Bhartiya Parmapara

आत्मकथा वसंत की | वसंत ऋतु

आत्मकथा वसंत की 


प्रिय बाल साथियो!  
सादर नमस्कार   

मैं ऋतुराज वसंत हूँ। मुझे मधु ऋतु भी कहते हैं। आज मैं अपनी कथा आपको स्वयं सुना रहा हूँ। मेरे स्वागत में किसी कवि ने कहा है -   
आई प्यारी ऋतु वसंत, सब ऋतुओं से न्यारी।   
तेरा शुभागमन सुनकर, फूली है क्यारी - क्यारी।   

भारत में वर्षभर में छह ऋतुएँ होती हैं। आपको नाम नहीं मालूम, चलो बता देता हूँ- ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत और वसंत। इस क्रम में मैं भले ही अंत में आता हूँ किंतु हमारी भारतभूमि में हिंदू वर्ष का प्रारंभ वसंत अर्थात मुझसे ही होता है। हिंदी मासों के अनुसार मैं चैत्र - वैशाख में आता हूँ, जो अँग्रेजी मासों के अनुसार सर्दी समाप्त होते ही 15 फरवरी से 15 अप्रैल तक रहकर मैं धरती को स्वर्ग बनाए रखता हूँ। 
       मुझे 'धरती का शृंगार' कहा जाता है। मेरे आते ही प्रकृति वृक्षों को नए - नए पत्ते देती है, फूलों के पौधों में नई - नई कलियाँ आती हैं, रंगबिरंगे फूल खिलते हैं, जिनकी सुंदरता को आप सब बड़े प्रेम और कुतूहल से निहारते हो। इससे नया ज्ञान, अनुभव और सीख प्राप्त करते हो। प्रकृति से जुड़कर सभी में नयी ऊर्जा, नई चेतना, नई उमंग, नई तरंग और नया उत्साह जाग्रत होता है। निराशा, हताशा और अवसाद दूर भाग जाते हैं।   
      माघ की पंचमी को 'वसंत पंचमी' कहते हैं। इस दिन मेरे स्वागत में लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा करते हैं।   
    मेरा भरपूर सौंदर्य देखना हो, तो जंगल में जाइए, बागों में जाइए या पहाड़ी स्थल के दर्शन कीजिए। वहाँ चिड़ियों की चहचहाहट आपके कानों में मिसरी घोल देगी और प्रकृति के सुंदर दृश्य हृदय को प्रफुल्लित कर देंगे। फूलों का खिलना, तितलियों का मड़राना, भौरों का गुनगुनाना, कोकिल का 'कुहू - कुहू' पंचम स्वर में गाना, मोरों का नाचना देखकर लोग भावविभोर होकर झूम उठेंगे।   
   प्रिय बाल गोपाल! वसंत पंचमी का दिन धर्मवीर बालक हकीकतराय की भी याद दिलाता है, जिनको क्रूर मुगलों ने आज के दिन ही अपना धर्म न छोड़ने के कारण मौत के घाट उतार दिया था। आप सभी को भी इस घटना से देश - धर्म के लिए बलिदान हो जाने की प्रेरणा अवश्य लेनी चाहिए।   
      किसानों के लिए मैं अर्थात वसंत ऋतु एक उपहार है। जब फसलें लहलहा उठती हैं, तब खेतों की शोभा देखते ही बनती है। सरसों पीले फूलों से सजी ऐसी लगती है, जैसे कोई लजीली बालिका पीली ओढ़नी पहने खड़ी हो। मेरी वासंती छटा देखकर ही किसी कवि ने कहा है -  
सरसों फूली, बाग खिले, हर ओर नए नजारे हैं।   
सर्दी झुककर पीछे हट गई, ऋतुराज वसंत पधारे हैं।   

बच्चो! अपनी गाथा में डूबकर मैं एक बात कहना ही भूल  गया कि मेरे आते ही आप सभी की वार्षिक परीक्षाएँ भी सिर पर आ जाती हैं। आप उसमें अवश्य व्यस्त रहते होंगे। मेरा भी आप सभी से यही आग्रह है कि खूब परिश्रम से पढ़ाई करो और अच्छे अंक लाओ। किंतु थोड़ा समय निकाल कर मनभावन वासंती वातावरण का भी आनंद उठाएँ। प्रातःकाल सैर करें, निर्मल स्वच्छ शीतल वायु का सेवन करें और व्यायाम करके शक्ति अर्जित करें। इससे जीवन में स्फूर्ति, उत्साह, प्रेरणा, नवीनता और ताजगी आएगी। और देखो! आगामी फाल्गुन पूर्णिमा को रंग और उमंग का त्योहार भी आने वाला है। यह भी मेरे ही नाम का महोत्सव समझिए। हर्षोल्लास से मनाने के लिए अभी से इसकी तैयारी में जुट जाएँ। इसके लिए मेरी ओर से आप सभी को अग्रिम बधाई एवं शुभकामना। तथास्तु।   
आपका प्रिय मित्र वसंत   
 

 

   

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