
मां के बाद शिक्षक बच्चों के भविष्य निर्माण में महती भूमिका निभाने में सच्चे भागीदार होते हैं। यह सही है कि शिक्षा व शिक्षक में बहुत बड़ा फासला नहीं होता है बच्चों के परवरिश का पूरा जिम्मा माता पिता पर होता है वहीं दूसरी ओर शिक्षक के कंधों पर बच्चों के भविष्य निर्माण की दीवारों को गहरी फाउंडेशन व पक्की ईंट गारे से समुचित निर्माण का पक्का स्तम्भ तैयार करना है जिससे बच्चे का समग्र चारित्रिक व मानसिक विकास संभव हो सकता है। एक समय होता था जब गुरुकुल होते थे व गुरु शिष्य शिक्षा दीक्षा परंपरा होती थी उस समय बच्चों का पूरा विकास गुरु के सानिध्य में ही फलता फूलता था पर आज स्थिति बेहद उलट है आज यह परंपरा लगभग विलुप्त हो गई है गुरु व शिष्य के बीच दोस्ताना व्यवहार सामने होता है एक जो अदब होती थी वह अब सम्भवतः आज नहीं
देखने को मिलेगी।
शिक्षक से अपेक्षायें –
शिक्षक जो हमारे बच्चों के भविष्य की भविष्यवाणी तो नहीं कर सकते पर उसके उज्ज्वल भविष्य को बनाने में अवश्य अपना सर्वश्रेष्ठ से सर्वश्रेष्ठ योगदान देने की कवायत करते हैं करनी भी चाहिए।
एक अच्छे शिक्षक के क्या गुण हों यह अवश्य एक यक्ष प्रश्न होना भी चाहिये क्योंकि अच्छा शिक्षक अपने अच्छे व्यक्तित्व कृतत्त्व से अपनी अच्छी संवाद शैली के माध्यम से एक बच्चे पर ही नहीं वरन पूरी कक्षा पर दूरदर्शी धनात्मक प्रभाव छोड़ सकता है और जब वही बच्चों की भविष्य एक दिन उज्ज्वल हो जाता है तो निःसन्देह यह शिक्षक के लिए उसकी मेहनत का फल होता है साथ ही आत्म संतुष्टि का क्षण भी।
प्रत्येक माता पिता की यही अपेक्षा रहती है कि बच्चे के सर्वांगीण विकास को निखारने के प्रयास शिक्षक पर पूरी श्रद्धा से छोड़ देते हैं फिर बच्चों के सम्पूर्ण विकास का क्रम चौतरफा फल फूल सके व माता पिता के उन अरमानों को सफलता में परिवर्तन होते देखने की एक चाह छिपी होना स्वाभाविक है।
जीवन मूल्यों के संबंध में शिक्षकों से अपेक्षा –
जिस प्रकार आज के बदलते परिवेश में शिक्षकों व विद्यार्थियों के जीवन मूल्यों में यकायक परिवर्तन आया है वह कहीं न कहीं चिंतित करने वाला प्रश्न है जीवन मूल्यों के श्रेष्ठ उद्देश्य यदि शिक्षक के व्यवहार में, उसके कार्यों में परिलक्षित होता है तो निसंदेह ही बच्चों के चारित्रिक विकास पर उसका सीधा प्रभाव पड़ना तय है ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि पहली नजर में शिक्षकों के जीवन मूल्य उच्चतम स्तर के हों सिद्धांत मय हों निसन्देह इन का प्रभाव स्वतः ही बच्चों के चारित्रिक विकास पर चार चांद लगाएगा।
जिस प्रकार चरित्र पतन छात्रों में बड़े स्तर पर सामने आया है यह भयावहता है आखिर क्यों न शिक्षक को सबसे पहली प्राथमिकता स्व-चरित्र व स्व-व्यवहार व महापुरुषों जैसे जीवन मार्ग के रास्तों पर चलने की भरसक कोशिश करनी चाहिए जिसमें स्व-अनुशासन, संयम, अध्यात्म, दूरदर्शिता, सत्य पालन, त्याग व समर्पण भाव आदि गुणों का प्रतिबिम्ब छात्रों के सामने पेश हो सके।
भारतीयता के संदर्भ में –
