Bhartiya Parmapara

जितिया व्रत कथा - संतान की दीर्घायु के लिए पूजनीय पर्व

व्रत :-जितिया। 
मनोकामना :- वंश वृद्धि ,संतान दीर्घायु हो। 
पूजन :-शिव -पार्वती, गणेश के साथ जितबानन गोसाई की पूजा। 
विधि:- निर्जला उपवास। नदी के तट पर कथा सुनना। पार्वती माँ की शृंगार सामग्री के साथ गणेश जी के लिए कुछ खिलौने, प्रसाद, दान -दक्षिणा और अगले दिन पारन।

कथा :- जितिया कथा में तीन कहानियाँ सुनाई जाती है। जब छोटी थी तो माँ के साथ नदी किनारे जाती। कहानियों से शुरू से ही लगाव की वजह से औरतों के बीच बैठ कर मैं भी कथा सुनती। एक साथ तीन -तीन कथा पंडित जी सुनाते। अगर कोई महिला बीच में बात करने लगती तो मोटकू पंडित जी ग़ुस्सा हो जाते। कथा छोड़ कहते "कथा सुनी , आएल बानी लोग की पूजा करे की पंचायत करे ?" 
बतिया ली लोग हम जा तानी। 
कुछ औरतें पंडित जी के प्रकोप से डर कर चुप हो जाती तो कुछ पंडित जी को छेड़ने लगती। हमारे यहाँ पंडित जी से मज़ाक़ या शादी-ब्याह में उनके नाम से गाली गाना कोई नई बात नही। 
इधर मैं तबतक अपने दोस्तों के साथ नदी किनारे खेल कर आ जाती। कारण पंडित जी तो अभी प्रवचन लम्बा चलेगा।

वैसे जितिया के बारे में यह प्रचलित है कि, जिसको पुत्र होगा वही ये व्रत करेगा पर कथा में ये बात कहीं नही लिखी। 
चलिए तो अब कथा की शुरुआत करतें है ;

पहली कथा :-  एक बार एक जंगल में चील और सियारीन घूम रहे थे, तभी उन्होंने कुछ महिलाओं को नदी के किनारे इस व्रत को विधि पूर्वक करते देखा और कथा सुनी। चील ने इस व्रत को ध्यानपूर्वक देखा और श्रद्धा पूर्वक व्रत का पालन किया। वही सियारीन का ध्यान बहुत कम था। उसने व्रत तो किया पर रात को भूख लगने के कारण, माँस खा लिया। व्रत के पुण्य से चील की संतानों को कभी कोई हानि नहीं पहुँची। वहीं सियारीन की सभी संताने एक एक कर मृत्यु को प्राप्त हो गाई।

दूसरी कथा :-  महाभारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु से अश्व्थामा बहुत क्रोध में था। बदले की भावना से उसने पांडवो के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगो को पांडव समझकर मार डाला।लेकिन वे सभी द्रोपदी की पाँच संताने थी।उसके इस अपराध के कारण अर्जुन ने उसे बंदी बना लिया।उसकी दिव्य मणि छीन ली।जिससे क्रोधित हो अश्व्थामा ने उत्तरा (अर्जुन की दूसरी पत्नी )की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चला दिया। 
ब्रहमास्त्र को निष्फल करना असंभव था। तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर, उसको गर्भ में ही पुनः जीवित किया। गर्भ में ही मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम "जीवित्पुत्रिका" पड़ा बाद में यहीं "राजा परीक्षित" हुए। तब ही से इस व्रत को किया जाने लगा।

तीसरी कथा :-  गन्धर्वों के राजकुमार का नाम जीयूतवाहन था। वे बड़े उदार और परोपकारी थे। जीयूतवाहन के पिता ने वृद्धावस्था में वानप्रस्थ आश्रम में जाते समय इनको राजसिंहासन पर बैठाया। पर इनका मन राज-पाट में नहीं लगता था। वे राज्य का भार अपने भाइयों पर छोड़कर स्वयं वन में पिता की सेवा करने चले गए। वहीं पर उनका मलयवती नाम की राजकन्या से विवाह हो गया। 
एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीयूतवाहन काफी आगे चले गए तो वहाँ उन्होंने एक वृद्धा को विलाप करते देखा। पूछने पर वृद्धा ने बताया कि मैं नागवंश की स्त्री हूँ। मुझे एक ही पुत्र है। पक्षीराज गरुड़ के सामने नागों ने उन्हें प्रतिदिन खाने हेतु एक नाग देने की प्रतिज्ञा की है। आज मेरे पुत्र की बलि का दिन है।

जीमूतवाहन ने वृद्धा से कहा, डरो मत माते। मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज उसके बजाय मैं स्वयं अपने आपको लाल कपड़े में ढाँक कर शिला पर लेट जाऊँगा। नियत समय पर गरुड़ आए और वे लाल कपड़े में ढाँके जीमूतवाहन को पंजे में दबोच उड़ चले। मृत्यु को पास देख कर भी गरुड़ का शिकार शांत चीत रहा तो गरुड़जी बड़े आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने जीयूतवाहन से उनका परिचय पूछा। जीयूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया। गरुड़जी उनकी बहादुरी और बलिदान से बहुत प्रभावित हुए। प्रसन्न होकर गरुड़जी ने उनको जीवनदान दिया ।साथ हीं नागों की बलि न लेने का भी वरदान दे दिया ।इस प्रकार जीयूतवाहन के साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई ।तभी से पुत्र की सुरक्षा हेतु जीयूतवाहन की पूजा की जाने लगी । 
तो अंत में बोलें :- 
ये अरियार , 
का बरियार ? 
जा के कहिए राजा रामचंद्र जी से की 
सत्यार्थ ( अपने बच्चों का नाम लें) के माई जितिया कईले बड़ी।

                                    

                                      

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