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दीपोत्सव: संस्कार, सामाजिकता और विज्ञान का संगम

संस्कार, संस्कृति, सामाजिकता और वैज्ञानिकता का समुच्चय है दीप पर्व

दीपोत्सव सनातनी भारतीयों द्वारा पांच दिनों तक हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला वैज्ञानिकता से अनुप्राणित अनुपम सांस्कृतिक पर्व है। यह ईश्वरीय मानव रूप द्वारा किए किये अच्छे कार्यों का स्मरण तथा स्तुति है। दीप पर्व समाज के प्रति समर्पण का प्रतीक है, यह बताता है कि जो भी समाज के लिए जीता है, स्व स्वार्थ से परमार्थ की ओर बढ़ता है, मर्यादा के नये प्रतिमान गढ़ता है - वही जनमानस में रमता हुआ राम के रूप में पूजा जाता है। इस प्रकार यह पर्व संस्कार, संस्कृति और सामाजिकता का परिचायक है, आपसी सौहार्द प्रेम, भाईचारा तथा अपनेपन का पोषक है। यह उत्सव अंधकार को प्रकाश में बदलने की सीख देता है।

इस त्यौहार का वैज्ञानिक आधार भी बहुत ही सुदृढ़ है। यह पर्व वर्षा ऋतु और शरद ऋतु के संधिकाल में आता है। वर्षा काल में कई जीवाणु और रोगाणु जन्म ले लेते हैं, जो मानव के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं। दीपावली के माध्यम से हम प्रतिवर्ष घर, दुकान, प्रतिष्ठानों को स्वप्रेरणा से साफ करने की सार्थक परंपरा का निर्वाह करते हैं- रंग रोगन, साज-सज्जा, रोशनी इत्यादि द्वारा उन्हें नया रूप देते हैं। इससे अधिकांश रोगाणु समाप्त हो जाते हैं। साफ- सुथरे घर, दुकान और प्रतिष्ठान रोगाणुओं तथा विषाणुओं युक्त धूल के कणों से मुक्त होकर इन से होने वाली  विभिन्न बीमारियों की संभावनाओं को बहुत कम कर देते हैं। वहीं दूसरी ओर सुंदर एवं आकर्षक घर-प्रतिष्ठान, बाजार आदि मन में प्रसन्नता के भाव जगाते हैं। हम सब जानते हैं कि स्वस्थ मन, स्वस्थ शरीर के लिए जरूरी है।  स्वस्थ शरीर, निरोगी काया अर्थात बीमारियों को दूर रखना लंबी आयु के लिए आवश्यक है। हम सब इस तथ्य से भी भलीभांति परिचित हैं कि आज के समय में बीमारियों का इलाज कराना न सिर्फ बहुत महंगा और कष्टसाध्य है - रोगी और परिजनों दोनों के लिए भावनात्मक और आर्थिक स्तर पर पीड़ादायक है। इस दृष्टि से दीपोत्सव साफ सफाई के माध्यम से स्वास्थ्य और आर्थिक मदद करता है, स्वास्थ्य और धन रुपी लक्ष्मी को घर परिवार में स्थिरता प्रदान कर राष्ट्र के मेरुदंड को भी सुदृढ बनाता है।

सामाजिक दृष्टि से यह त्यौहार जीवन को हर्षोल्लास, धन-धान्य, स्वास्थ्य - समृद्धि, सौहार्द, प्रेम,भाई-चारा और शांति से भरता है, परिवारों को जोड़ता है, जीवन को उत्साह, उल्लास के नये रंग देता है तथा जीवन की एकरसता को समाप्त कर ताजगी और नवीनता देता है। मनुष्य में रसमय जीवन जीने की आदत डालता है तथा उदासी -निराशा को जीवन से बाहर निकाल कर दीघार्यु प्रदान करता हैं। यह पर्व सनातन सांस्कृतिक धरोहर, समरसता और पारिवारिक परंपराओं को सहेजने का महत्वपूर्ण माध्यम भी है।

                                      

                                        