शिक्षक न सिर्फ एक स्कूल के बच्चों के मानसिक विकास की धुरी होता है वह पूरे राष्ट्र के सफल निर्माण का मजबूत स्तम्भ होते हैं, यह अनिवार्य है कि हमारे शिक्षक भारत के विकास उसके सुखद भविष्य के लिए अपने बौद्धिक स्तर पर कोन से ऐसे प्रयास कर सकते हैं जिससे भारत का भविष्य उज्ज्वल हो व आज का भारत सोने की चिड़िया बन सके व भारत का एक एक बच्चा भारत का श्रेष्ठतम देश प्रेमी साबित हो यह नींव डालने की प्रतिबद्धता हमारे शिक्षकों के चरित्र में अवश्य रचे बसे। प्रत्येक शिक्षक समुदाय को अपने कर्म, धर्म, व चरित्र में पूर्ण रूप से भारतीय सभ्यता के प्रति निष्टा व गर्व का भाव सदैव रहना नितांत आवश्यक है।
संस्कारों के संदर्भ में शिक्षकों के कर्त्तव्य –
सच्चे मायने में शिक्षकों की पहली प्राथमिकता उचित संस्कारों में सन्निहित शिक्षा के अनुपालन कराना व बच्चों में आदर्श संस्कृति, संस्कारों का बीजारोपण कूट-२ कर कराए जाने व स्वयं के आचरण को एक आदर्श प्रस्तुतिकरण कर बच्चों की शिक्षा को किसी भी हाल में संस्कार विहीन होने से बचाने से रोकना है व एक आदर्श विद्यालय से आदर्श विद्यार्थियों की खेप तैयार करने की मुहिम होनी आवश्यक ही नहीं नितान्त भी है।
राष्ट्रीयता के संदर्भ में –
शिक्षक व शिष्य के बीच राष्ट्र धर्म का बीजारोपण अत्यंत आवश्यक है जितनी आवश्यकता गुरु को अपने शिष्य के प्रति ज्ञान के प्रति जागरूक बनाये रखना है उससे कहीं अधिक आवश्यकता अपने राष्ट्र के प्रति सम्मान व कृतज्ञता का भाव बनाये रखना है जो गुरु के द्वारा शिष्य में राष्ट्र प्रेम की अलख हर पल हर जगह प्रवाह रूप में बनी रहे ऐसा प्रयत्न शिक्षक के द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए। शिक्षक को स्वयं भी यह भान होना चाहिए कि राष्ट्र धर्म यथेष्ट पालन किया जाना व उनकी असल अर्जित की गई शिक्षा का फल है व आने वाली पीढ़ियों के लिए भी गुरु शिष्य परंपरा में यह राष्ट्र प्रेम भावना बनी रहे।
अनुशासन के सन्दर्भ में –
हमेशा से ही हमारे शिक्षक अनुशासन के प्रतिरूप सिद्ध हुए हैं जिनका अनुसरण हमारी छात्र पीढ़ी सदैव करते आए है। एक अभिभावक होने के वास्ते यह आकांक्षा रही है कि हमारे शिक्षक स्व- अनुशासन का पालन पूर्ण प्रतिबद्धता से करें व एक मिसाल कायम कर पाएं शिक्षा के साथ अनुशासन का विशेष स्थान रहता है बिना अनुशासन के गुरु व शिष्य के बीच एक सार्थक संवाद कायम होना सदैव नामुमकिन रहेगा अतः अनुसंधान के साथ अनुशासन की भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि शिक्षा के साथ उसके अनुप्रयोग की।
आत्मनिर्भरता के संदर्भ में –
शिक्षा की सार्थकता तभी फलदायक होती है जब हमारी पीढ़ी को अपने पाँव पर खड़ा करने की ताकत शिक्षक अपने तालीम से अपनी मेहनत लग्न से प्रमाणित कर सके,आज समय की मांग है कि हमारे शिक्षकों को यह चाहिए कि हमारे आने वाले धरोहरों अर्थात विद्यार्थियों को उनके जीवन में स्वावलंबी बनाए रखने के वह प्रयास किये जायें जो भविष्य में उनके सफल जीवन की ओर अग्रसर होने की कवायत सिद्ध हो सके। जिसका एक ही रास्ता है रोजगारपरक शिक्षा, एवं सम्पूर्ण स्वास्थ।
देश प्रेम के संदर्भ में –
