भारतीय परम्परा

एडवोकेट उषा जी चतुर्वेदी

एडवोकेट उषा जी चतुर्वेदी
एडवोकेट उषा जी चतुर्वेदी

पति का नाम - श्री भरत चतुर्वेदी एडवोकेट
जन्म दिनाँक-1-1-1950
शैक्षणिक योग्यता - एम'ए बीएड एल एल बी
पता B/M-57 नेहरू नगर करुणाधाम आश्रम के सामने भोपाल - 462003
मोबाइल -9425008744
लेखन कार्य - गद्य विधा, लघु कथा, निबंध, परिचर्चा, संस्मरण लेरव, हायकु, कविता, बाल साहित्य आदि

पूर्व की गतिविधियों- प्रधानाध्यापिका भारती निकेतन हाई सेकेंडरी स्कूल भेल भोपाल
- भोपाल नगर निगम के पार्षद 10 वर्ष मध्यप्रदेश राज्य समाज कल्याण बोर्ड की चेयरमैन दो बार
- मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण एवं बाल अधिकार आयोग

विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं की सदस्य - प्रारम्भ चैरिटेबिल फाउडेशन
- दुष्यन्त कुमार पाडुलिपी संग्रहालय
- मप्र हिन्दी लेखिका संघ
- मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति
- शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली
- संस्कार मंथन त्रैमासिक पत्रिका की मार्गदर्शक

विवाह संस्कार की उत्पत्ति प्रकार नियम एवं रिवाजें

विवाह संस्कार की उत्पत्ति प्रकार नियम एवं रिवाजें

विवाह स्त्री और पुरुष के बीच अनोखा एवं आत्मिक, भावनात्मक संबंध है। विवाह को कुछ लोग दूसरा जन्म ही मानते हैं क्योंकि विवाह के पश्चात स्त्री एवं पुरुष दोनों का संपूर्ण जीवन बदल जाता है। विवाह का शाब्दिक अर्थ वि+आहा=विवाह विशेष उत्तरदायित्व वहन करना। हमारी भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव के सोलह संस्कार होते हैं। विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार जो मानव का त्रयोदश संस्कार है।

स्वास्तिक का उपयोग

स्वास्तिक का उपयोग

स्वास्तिक का चिन्ह हम अपने जीवन में बचपन से देखते आ रहे हैं। किसी भी शुभ कार्य में इसे अवश्य बनाया जाता है। हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी इसका महत्व है तथा प्रयोग होता है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक स्वास्तिक का चिन्ह ही माना जाता है। ऐसा माना जाता है। की शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले। इसको बनाने से कार्य मंगलकारी तथा संपूर्ण होता है। स्वास्तिक का चिन्ह सौभाग्य का प्रतीक है तथा। स्वास्तिक वैदिक सभ्यता का एक महत्वपूर्ण पौराणिक चिन्ह है।

कजली तीज

कजली तीज

कजली तीज हमारी भारतीय संस्कृति का एक परंपरागत लोक पर्व है। इस कजली तीज को बड़ी तीज, बूढ़ी तीज ,तथा सातुड़ी तीज के नाम से जाना जाता है। यह व्रत विशेषकर सुहागिन महिलाओं का होता है कुमारी कन्याओं तथा युवतियों के लिए यह उल्लास एवं खुशी का पर्व है। मेहंदी लगाना श्रंगार करना तथा विशेषकर लहरिया की साड़ी इस दिन ज्यादातर पहनी जाती लहरिया की साड़ी हल्की-हल्की फुहारे झूले का झूलना तथा कजरी गीत गाना अपने आप में ही एक सुखद अनुभूति है।





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