बगुला संदेश
तमिलनाडु के कुंबकोणम नामक शहर की तीन किलोमीटर की दूरी पर एक गांव का नाम है-शक्त्ति मुत्तम यानि शक्ति का चुंबन। यहां भगवान शिव का एक पुरातन मंदिर है। यहां के ईश्वर का नाम है शिवक्कोळंदु नादर और देवी का नाम है पेरियनायकी। इस मंदिर की देवी पार्वती की मूर्ति परमेश्वर को आलिंगन किए हुए है। अतः इस मंदिर का नाम शक्ति मुत्तम पड़ा। इस मंदिर में पाए गए शिला लेख में शिव का नाम तिरु शक्ति मुत्तम उडैयार है यानि शक्ति का चुंबन पाने वाले। यह कुलोत्तुंग चोल काल का मंदिर है। अनेक शिला लेखों में यह उल्लेख है कि इस मंदिर में दीप जलाने के लिए तेल के प्रावधान हेतु आय के लिए सोने के सिक्के, भेड़ और खेत दान दिए गए हैं।
यहां के एक गरीब पंडित थे जिनका असली नाम आज तक अज्ञात है। पर अब वह पूरा गांव ही उनके नाम से जाना जाता है। ये पंडित संघ काल के समय के थे। ताड़ पत्तों में उन्होंने अनेक गाने लिखे पर आज उनकी एकमात्र रचना उपलब्ध है जिससे वे अत्यंत प्रसिद्ध हो गए। वह है “बगुला संदेश”।
उनकी एकमात्र संपत्ति थी उनकी फटी हुई धोती और उससे भी बदहाल का एक तौलिया। वे अपनी दरिद्रता से पीड़ित होकर अपने यहां से निकलकर पांड्य राज्य जा पहुंचे। उनका विचार था कि वहां के राजा या जमींदार का गुणगान कर कुछ सम्मान की निधि पाएंगे और फिर अपने यहां लौटेंगे। इसी इरादे से वे निकले पर तब सर्दी का मौसम था। घनघोर वर्षा के बाद ठंडी हवा बहने लगी। अतः वे एक दीवार की आड़ में जा बैठे। सर उठाकर देखा कि कहीं दुबारा बारिश न हो। पर उन्हें एक बगुले की जोडी उड़ती दिखाई दी। उन्हें देखते ही उन्हें अपनी पत्नी की याद आई। घर से निकल आए दो दिन हो गए। वह काफी चिंतित रहेगी। उसे कोई संदेश भेजना आवश्यक है। पर कैसे भेजें? तब उनके मन में यह विचार आया कि इन बगुलों के माध्यम से ही संदेश भेज दूं। अपनी भूख और प्यास में भी उनकी काव्य सृजन शक्ति पूरी तन्मयता में थी और वे उन बगुलों को संबोधित करते हुए संदेश देते हैं, जिसका सारांश इस प्रकार है:
"लाल रंग के पैरों वाले और फोडे हुए ताड़ के फल के समान दिखते व मूंगे के रंग की लंबी चोंच वाले हे बगुले! तुम और तुम्हारी सखी का यदि पास के कन्याकुमरी के मंदिर के तालाब में नहाकर उत्तर की ओर उड़ने का इरादा हो, तो वहां सत्ति मुत्तम नामक गांव में एक बड़ा तालाब है जहां तुम्हें खाने के लिए काफी मछलियां मिलेंगी। उस तालाब के तट पर कभी भी टूट गिरने की स्थिति में मिट्टी की दीवारों वाला घर ही मेरा है। उसमें मेरी प्रिय पत्नी रहती है। जब भी दीवार पर छिपकली 'टिक-टिक’ की आवाज करती है, उसे शुभ शकुन मानकर मेरे आगमन का इंतज़ार करती होगी। तुम उससे जा बताना, मांजी! आपके पति को हमने पांड्य राज्य के मदुरै के एक स्थान पर देखा जो भूख से लाचार और ठंड से ठिठुरते हुए और जोर की ठंडी हवा से बचने के लिए जगह के अभाव में सिकुड़कर अपने हाथों से अपने शरीर को कसे हुए और अपने पैरों से शरीर के बाकी भागों को ढककर उस ठंड में कांपते हुए सांप-सा सिकुड़कर सुखी बन बैठे हुए थे। आप चिंता न करें। तुम दोनों यही बात उसे बताना।”
उस समय वहां अपने प्रदेश की जांच हेतु निकले मारन वळुदि पांड्य राजा उस पंडित जी की कविता को सुनकर आश्चर्य चकित हुआ। उसके मन का संदेह उस दिन दूर हुआ। वह बगुले की सुंदरता को चित्रित करने की उपमा की खोज में था। उसने काफी पंडितों से अपने संदेह का निवारण मांगा पर असफल था। पर इस लाचार एवं गरीब पंडित ने 'दो भागों में फोड़े गए ताड़ फल के समान' का उपमा बताकर उनका संदेह निवारण कर दिया। इससे प्रसन्न होकर राजा ने अपना बहुमूल्य शाल उनपर ओढ़ दिया। यही नहीं अपने सेवकों से उन्हें अपने राजमहल में आमंत्रित कर खूब धन देकर सम्मानित किया।

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