विकास तभी सार्थक होता है जब देश प्रेम की भावना से किया गया हर वह हर कार्य चाहे वह शिक्षा हो या चाहे अन्य, हमारे शिक्षकों की देश प्रेम भावनाओं का हमेशा से ही अनूठा उदाहरण पेश किया जाता रहा है जब भी अनेक सार्वजनिक समारोहों का अनुष्ठान होता है वहाँ पर देश प्रेम साफ दिखाई देता है यह एक उदाहरण है इसी प्रकार आज शिक्षक व शिक्षार्थियों के बीच देश प्रेम का सार्थक संवाद बना रहना हमारी प्राचीन विरासत को सहेजना व कायम रहना है हमें यह अपेक्षा रहती है कि हमारे शिक्षक हर दिन हमारे विद्यार्थियों को अपने राष्ट्र के प्रति अच्छे आदर्शों पर चलने की शिक्षा प्रदान करें व देश की अखंडता व शौर्य के प्रति विद्यार्थियों को इस गौरवशाली विषय हेतु आकृष्ट कराएं।
आज यह विडंबना है कि शिक्षा दो भागों में बंट गई है एक सरकारी स्तर पर प्रदान की जाने वाली परम्परा गत शिक्षा दूसरी प्राइवेट स्कूलों में रुपये के हिसाब से तोली जाने वाली शिक्षा जिसमें अनेक स्तर पर असमानताओं का रूप सामने आता है ,दुःख तो तब होता है जब शिक्षक भी महंगे दामों पर मोल भाव के बाद खरीदने व बेचने जैसे व्यवहार में शामिल हो रहे हैं। जिसका खामियाजा गरीब तबके के विद्यार्थियों को अवश्य भुगतान करना पड़ता है।
देश में अच्छी व गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के मानदंडों का रूप एक ही होना चाहिए हर शिक्षक को उच्चतम स्तर के प्रशिक्षण प्रदान कर हर हाल में हर बच्चे के सुखद भविष्य के प्रति जागरूक कर देना चाहिए जैसे कि अब्राहम लिंकन स्वयं अपने बच्चे की उभरती प्रतिभा के प्रति शिक्षक को आकृष्ट करना चाहते थे। आज आखिर क्यों यकायक सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या गिरती जा रही है व प्राइवेट स्कूल क्यों फुल हो रहे है यह प्रश्न चिन्ह है, अनेक निजी स्कूलों में गरीब तबके के बच्चों के माता पिता अपना पेट काटकर वहां दाखिल कर बच्चों के सुनहरे भविष्य की कल्पना करते है जिसमें यह कोई गारंटी नहीं कि बच्चे का यहाँ विकास दिन दूना रात चौगुना हो यह बच्चे व शिक्षक के शिक्षा संवाद पर निर्भर करता है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा आज शिक्षा जगत में जो दिखाई दे रही है वह कहीं न कहीं व्यवसाय बनता अधिक दिखता है] जिसका दुष्परिणाम मानवीय आधार पर ठीक नहीं है।
संतोष कि आज हमारे बच्चों में शिक्षकों से अपनी दिल की बात सांझा करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है जिससे बच्चे के मन में छिपी हुई प्रतिभा का शिक्षक उदय होता जाता है आज आवश्यकता इस बात कि है कि शिक्षकों का कर्तव्य बन जाय कि विद्यार्थी के समग्र विकास पर स्व अनुसंधान कर बालक के सर्वांगीण विकास को उभारने की बेहतरीन से बेहतरीन कोशिश की जाए जिससे एक दिन जब एक गरीब मां के आंखों में बच्चों के कामयाब होने की चमक होगी वह सम्भवतः दुनिया की सबसे बेहतरीन दौलत उस माता पिता के झोली में होनी तय हो जाएगी व शिक्षक के आत्मगौरव व स्वाभिमान के कदमों के शिलशिला आने वाले समय में अवश्य समाज व परिवार, देश द्वारा बखूबी याद किया जाएगा।
आज जिस प्रकार पल-पल में बाह्य परिवेश बदल रहा है ऐसे में शिक्षकों को हमारा आह्वान होगा कि बच्चों के मानसिक विकास के साथ उसका चारित्रिक विकास पहली प्राथमिकता में रखा जाए, नैतिकता, संयम व सहानुभूति, देश व माता पिता के प्रति सेवा भाव को हर हाल में समावेश किया जाना तय हो।
लेखक - विजय पपनै जी, फरीदाबाद (उ. प्र.)
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