
शिव आराधना का श्रावण मास आस्था और विश्वास के साथ ही प्रकृति के सुंदरतम श्रृंगार का मनभावन मौसम है। तृप्त धरा चारों और हरियाली की लहराती चुनर में इठलाती है। नदियों में ऊँची-ऊँची उठती लहरें और झरनों का सुमधुर कलरव हर मन को आकर्षित करता है।
ऐसे ही वर्षा ऋतु के सावन मास की पूनम को आता है भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व "रक्षाबंधन“ बचपन में यहीं एक रिश्ता होता है जो सर्वाधिक मजबूत होता है, छोटी छोटी- छोटी बातों पर होने वाले रोज के लड़ाई झगडो़ में कितना असीमित माधुर्य छिपा होता है इसका मात्र अहसास ही मन को हर्षित कर देता है। वक्त अपनी रफ़्तार से चलते जाता है और बहुत कुछ पीछे छूट जाता है साथ रहती है तो बस केवल यादें और यहीं यादें हमारे जीवन को संबल देती है हर स्थिति में खड़े रहने की हिम्मत देती है।
भारतवर्ष में मनाएं जाने वाले हर त्योहार के पीछे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य रहा है। वृत्रासुर बहुत बलवान था उसे युद्ध में हराना आसान नहीं था इंद्रदेव को युद्ध में जाने से पहले उनकी बहन इंद्राणी ने अपने तप से रक्षा सूत्र बनाकर बांधा था जिस सूत्र ने भाई की रक्षा की और उसे युद्ध में विजयी किया। शिशुपाल का वध करते समय सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण की अंगुली कट जाती है और खून बहने लगता है तभी द्रोपदी अपनी साड़ी का आंचल फाडकर श्रीकृष्ण की अंगुली पर पट्टी बांधती है बहनों के मन में अपने भाईयों के प्रति अपार स्नेह छिपा होता है और उस स्नेह में असीमित ताकत छिपी होती है राखी केवल एक डोर नहीं यह रक्षा सूत्र है जो भाई के ऊपर आने वाली हर बला को टाल देता है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है किंतु आज भी यह त्योहार उतने ही उत्साह से मनाया जाता है उसके स्वरूप में थोडा परिवर्तन जरूर हुआ है किंतु रेशम के इस डोर की मजबूती का अहसास संकट के समय में द्रोपदी को हुआ श्रीकृष्ण ने आकर अपनी बहन का चीरहरण होने से रोक लिया। हर भाई अपनी बहन का सुरक्षा कवच ही होता है वह स्वयं तकलीफ सह लेता है पर अपनी बहन को सुरक्षित, खुश देखना चाहता है। विवाह के पश्चात जब-जब ससुराल में कुछ आयोजन होते है या रक्षाबंधन पर ही भाई उपस्थित होता है तब बहना के खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता भाई की उपस्थिति उसे गौरवान्वित करती है, उसे धीरज देती है उसके अकेलेपन को दूर करती है और उसके मायके के होने का उसे मधुर अहसास कराती है।
वर्तमान की व्यस्त तम जीवनशैली में सभी अपने-अपने क्रियाकलापों में व्यस्त रहते हैं फिर भी अवसर निकाल कर हम अनेक उत्सवों, आयोजनों में शामिल होते ही हैं वैसे ही वर्ष में से केवल एक दिन का समय हर भाई अपनी बहन के लिए आरक्षित रखने का पुरजोर प्रयास करें स्नेह की इस डोर का प्रेम प्रगाढ़ रहे इसके लिए हर प्रयास करें छोटी- छोटी बातों को बचपन के नोक-झोंक की तरह भूल जाएं। हर बहन भी यह ध्यान रखें वह अनेक किरदार अपने जीवन में निभाती है जैसे बहन, ननद, भाभी वह स्वयं अपने हर किरदार में जो अपेक्षा रखती है।
वहीं व्यवहार वह आचरण में लाएं तो खुशियों की महक से यह पावन रिश्ता फलता फूलता नजर आएगा रेशम की इस पावन डोर को जतन से मजबूत बनाए रखें।
"आस्था और विश्वास का पावन पर्व लुभाता,
खुशियों की सौगात देता भाई-बहन का नाता।"
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