
इंसानियत के मजबूत तानों बानो से बुनकर बनाई गई गृहस्थी में आने वाले त्योहार एक ऐसे संबल के रूप में नजर आते हैं जिनके नाम पर पूरा परिवार मिलजुल कर अपनी परंपराओं को जीवित कर उत्साह से उन्हें मनाता है। इस दिन लगातार चली आ रही जिंदगी की एकरसता से मुक्ति पा समस्त परिवार आनंद से भर उठता है और याद कर पाता है अपनी परंपरा व संस्कृति को। हर त्योहार का अपना अलग महत्व है अपना अलग मजा है बचपन में हम कई दिन पहले से त्योहारों को मनाने में जुट जाते थे। स्कूल से छुट्टियां मिलने की खुशी मौज मस्ती की खुशी भी होती थी यह त्योहार हमें भाईचारा सिखाने अपनी परंपराओं का निर्वाह करना सिखाता है ताकि हम आने वाली पीढ़ी को भी संस्कारों से बांध पाए।
दिवाली के दिन ढेर सारे दीपक जलाना सारा परिवार का इकट्ठा होना बहुत सुंदर लगता है। तरह-तरह के व्यंजन त्यौहारों में बनते हैं और मेहमानों को जो आमंत्रित किया जाता है उसमें उनके द्वारा की गई प्रशंसा से घर के माहौल में एक मिठास घुल जाती है और यही त्योहार एक यादगार पल बन जाते हैं।
भारतीय समाज में त्योहार वा पर्व वह मजबूत धागे की तरह है जो सबको जोड़े रखते हैं यह वही विशेष अवसर होते हैं जब हम अपने परिवार व समाज के साथ मिलकर खुशियों का एहसास करते हैं।
हम सभी बचपन से देखते आए हैं कि परिवार के साथ परंपरावादी ढंग से पूजा पाठ कर त्योहार होता है जो अपने घर से दूर रहते हैं वह भी त्योहार के बहाने वापस घर आते हैं और एक साथ मिलकर उस का आनंद उठाते हैं। इसी त्योहार के बहाने हम अपनी परंपरा और संस्कृति को याद कर पाते हैं साथ ही हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को यह परंपराएं और मूल्य दे पाते हैं। बहुत से धार्मिक कारण है जिनसे इन त्योहारों का ऐतिहासिक महत्व है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है यह सभी जानते हैं पर शायद यह कम ही लोग जानते हैं कि होली दिवाली जैसे त्योहारों के समय किसानों की फसल काटकर उनका धन उन्हें वापस प्राप्त होता है इसी खुशी में वह पर्व मनाते हैं नए अन्न के आगमन पर घर की औरतें खुशियों के दीप जलाती है और प्रभु को धन्यवाद देते हैं।
नवरात्रि के दिन लोग मां दुर्गा की उपासना करते है 9 दिन तक अपने व्रत को सफल बनाने के लिए उपवास रखते हैं। गणपति जी के दिनों में हर्षोल्लास होता है सभी धूमधाम से गणपति बप्पा घर लाते हैं ताकि घर में सुख समृद्धि बनी रहे।
करवा चौथ पर भी महिलाएं अपने पति के लिए व्रत रखती हैं तो कुछ वट सावित्री व्रत करती हैं और हरतालिका जैसे त्योहार हमारे भारत में मनाए जाते हैं जो मानवता भारतीयता और एकता के संदेश लाते हैं।
आज के आधुनिक दौर में पर्व पहले की तरह नहीं रह गया बढ़ते बाजारीकरण का व्यवसायीकरण का प्रभाव हमारे त्योहारों पर पड़ा है पहले उन का आनंद ही अलग होता था आज आनन्द की कल्पना करना भी कठिन है पैसे की चमक दमक वा दिखावे ने भी हमारी खुशियों पर भी प्रभाव डाला है कॉरपोरेट गिफ्टिंग के साथ-साथ उपहारों के लेनदेन भी बहुत बढ़ गया है।
पहले किसी त्योहार के आने पर मन खुशियों से भर जाता था कई दिन पहले यह तैयारियां शुरू हो जाती थी दिवाली के दिन ढेरों सामान आता था सब मिलकर पूजा करते थे लेकिन आज व्यस्त भरे माहौल में जल्दी कोई एक दूसरे से मिल भी नहीं पाते हैं त्योहार भी आजकल फोन के द्वारा शुभकामनाएं देकर करते हैं लोग।
आज वह भावना नहीं दिखाई पड़ती है कहीं प्रदूषण की दुहाई है तो, कहीं बिजली की बचत, कहीं ऑफिस से छुट्टी न मिलने का दर्द है, तो कहीं घर जाने की इजाजत बजट नहीं दे रहा होता। हमारी वास्तविक व अच्छी परंपराएं आज इतिहास का विषय बन गई हैं। ये यादें नानी दादी की कहानियों में ही सुरक्षित है उसको हम भुला चुके हैं। कुछ उपभोक्तावाद बाजारवाद का शिकार हो चुके है आज हम उन आनंद भरे पर्व की बातें करते हैं।
आज बदलते हुए समय में मानवीय मूल्य व मान्यताओं से हमारे परंपरागत त्योहारों की छवि धूमिल हुई है उन पर व्यावहारिकता हावी हुई है इसे बचाने के लिए हमें प्रयास करने होंगे।
लेखिका - पूजा गुप्ता जी, मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)
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