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भक्ति से विज्ञान तक: हरितालिका तीज का बहुआयामी महत्व

हरितालिका तीज भारतीय संस्कृति का ऐसा पर्व है, जिसमें भक्ति की गहराई, वैज्ञानिक दृष्टि और पर्यावरणीय संवेदनशीलता का अद्भुत संगम दिखाई देता है। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को मनाया जाने वाला यह व्रत उत्तर भारत, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में विशेष रूप से लोकप्रिय है।

इसके नाम में ‘हरित’ का आशय भगवान शिव से और ‘आलिका’ का अर्थ सखी से है। पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपनी सखियों की सहायता से हिमालय पर्वत पर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया। उनकी अडिग आस्था और अनवरत साधना अंततः दिव्य मिलन में परिणत हुई। यही तप, धैर्य और संकल्प इस पर्व का आध्यात्मिक आधार है।

1. भक्ति का आयाम

हरितालिका तीज केवल दांपत्य सुख का उत्सव नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण, धैर्य और समर्पण की साधना का पर्व है। इस दिन अनेक व्रतधारी महिलाएं दिनभर अन्न-जल का त्याग करती हैं। यह संयम और तप का प्रतीक है।

(अ) संकल्प और सिद्धि: संकल्प तभी फलित होता है जब लक्ष्य के प्रति माता पार्वती की भांति अडिग रहा जाए।  
(ब) दांपत्य सामंजस्य: स्वस्थ परिवार के लिए पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास, सम्मान और त्याग का होना आवश्यक है।  
(स) नारी-शक्ति का बोध: पार्वती जी का तप यह सिखाता है कि नारी में अपार शक्ति, साहस और साधना की क्षमता निहित है; आवश्यकता है तो केवल आत्मबोध और आत्मविश्वास की।

2. वैज्ञानिक आयाम

भारतीय पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उनमें स्वास्थ्य, जीवन-शैली और पर्यावरण विज्ञान का गहन समावेश होता है।

(अ) उपवास का स्वास्थ्य-लाभ: निर्जला व्रत या उपवास पाचन-तंत्र को विश्राम देता है, शरीर से विषैले तत्व निकालने में मदद करता है और मानसिक दृढ़ता को बढ़ाता है।  
(ब) प्रसन्नता हार्मोन का स्राव: पूजा, भजन और कथा-स्मरण से मस्तिष्क में सेरोटोनिन, डोपामिन, ऑक्सिटोसिन और एंडोर्फिन का स्राव बढ़ता है, जिससे मानसिक शांति, आत्मविश्वास और प्रसन्नता प्राप्त होती है।  
(स) सामूहिक अनुष्ठान का लाभ: समूह में गीत, नृत्य और भजन-पूजन सामाजिक जुड़ाव को बढ़ाते हैं और तनाव कम करते हैं।  
(द) मौसमी अनुकूलन: वर्षा ऋतु के अंतिम चरण में यह व्रत संक्रमण से बचाव और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है।

                                 

                                   

3. पर्यावरणीय पक्ष

हरितालिका तीज प्रकृति-पूजन और पर्यावरण संरक्षण की भारतीय परंपरा को आगे बढ़ाती है।

(अ) मिट्टी की प्रतिमा का पूजन: भगवान शिव-पार्वती की प्रतिमाएं मिट्टी से बनाने की परंपरा प्लास्टिक के प्रयोग को रोकती है और पर्यावरण के लिए अनुकूल है।  
(ब) वृक्ष-पूजन: पीपल, बेल और तुलसी जैसे पौधों की पूजा ऑक्सीजन चक्र को सुदृढ़ करती है और वायु को शुद्ध बनाती है।  
(स) जल-संरक्षण का संदेश: व्रत के दौरान जल का सीमित उपयोग जल-संसाधनों के महत्व का बोध कराता है।  
(द) स्थानीय सामग्री का प्रयोग: पूजा में स्थानीय फूल, फल और पत्तियों का उपयोग न केवल कार्बन फुटप्रिंट घटाता है, बल्कि स्थानीय किसानों को भी सहयोग देता है।

4. सांस्कृतिक और सामाजिक आयाम

यह पर्व लोकसंगीत, पारंपरिक परिधान और सामूहिक अनुष्ठानों के माध्यम से सामाजिक बंधनों को प्रगाढ़ करता है। महिलाएं एकत्र होकर पूजा करती हैं, लोकगीत गाती हैं और परस्पर सहयोग तथा सहभागिता का संकल्प लेती हैं।

निष्कर्ष

हरितालिका तीज अपने भीतर भक्ति का आलोक, विज्ञान का स्वास्थ्य-संदेश और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प समेटे हुए है। यह केवल धार्मिक व्रत नहीं, बल्कि तन, मन और प्रकृति के संतुलन का जीवंत उदाहरण है। यदि हम इसके संदेश को अपने जीवन में अपनाएं, तो यह पर्व हमारे रिश्तों को सुदृढ़ करने के साथ-साथ मनुष्य, समाज और पृथ्वी—तीनों के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा।

                                 

                                   

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