विज्ञान के अनुसार मानव शरीर में बनने वाले चार हार्मोन जीवन के आनंद को बढ़ाने वाले हैं (1) डोपामाइन जिसे फील गुड हार्मोन कहते हैं आनंद के अनुभव के लिए जरूरी है, (2) सेरोटोनिन हार्मोन जो अच्छे मूड के लिए सहायक है, (3) ऑक्सीटोसिन हार्मोन जिसे लव हार्मोन भी कहते हैं जो चिंता-तनाव को  दूर रखकर विश्वास, सहानुभूति, प्रेम के साथ रिश्तों को गहराई प्रदान करता है तथा (4) एंडोर्फिन नामक हार्मोन तनाव, परेशानी से मुक्ति दिलाता है। इन हार्मोन के नियमित और संतुलित स्राव से व्यक्ति जीवन में ख़ुशी और आनंद का अनुभव कर सकता है। इसके विपरीत शरीर में इन हार्मोन की कमी और असंतुलन विभिन्न   
मानसिक और शारीरिक रोगों को जन्म दे सकता है, महंगी हार्मोन थेरेपी के लिए आमंत्रित कर सकता है। ये सभी हार्मोन प्राकृतिक रूप में अपनों के साथ क्वालिटी समय बिताने से, दोस्तों और परिवारजनों के साथ मौज-मस्ती करने से, हंसने -हंसाने, मिलने -जुलने, गले लगने से, खुशनुमा पल बिता कर, पसंदीदा पहनावा, भोजन आदि से बढ़ाए जा सकते हैं। ये सभी उपाय भारतीय सनातन संस्कृति के दीपोत्सव जैसे त्योहारों का हिस्सा हैं। हम इन हार्मोन को अपनों के साथ/परिवार के साथ खुशनुमा माहौल में हर्ष उल्लास से मना कर सहज रूप से प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु जीवन के लिए दीपावली जैसे त्यौहार सहायक और आवश्यक भी है।

अच्छे स्वास्थ्य में पर्यावरण का भी अपना विशेष महत्व है अतः हमें इस पर्व पर पटाखों, आतिशबाजी को सीमित करके पर्यावरण को और अधिक प्रदूषित होने से बचना चाहिए।

दीपोत्सव जैसे त्यौहार व्यापार, कारोबार की दृष्टि से भी खुदरा, छोटे और बड़े व्यापारियों के लिए बेहतर लाभ प्राप्त करने का साधन होते है, खुशियां देने वाले होते हैं। इन अवसरों पर बाजार इतने आकर्षक होते है की ग्राहक अपने आप को चाह कर भी दूर नहीं रख पाता है। ऐसे समय में हम भारतीयों को विदेशी सस्ते तथा कम टिकाऊ उत्पाद के मोह को त्याग कर स्वदेशी, स्थानीय उत्पादों को महत्व देना चाहिए, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर क्रय करना चाहिए। बड़ी-बड़ी आकर्षक दुकानों के साथ छोटी दुकानों तथा फुटपाथ पर बिक रही स्वदेशी भारतीय वस्तुओं/उत्पादों को भी खरीदना चाहिए। ऐसा कर के हम भारत और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं, भारतीय कला- कौशल-कारीगरी को प्रोत्साहित कर सकते हैं, अपनों को रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं। गरीब, छोटे, फुटकर दुकानदारों को भी दीपावली मनाने का अवसर प्रदान कर सकते हैं। साथ ही पड़ोसी देश चीन को उसके उत्पाद का बहिष्कार कर सबक भी सिखा सकते हैं। सोचना होगा चीन जैसा देश जहां दीपोत्सव में न आस्था, विश्वास है और न ही उस देश की संस्कृति का हिस्सा है के द्वारा निर्मित हमारी पूजा के साधन (दिये, मोमबत्ती, मूर्तियां, झालर, साज-सज्जा की सामग्री आदि), मूर्ति आदि में वो मानसिक आत्मीय भाव कैसे आ सकते हैं, जो एक भारतीय द्वारा निर्मित सामग्री में आते हैं। वैसे भी कहा जाता है कि जब तक हम भारतीय अपने स्वदेशी उत्पाद को क्रय नहीं करेंगे, उपयोग में नहीं लाएंगे, उसकी तारीफ नहीं करेंगे तब तक हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि विदेशी हमारे सामान को खरीदेंगे, उपयोग करेंगे, और हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूत करेंगे।    
तो आइए हम इस दीपावली को राष्ट्र-भाव के संकल्प के साथ मनाएं, भारत को सशक्त बनाएँ।

                                      

                                        

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