर यम द्वितीया को यमुना में स्नान करते हैं और तभी से इसका नाम यम द्वितीया पड़ा।

यमराज के मंदिर कहां कहां स्थित है? 

मथुरा में यमुना के विश्राम घाट पर स्थित है। धर्मराज का मंदिर लक्ष्मण झूला ऋषिकेश में। यमराज मंदिर तमिलनाडु के तन तंजौर जिले में यह 100 वर्ष पुराना मंदिर है। हिमाचल प्रदेश में भी है जहां आज के दिन बहने यमराज की पूजा कर वरदान मांगते है। भाई दूज जो अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है - महाराष्ट्र में "भाऊ बीच“, बंगाल में "भाई फूटा" इत्यादि।

अंत में इतना ही कहना चाहती हूं - भाईयो को अपनी बहनों का सम्मान करना चाहिए जो हमारी भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म की प्राचीन परंपरा तथा रीतियां हैं।

 

 

 

                                    

                                      

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